लोकसभा चुनाव के परिणाम 23 मई को घोषित कर दिए जाएंगे। लेकिन उससे पहले तमाम प्रमुख एग्जिट पोल्स में बीजेपी की अगुआई वाली एनडीए को पूर्ण बहुमत मिलने की बात कही जा रही है। एग्जिट पोल से बीजेपी खुश नजर आ रही है तो वहीं कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दल परिणाम आने का इंजजार कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव में इसबार 542 सीटों पर मतदान हुआ है। क्या आपको पता है कि कुल सीटों में से पांच सीटें ऐसी हैं जहां जिस भी पार्टी की जीत होती है वह सत्ता की चाबी हासिल कर लेती है। आइए जानते हैं इन सीटों के बारे में: –
1. वलसाड गुजरात
वलसाड एसटी जाति के लिए आरक्षित सीट है। गुजरात में लोकसभा की कुल 26 सीटें हैं। यहां की जनता हमेशा से जिस भी पार्टी के लिए वोट करती है वह सत्ता हासिल करती है। 1975 से लगातार ऐसा होता आ रहा है। इस लोकसभा क्षेत्र में 14.95 लाख मतदाता हैं। ज्यादातर मतदाता धोदिया, कूनकाना, विरली, कोली और ओबीसी जाति से संबंध रखते हैं। 1998 में बीजेपी के मनीभाई चौधरी ने वलसाड से जीत हासिल की थी और उनकी पार्टी ने केंद्र में सरकार बनाई। इसके बाद जब 1999 में फिर से चुनाव हुए तो उन्होंने दोबारा जीत हासिल की और एकबार फिर केंद्र में बीजेपी की सरकार बनी। वहीं 2004 में कांग्रेस के कृष्ण भाई पटेल ने वलसाड से जीत हासिल की और और उनकी पार्टी सत्ता पर काबिज हुई। 2009 में भी यह सिलसिला जारी रहा। वहीं 2014 में मोदी लहर के दम पर बीजेपी के के.सी पटेल ने इस सीट पर 2 लाख से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की थी। जिसके बाद केंद्र में बीजेपी की सरकार बनी। इस चुनाव में भी के.सी पटेल कांग्रेस के चौधरी जीतूभाई के खिलाफ मैदान में हैं।
2. फरदीबाद, हरियाणा
हरियाणा की 10 लोकसभा सीट में से फरीदाबाद एक गैर-आरक्षित सीट है। इस सीट पर भी जनता जिस पार्टी को वोट देते हैं उसी की केंद्र में सरकार भी बनती है। 1998 में चौधरी रामाचंद्रा बैंदा ने बीजेपी की टिकट पर जीत हासिल की और केंद्र में बीजेपी ने सरकार बनाई। फिर 1999 में बैंदा ने दोबारा जीत हासिल की और वाजपेयी सरकार को बहुमत साबित कर सरकार पर अपना कब्जा किया। बात करे 2014 की तो यहां से बीजेपी के कृष्ण पाल गुर्जर ने भड़ाना को हराया था। और केंद्र में बीजेपी की अगुआई वाली एनडीए सरकार का गठन हुआ। दोनों ही नेता इस बार भी चुनावी मैदान में एक दूसरे को टक्कर दे रहे हैं। इस सीट पर 12 मई को मतदान किया गया था। वोट प्रतिशत 64.12 फीसदी रहा था।
3. रांची झारखंड</strong>
झारखंड की राजधानी रांची सीट पर 11 बार हुए लोकसभा चुनाव में से 9 बार जिस भी पार्टी के उम्मीदवार ने जीत हासिल केंद्र में सत्ता पर भी वही काबिज हुई। इस लोकसभा क्षेत्र में करीब 16.48 लाख मतदाता हैं। कुर्मी, वैश्या और अन्य उच्च जातियों के लोगों ने 1991, 1996, 1998, 1999 और 2014 में बीजेपी के राम तहल चौधरी ने जीत दर्ज की। वहीं 2004 और 2009 में इस सीट पर कांग्रेस के सुबोध कांत सहाय ने जीत हासिल की। वहीं 2014 में सुबोध जो कि यूपीए सरकार में मंत्री भी थे उन्हें 2014 में करीब 2 लाख वोटों से हार मिली। लेकिन इस बार चौधरी एक निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में हैं तो वहीं बीजेपी ने झारखंड खादी बोर्ड के चीफ संजय सेठ को टिकट दिया है।
4. मंडी, हिमाचल प्रदेश
मंडी राज्य की चार लोकसभा सीट में से एक महत्वपूर्ण सीट मानी जाती है। इस लोकसभा क्षेत्र से सत्ता का दरवाजा खुलता है। इस सीट पर मुख्यत: राजपूत और अनुसूचित जाति मतदाता जीत हार का निर्णय करते हैं। इस सीट पर 11 लाख मतदाता हैं। यहां 11 में से 9 बार जिस भी पार्टी का उम्मीदवार जीता सरकार भी उसकी पार्टी की ही बनी। इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा माना जाता रहा है। बीजेपी ने इस सीट पर 1998 में जीत हासिल की थी। उस समय बीजेपी के महेश्वर सिंह ने कांग्रेस की प्रतिभा सिंह को मात दी थी। इसके बाद महेश्वर सिंह ने इस सीट पर 1999 में भी दोबारा जीत हासिल की थी। इसके बाद 2004 में प्रतिभा सिंह ने जीत हासिल की और फिर यूपीए की सरकार बनी। 2009 के चुनाव में कांग्रेस के वीरभद्र सिंह ने जीत दर्ज की। इसके बाद 2013 में हुए उपचुनाव में प्रतिभा सिंह फिर जीतीं, लेकिन वह 2014 का चुनाव बीजेपी के राम स्वरूप शर्मा से हार गईं।
5. धर्मापुरी, तमिलनाडु</strong>
धर्मापुरी लोकसभा सीट तमिलनाडु की उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र का हिस्सा है। राज्य में लोकसभा की कुल 39 सीटें हैं। इस क्षेत्र में तमिल और तेलगू बोलने वाले लोगों की अच्छी खासी तादाद है। कापुस, लिंगायत और वोक्कालिगा और होलेया और मादीगा की अनुसूचित जातियां हार और जीत को निर्धारित करती है। धर्मपुरी में हुए हुए पिछले पांच लोकसभा चुनाव में से चार में पाट्टाली मक्कल कॉची (पीएमके) उम्मीदवार ने जीत हासिल की है। वहीं 1998 और 1999 में पीएमके ने एनडीए के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन कर लिया था। वहीं 2004 में जब यूपीए की सरकार बनी तो वह यूपीए में शामिल हो गई। वहीं 2009 में जब पीएमके को इस सीट पर हार मिली तो द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) उम्मीदवार की जीत हुई। डीएमके 2009 में यूपीए के साथ थी। वहीं बात करें पिछले लोकसभा चुनाव की तो बीजेपी ने पीएमके से गठबंधन किया हुआ था और पीएमके की जीत भी हुई। इस चुनाव में भी पीएमके ने बीजेपी से गठबंधन किया हुआ है।

