Shantanu Thakur Profile: देश में आम चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। इलेक्शन कमीशन ने शनिवार को लोकसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा कर दी है। इस बार भी लोकसभा चुनाव सात चरणों में होंगे। चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही राजनीतिक दलों ने उम्मीदवारों के नामों का ऐलान करना शुरू कर दिया है। ऐसे में बीजेपी ने पश्चिम बंगाल के बनगांव से दोबारा मतुआ समुदाय के नेता शांतनु ठाकुर को ही मैदान में उतारा है।

पारिवारिक कलह की वजह से राजनीति में कदम रखने वाले शांतनु ठाकुर पश्चिम बंगाल के राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मतुआ समुदाय के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक हैं। शांतनु ठाकुर बनगांव संसदीय सीट से लोकसभा सदस्य हैं। साथ ही, वह केंद्रीय जहाजरानी राज्य मंत्री हैं। वह प्रभावशाली सामाजिक-धार्मिक संप्रदाय ठाकुरबाड़ी के उत्तराधिकारियों में से एक हैं। शांतनु तृणमूल कांग्रेस के पूर्व मंत्री मंजुल कृष्ण ठाकुर के सबसे बड़े बेटे हैं।

शांतनु ठाकुर का राजनीतिक करियर

शांतनु ठाकुर ठाकुरनगर में ठाकुरबाड़ी द्वारा संचालित विभिन्न सामाजिक सेवाओं के जरिये मतुआ समुदाय के विकास के लिए काम किया और वह कभी राजनीति में सक्रिय नहीं रहे थे। 2019 के आम चुनाव में वह परिसीमन के बाद इस निर्वाचन क्षेत्र में चुने जाने वाले पहले गैर-टीएमसी सांसद बने जब वह भाजपा के टिकट पर चुने गए। शांतनु ठाकुर का जन्म 3 अगस्त 1982 को पश्चिम बंगाल के ठाकुर नगर, उत्तर 24 परगना में हुआ था। उनकी शिक्षा अंग्रेजी साहित्य में हुई और उन्होंने हॉस्पिटैलिटी मैनेजमेंट में एडवांस डिप्लोमा प्राप्त किया। उनकी शिक्षा विक्टोरिया यूनिवर्सिटी और कर्नाटक स्टेट ओपन यूनिवर्सिटी से हुई थी।

साल 2019 के लोकभा इलेक्शन में बीजेपी के शांतनु ठाकुर ने टीएमसी की ममता ठाकुर को हराकर बनगांव लोकसभा क्षेत्र में 1,11,594 वोटों के अंतर से जीत हासिल की। शांतनु ठाकुर को 6,87,622 वोट हासिल हुए थे। 2019 के आम चुनाव में टीएमसी, बीजेपी, सीपीएम और कांग्रेस को क्रमशः 40.92%, 48.85%, 6.4% और 1.61% वोट मिले।

मतुआ समुदाय का प्रभाव

मतुआ समुदाय की एक सामाजिक और धार्मिक बैठक को फरवरी महीने में पीएम मोदी ने संबोधित किया था। इसके बाद शांतनु को उम्मीदवार के रूप में बनगांव लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाया गया। शांतनु ने इस सीट से अपनी ताई को हराया और राज्य में भाजपा के अहम नेताओं में शामिल हो गए। विधानसभा चुनावों में मतुआ समुदाय ने पहले की तरह किसी एक पार्टी को नहीं चुना बल्कि यह वोट बीजेपी और टीएमसी के बीच बंट गए। केंद्रीय मंत्री शांतनु को दोबारा से मैदान में उतारने के पीछे मतुआ समुदाय को लुभाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।