Lok Sabha Election Results 2019:  लोकतांत्रिक जनता दल के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव बिहार की मधेपुरा संसदीय सीट से पांचवी बार सांसद बनने के लिए चुनाव लड़े हैं। इस बार वो महागठबंधन की तरफ से लालू यादव की पार्टी राजद के टिकट पर उतरे हैं। उनका मुकाबला राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव से है। इससे पहले वो 1991, 1996, 1999 और 2009 में यहां से सांसद रह चुके हैं। लालू यादव से राजनीतिक लड़ाई होने के बाद उन्हें लालू ने 1998 और 2004 में हराया। 2004 में ही लालू द्वारा इस्तीफा देने के बाद उप चुनाव में राजद के पप्पू यादव ने उन्हें हराया था। शरद यादव को सामाजिक न्याय और समाजवादी राजनीति का राजनीति का केंद्र माना जाता है। लेकिन इस बार के आम चुनावों में शरद यादव को बड़ा झटका लगा है। इस बार शरद यादव, राजद के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़े थे। हालांकि जदयू के दिनेश चंद्र यादव ने उन्हें बड़े अंतर से हरा दिया। दिनेश चंद्र यादव को 6,23,460 वोट मिले, वहीं शरद यादव सिर्फ 3,22,410 वोट ही मिल सके।

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उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत जेपी मूवमेंट में छात्र नेता के तौर पर की थी। 25 साल की उम्र में वो जबलपुर से पहली बार सांसद चुने गए। उनकी उम्मीदवारी उस वक्त खुद जय प्रकाश नारायण ने तय की थी। शरद यादव 1977 में भी दूसरी बार चुनाव जीतकर सांसद बने। इसी बीच वो युवा जनता दल के प्रेसिडेंट बनाए गए। शरद यादव ने तब तक दिल्ली की राजनीति में उभरते सितारे के रूप में अपनी पहचान बना ली थी। शरद यादव पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के काफी करीब जा चुके थे। हालांकि, 1980 में वो चुनाव हार गए लेकिन संजय गांधी की मौत के बाद अमेठी में 1981 में उप चुनाव हुए, तब इस सीट से राजीव गांधी चुनाव लड़ रहे थे। बतौर शरद यादव चौधरी चरण सिंह ने उन्हें जबरन इस सीट से अखाड़े में उतार दिया था। हालांकि, शरद यादव की बुरी तरह हार हुई थी। उन्हें मात्र 21,188 वोट मिले थे जबकि राजीव गांधी को 2 लाख 58 हजार 884 वोट मिले थे।

शरद ने लल्लन टॉप को दिए एक इंटरव्यू में कहा, “मैं अमेठी नहीं जाना चाहता था लेकिन चौधरी साहब ने जिद पकड़ ली थी। उन्हें ज्योतिष पर बहुत विश्वास था। तब चौधरी साहब नाना जी देशमुख के साथ एक ज्योतिष के पास लेकर गए थे। उनका कहना था कि रजीव गांधी चुनाव हार जाएंगे तो इंदिरा गांधी की सरकार गिर जाएगी।” शरद ने कहा, “मेरे मना करने पर पहली बार चौधरी साहब मान गए थे लेकिन तब तक नानजी देशमुख पीछे पड़ चुके थे। जब फिर से मना किया तो चौधरी साहब नाराज हो गए और कहने लगे कि तुम डरपोक हो, चुनाव तुम नहीं लड़ोगे, मैं लड़ूंगा। इसके बाद मैं चुनाव के लिए तैयार हो गया। वहां चौधरी साहब ने दल-बल के साथ कैम्प किया था।”

बतौर शरद यादव तब चुनावों में बूथ कैप्चरिंग होती थी। वहां भी चुनाव में खूब लाठी-डंडे चले थे और उसमें 80- 90 लोग घायल हुए थे। शरद ने यह भी बताया कि 1997 में लालू यादव के साथ जनता दल के अध्यक्ष के पद को लेकर कैसे मतभेद गहरा गए थे। बाद में कोर्ट की दखल के बाद पार्टी अध्यक्ष का चुनाव कराया गया।

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