हुगली के चिनसुराह में पीरबागान रोड पर स्थित एक छोटे से साधारण कमरे में भारतीय जनता पार्टी (BJP) का कार्यालय है। कमरे में थोड़ी-बहुत कुर्सियां और ‘भारत माता’ की एक प्रतिमा रखी हुई है। लेकिन पश्चिम बंगाल में बीजेपी की मौजूदगी और बढ़ते दायरे के पीछे इस कमरे का काफी योगदान है। कमरे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की तस्वीर के पास बैठे अरूप दास कहते हैं कि 2011 में बीजेपी कार्यालय के रूप से इसका संचालन शुरू हुआ, लेकिन तब से तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के कार्यकर्ताओं ने इसमें 4 बार आगजनी और तोड़फोड़ की। अरूप दास यहां के दफ्तर के प्रभारी हैं और बीजेपी वार्ड अध्यक्ष भी हैं। अरूप कहते हैं, “एक बार जब ऑफिस में आग लगाई गई तब मैं इसके भीतर ही मौजूद था। पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की।”
हर बार उपद्रव हुए और बीजेपी ने दोबारा अपना दफ्तर स्थापित किया। जब हुगली लोकसभा सीट से लॉकेट चटर्जी ने तृणमूल की प्रत्याशी रत्ना नाग के खिलाफ 73,362 मतों के अंतर से जीत हासिल की, तब यहीं से विजय यात्रा निकाली गई। अब बीजेपी के पास दूसरा बड़ा कार्यालय है, जो इस स्थान से 1.5 किलोमीटर दूर है। यहां अपने चेंबर में बैठे बीजेपी के जिलाध्यक्ष सुबीर नाग कहते हैं, “तृणमूल के आतंक से हम रात को अपनी बैठकें किसी अन्य के घर पर करते थे। हम वॉट्सऐप और मैसेज के माध्यम से लोगों को सूचिक करते थे। हम सार्वजनिक सभा किसी भी सूरत में तब नहीं कर सकते थे। हमने भूमिगत रहने के लिए अपनी रणनीति में कई बदलाव किए।” नाग बताते हैं कि जब सीपीएम का राज था तब टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी के समर्थक मतदाताओं से कहते थे “चुपचाप फुले छाप”, बीजेपी ने इसमें थोड़ा बदलाव किया और कहा “चुपचाप कमल छाप”।

पश्चिम बंगाल में बीजेपी के जबरदस्त प्रदर्शन के पीछे सिर्फ मतदाताओं का गोपनीय वोट ही नहीं बल्कि कार्यकर्ताओं के ज़मीन पर लागातर काम और उनके साथ सीपीएम काडर का भी सहयोग काफी अहम रहा। बीजेपी ने अपनै कैडर के इंफेंट्री डिविजन में सीपीएम कार्यकर्ताओं का साथ लेने में कोई हिचक नहीं दिखाई। अपनी डूबती जहाज के देखते हुए वामदल के कई समर्थक बीजेपी की नाव में शामिल हो लिए, जबकि काफी संख्या में वामपंथी कार्यकर्ताओं ने तृणमूल के खिलाफ खुद को जिंदा रखने के लिए बीजेपी का साथ दिया। 2017 में तृणमूल कांग्रेस के कद्दावर नेता और ममता बनर्जी के दाहिने हाथ माने जाने वाले मुकुल रॉय ने भी पाला बदल लिया और बीजेपी का दामन थाम लिया। मुकुल रॉय की बीजेपी में मौजूदगी से तृणमूल का भी एक वर्ग टूटकर ममता बनर्जी से अलग हो गया।
ममता के किले में आखिरी और प्रचंड चोट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने अपने प्रचार और भाषणों से लगा डाली। मोदी और शाह दोनों ने राज्य में 17 रैलियां कीं। सार्वजनिक चुनावी सभा में पीएम मोदी ने उस वक्त यह कहकर हलचल मचा दी कि टीएमसी के 40 एमएलए उनके संपर्क में हैं।

बीजेपी रणनीतिक स्तर पर कई मोर्चों पर चुनाव लड़ रही थी। यही वजह है कि उनका वोट प्रतिशत भी अप्रत्याशित ढंग से ममता बनर्जी के लगभग बराबरी पर आ टिका। लोकसभा चुनाव के नतीजों (Lok Sabha Election Result 2019) में बीजेपी को 40.3 फीसदी जबकि टीएमसी को 43.30 फीसदी मत प्राप्त हुए। अगर, 2014 की बात करें तो उस दौरान लोकसभा के चुनाव में बीजेपी 16.80 फीसदी और टीएमसी ने 39.05 फीसदी वोट हासिल किए थे। जबकि, लेफ्ट फ्रंट के खाते में 34 फीसदी और कांग्रेस को 9.58 फीसदी वोट आए थे। 2019 लोकसभा चुनाव में किसका वोट प्रतिशत किधर शिफ्ट किया है यह लेफ्ट और कांग्रेस के कम हुए वोट शेयर से पता चल जाएगा। एक ओर जहां बीजेपी के वोट प्रतिशत में अभूतपूर्व बढ़ोतरी हुई है, तो वहीं टीएमसी के भी वोट प्रतिशत लगभग साढ़े 4 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। मगर, लेफ्ट पार्टियों को इस बार 7.46 फीसदी और कांग्रेस को 5.61 फीसदी वोट मिला है। मतलब साफ है कि लेफ्ट पार्टियों के मत प्रतिशत का एक बड़ा हिस्सा बीजेपी के खाते में गया है।
पार्टी कार्यालय और कारकर्ताओं की मौजूदगी: पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने सबसे ज्यादा जोर ग्राउंड जीरो पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में डाली। 2014 लोकसभा चुनाव जीतने के बाद बीजेपी ने पश्चिम बंगाल पर फतह हासिल करने की कवायद पुरजोर ढंग से शुरू कर दी। हुगली से पार्टी के जिलाध्यक्ष सुबीर नाग के मुताबिक पार्टी ने कहा था, “आप लोग संगठन मजबूत करो, हवा हम लोग उठाएंगे।” नाग कहते हैं कि हमने इस दिशा में अपनी तरफ से कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। 2014 लोकसभा चुनाव जीतने के बाद बीजेपी पूरे पश्चिम बंगाल में पार्टी कार्लायल के निर्णाम पर जोर दिया। जमीने खरीदी गईं और पार्टी दफ्तर बनाए गए। कोलकाता और हुगली जैसे भीड़भाड़ वाले शहरों में जमीनें मिलनी मुश्किल थीं, तो वहां घरों को खरीदकर पार्टी दफ्तर बनाया गया। इस मुहिम ने 2016 विधानसभा चुनाव में और भी जोर पकड़ा और नतीजा रहा का मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में लेफ्ट का साख प्रत्याशित रूप से गिरी। 2011 विधानसभा चुनाव में जहां BJP 4.06 फीसदी, कांग्रेस 9.09 फीसदी, टीएमसी 38.93 फीसदी और लेफ्ट को सबसे ज्यादा 39.68 फीसदी मत हासिल हुए थे। वहीं, 2016 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी का वोट प्रतिशत 10.16 फीसदी, कांग्रेस 12.25 फीसदी, टीएमसी 44.91 फीसदी और लेफ्ट के पास 32 फीसदी रहा।

अतिरिक्त शक्तियों का सहयोग: सार्वजनिक तौर पर तो नहीं लेकिन आंतरिक तौर पर बीजेपी के लोग मानते हैं कि पश्चिम बंगाल की जीत में वामदलों के काडर का सहयोग काफी अहम साबित हुआ है। लेफ्ट पार्टियों की स्थिति को ‘द इंडिय एक्सप्रेस’ की टीम ने पहले ही भांप लिया था। एक्सप्रेस की टीम जब दम दम, बरसात और बसीरहाट क्षेत्र में सीपएम दफ्तरों पर पहुंची तो वहां पर ताला लगा हुआ मिला। बाकी बचे जगहों पर पार्टी के गिना-चुना काडर मैजूद था। दम दम स्थित सीपीएम के खाली पड़े दफ्तर में क्षेत्रीय कमेटी के सचिव गोपाल नाग चौधरी ने कहा, “तृणमूल के ख़ौफ से काफी लोगों ने बीजेपी जॉइन कर लिया है। हमने उनसे कहा कि एक चोर को भगाने के लिए डकैत को मत आने दो। बीजेपी और तृणमूल दोनो ही सांप्रदायिक राजनीति कर रहे हैं।

तृणमूल के खिलाफ गुस्सा: बीजेपी की माने तो तृणमूल के कई नेताओं ने उन्हें गोपनीय ढंग से मदद पहुंचाई। इनमें से कई तो वर्तमान विधायक हैं। बीजपुर और मानिकतला की सीट तो इसका स्पष्ट उदाहरण है। बैरकपुर लोकसभा क्षेत्र के बीजपुर से टीएमसी विधायक सुभ्रांग्शु रॉय बीजेपी में शामिल हो चुके मुकुल रॉय के बेटे हैं। परिणाम के अगले ही दिन मुकुल रॉय के बेटे ने बीजेपी में शामिल होने के संकेत दे दिए।
तृणमूल के बागियों के बीजेपी में शामिल होते ही उनके क्षेत्र में रातों-रात बीजेपी के बड़े कार्यालय अस्तित्व में आ गए। उदाहरण के तौर पर तृणमूल से भाटपारा के विधायक अर्जुन सिंह ने जैसे ही बीजेपी जॉइन किया वहां का टीएमसी दफ्तर तुरंत बीजेपी कार्यालय में परिवर्तित हो गया। अर्जुन सिंह ने बीजेपी के टिकट से बैरकपुर से जीत हासिल की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा टीएमसी के 40 विधायकों के संपर्क में होने का दावा करने वाले बयान पर पार्टी एक सीनियर नेता का कहना था, “ये लोग( 40 एमएलए) अब खुले में बाहर आएंगे और सार्वजनिक रूप से हमें जॉइन करेंगे। कई नेताओं ने ना सिर्फ अपने प्रचार की रफ्तार धीमे रखी, बल्कि घर-घर जाकर हमारे लिए वोट मांगे। मतदान के दिन इन लोगों ने काफी मदद की। तृणमूल इन लोगों को चिन्हित करने में विफल रहा है।”

ध्रुवीकरण: ऐसा नहीं है कि तृणमूल कांग्रेस ने सिर्फ अपने नेताओं को हो गंवाया है, बल्कि मतदाताओं को भी गंवाया है। ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस को जहां प्रदेश की 27 फीसदी मुस्लिम आबादी का समर्थन मिला, तो वहीं प्रतिक्रिया में हिंदू वोट संगठित हुआ और बीजेपी के पक्ष में चला गया। बीजेपी ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को अपनी पकड़ को तबसे मजबूत करना शुरू कर दिया जब कालीचक पुलिस स्टेशन पर हमला करने की वारदात राष्ट्रीय मीडिया के सुर्खियों में आया। इसके अलावा इस्लामपुर में दो हिंदू युवकों की मौत पर मचे बवाल के बाद बीजेपी ने मुद्दे को लपक लिया। इस्लामपुर में बीजेपी ने रायगंज स्थित पीड़ित के घर पर ही पार्टी कार्यालय स्थापित कर दिया। गौर करने वाली बात यह है कि यहां घटना के पहले राम नवमी और हनुमान जयंती सिर्फ आरएसएस और वीएचपी का कार्यक्रम हुआ करता था। लेकिन बाद में इन त्योहारों में भारी संख्या में लोगों ने शिरकत की। पश्चिम बंगाल में धर्म की लकीर ऐसे खींच दी गई कि मतदाता हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में दो भागों में बंट गया। मुस्लिम की एक बड़ी तादाद ममता बनर्जी और हिंदुओं की एक बड़ी संख्या बीजेपी के साथ हो ली।