Lok Sabha Election 2019: 1952 से लेकर अब तक कुल 16 बार लोकसभा के चुनाव हो चुके हैं लेकिन इतने वर्षों में सिर्फ एक ही मुस्लिम सांसद चुनकर राजस्थान से संसद पहुंच सका है। साल 1984 और 1991 के लोकसभा चुनावों में अयूब खान ने झुंझुनू से कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज की है। वो अकेले ऐसे शख्स रहे जो इस राज्य से मुस्लिम सांसद बन सके। पिछली बार यानी 2014 में 16वीं लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 13 मुस्लिमों को टिकट दिया था पर उनमें से एक भी जीत दर्ज करने में नाकाम रहे। जबकि भाजपा ने 16 बार हुए लोकसभा चुनाव में सिर्फ एक बार एक मुस्लिम प्रत्याशी को मैदान में उतारा था। साल 1979 में बीकानेर सीट पर हुए चुनाव में भाजपा ने महबूब अली को उतारा था लेकिन उनकी हार हुई थी। तब से भाजपा ने एक भी उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया है।
कांग्रेस के टिकट पर दो बार चुनाव जीत चुके अयूब खान नरसिम्हा राव सरकार में कृषि राज्य मंत्री भी रह चुके हैं। राजनीति में आने से पहले खान भारतीय सेना में रिसलदार के पद पर तैनात थे। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में सराहनीय और अदम्य साहस दिखाने के लिए उन्हें गैलन्टरी अवार्ड भी दिया गया था। खान ने कुल चार बार उस सीट से चुनाव लड़ा लेकिन बाद के दो चुनाव वो हार गए। 2011 की जनगणना के मुताबिक राजस्थान की कुल आबादी में मुस्लिमों की हिस्सेदारी करीब 10 फीसदी है, बावजूद इसके मुस्लिमों के प्रति उदासीनता है।
देश के पहले आम चुनाव यानी 1952 में कांग्रेस ने जोधपुर से यासीन नूरी को उतारा था लेकिन वो जीत नहीं सके। पांच साल बाद 1957 में नूरी को फिर से वहीं से उम्मीदवार बनाया गया। उनके अलावा कांग्रेस ने भीलवाड़ा से दूसरे मुस्लिम कैंडिडेट फिरोज शाह को उतारा लेकिन दोनों चुनाव हार गए। चूंकि अल्पसंख्यक समुदाय का नेता चुनाव नहीं जीत पा रहा था इसलिए कांग्रेस ने 1962, 1967 और 1972 में राज्य में एक भी मुस्लिम प्रत्याशी नहीं उतारा। आपातकाल के बाद कांग्रेस ने 1977 में चुरु से मोहम्मद उस्मान आरिफ को उतारा लेकिन वो भी चुनाव हार गए। 1999 में भी कांग्रेस ने झालावाड़ से अबरार अहमद को उतारा लेकिन उनकी भी हार हुई।
साल 2004 में कांग्रेस ने अजमेर से हबीबुर्र रहमान को उतारा, 2009 में चुरु से रफिक मंडेलिया को उतारा लेकिन दोनों चुनाव हार गए। कांग्रेस ने 2014 में क्रिकेटर मोहम्मद अजहरुद्दीन को टोंक-सवाई माधोपुर से उतारा लेकिन वो भी मोदी लहर में चुनाव हार गए। मोदी लहर में भाजपा ने राज्य की सभी 25 सीटों पर जीत दर्ज की थी। राजनीतिक जानकार कहते हैं कि अल्पसंख्यक समुदाय के उम्मीदवार संसाधनों और सामाजिक समीकरणों में कमजोर स्थिति की वजह से चुनाव हार जाते हैं।