कोलकाता। Lok Sabha Election 2019: लोकसभा चुनाव में बंगाल की सियासत गरमाई हुई है। खासकर, कोलकाता से सटे उत्तर 24 परगना जिले की दो सीटें किसी भी पार्टी के लिए काफी मायने रखती है। ये सीटें बारासात और बशीरहाट हैं। ये दोनों ही सीटें तृणमूल कांग्रेस के पाले में हैं। इस बीच बीजेपी ने जिस प्रकार बंगाल में अपने जनाधार और उपस्थिति को बढ़ाया है, उससे लगता है उसने यहां पार्टी नं. 2 की हैसियत हासिल कर ली है। आमतौर पर इन दोनों सीटों पर तृणमूल और बीजेपी के बीच लड़ाई मानी जा रही है। पर, यहां दूसरी पार्टियां भी मैदान में हैं। खासकर, लेफ्ट फिर से सिर उठाने की जुगत में हैं। ऐसे में तृणमूल के लिए इन दोनों सीटों को बचाना जहां चुनौतीपूर्ण है, वहीं बीजेपी और लेफ्ट भी यहां अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। इन दोनों सीटों पर राजनीति के खिलाड़ी, ग्लैमर और नये-नवेले नेता अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।
बारासात: बारासात लोकसभा सीट कोलकाता से सटी हुई है। इस सीट पर लम्बे अर्से से लेफ्ट का कब्जा रहा है। उसमें भी फॉरवर्ड ब्लॉक यहां सबसे अधिक बार जीती है। यहां पर आमतौर पर लेफ्ट और कांग्रेस के बीच ही मुकाबला रहा है। वर्ष 2009 के चुनाव में ममता की लहर में तृणमूल कांग्रेस की डॉ. काकोली घोष दस्तिदार ने यहां जीत हासिल की थी। इस बार भी वही मैदान में हैं। इसके साथ ही फारवर्ड ब्लॉक के हरिपद विश्वास उन्हें कड़ी टक्कर देने में लगे हुए हैं। बीजेपी ने यहां से मृणाल कांति देबनाथ को उतारा है। काकोली मुखर रहने वाली नेता हैं। इसके साथ ही वह मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की करीबी भी हैं।
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वर्ष 2009 के चुनाव में उन्होंने 50% से अधिक वोट हासिल किया था। वर्ष 2014 में बदले हुए माहौल में हर ओर मोदी की लहर थी, लेकिन बंगाल इससे अछूता रहा। इसका असर इस सीट पर भी देखने को मिला था। यहां काकोकी घोष दोबारा चुनाव जीतने में सफल रहीं। साल 2014 में उन्हें 5 लाख से ज्यादा वोट मिले और उन्होंने फॉरवर्ड ब्लॉक के मुर्जता हुसैन को 1,22,901 वोटों से हराया। गत् चुनाव में तृणमूल को 41.39%, बीजेपी को 23.37% एवं लेफ्ट को 27.75% वोट मिले थे। इस लोकसभा क्षेत्र में अधिकांश क्षेत्र शहरी है। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक बरसात की कुल आबादी 2,78,235 है जिनमें 1,40,882 (51%) पुरुष और 1,37,613 (49 %) महिलाएं हैं। बारासात में 4.77% आबादी गांवों में रहती है, जबकि 65.23% लोग शहरों में रहते हैं। इनमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का अनुपात क्रमशः 18.8 और 1.45 % है।
बारासात संसदीय क्षेत्र के तहत सात विधानसभाएं आती हैं। इनमें अशोक नगर, हाबरा, राजारहाट न्यू टॉउन, बारासात, बिधाननगर, मध्यमग्राम, देगंगा शामिल हैं। इन सात विधानसभा सीटों में से छह पर तृणमूल कांग्रेस के विधायक हैं। यहां पर तृणमूल एवं बीजेपी के बीच जमकर झड़प हो चुकी है। हालात यह है कि कोई किसी से कम नहीं पड़ना चाहता है। दोनों दलों के नेताओं एवं समर्थकों के बीच आरोप-प्रत्यारोप से लेकर झड़प तक की घटनाएं घट चुकी हैं। यहां काकोली घोष दस्तीदार ने बीजेपी पर पैसे बांटने का आरोप लगाया था, तो बीजेपी नेता मुकुल रॉय ने काकोली पर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने कुछ लोगों के साथ मिलकर घर के बाहर खड़ी गाड़ियों में तोड़फोड़ की। दस्तीदार की शिकायत पर पुलिस ने एक बीजेपी कार्यकर्ता के घर में छापेमारी की थी। बारासात अंचल में पिछले कुछ समय में बीजेपी का जनाधार बढ़ा है। उधर, विभिन्न घोटालों के कारण सत्ताधारी तृणमूल की छवि पर असर पड़ा है। पिछली बार लेफ्ट से जीत का अंतर 10 फीसदी के करीब था। ऐसे में यहां तृणमूल जीत हासिल करती भी है, तो उसका जीत का अंतर घट सकता है।
बशीरहाट: उत्तर 24 परगना जिले का बशीरहाट लोकसभा केंद्र मूल रूप से मुस्लिम बहुल केंद्र है। यहां पर हमेशा से लेफ्ट और कांग्रेस के बीच फाइट रही ही है। वर्ष 2009 से यह सीट तृणमूल के पास है। पार्टी ने हर बार उम्मीदवार बदला है। इस बार पार्टी ने ग्लैमर का सहारा लिया। तृणमूल ने इस बार मौजूदा सांसद इदरिश अली के बदले बांग्ला फिल्मों की अभिनेत्री नुसरत जहां को उतारा है। यहां नुसरत का मुकाबला सीपीआई के पल्लव सेनगुप्ता से है। बीजेपी के सायंतन बसु भी मैदान में ताल ठोंक रहे हैं। उधर, कांग्रेस ने इस सीट से काजी अब्दुर रहीम को टिकट दिया है। पार्क स्ट्रीट के तथाकथित रेप केस में विवादों में रहने वाली बंगाली फिल्म स्टार नुसरत जहां पर दांव लगाकर ममता बीजेपी को पश्चिम बंगाल में चारों खाने चित्त करना चाहती है।
इन चुनावों में नुसरत जहां न सिर्फ एक अभिनेत्री से राजनीति का सफर करने वाली नेता मानी जा रही हैं, बल्कि इन दिनों सोशल मीडिया पर भी उनके खूब चर्चे हैं। बीजेपी का यहां पर जनाधार बढ़ा है। ऐसे में नुसरत जहां के जरिए ममता ने युवाओं और अल्पसंख्यकों को अपने पाले में लाने की कोशिश की है। उधर बसीरहाट एक भी ऐसी सीट है, जहां बीजेपी अपनी जीत की उम्मीद कर रही है। पुराने रिकॉर्ड बताते हैं कि वर्ष 1980 से लेकर 2009 तक यह सीट लेफ्ट के कब्जे में रही। 1980 से लेकर 1989 तक इंद्रजीत गुप्त सांसद रहे। इसके बाद 1989 से लेकर 1996 तक मनोरंजन सुर ने इस सीट से जीत हासिल की। इसके बाद अजय चक्रवर्ती 1996 से लेकर 2009 तक लगातार इस सीट से जीतकर संसद पहुंचे। वर्ष 2009 में अजय चक्रवर्ती को टीएमसी के नुरुल इस्लाम ने शिकस्त दी और तब से लेकर यह सीट तृणमूल के पास है।
बशीरहाट लोकसभा सीट बांग्लादेश की सीमा से लगता हुआ इलाका है। यहां की 2,217 किलोमीटर की सीमा पड़ोसी देश से लगती हुई है। पूरा इलाका मुस्लिम बहुल है। यहां की आबादी का करीब 65 फीसदी खेती और मछली पालन पर आश्रित है। साक्षरता दर औसत तौर पर कम है। यह सीट मुस्लिम बहुल होने के साथ ही बांग्लादेश की सीमा से सटा हुई है। यहां पर साम्प्रदायिक तनाव सामने आया था, जिसे लेकर सत्ताधारी दल की किरकिरी भी हुई थी। इसके साथ ही यहां पर अवैध तस्करी का मसला भी बड़ा है। बीजेपी इसे भुनाना चाहती है।
इस लोकसभा सीट के अंतर्गत सात विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें- बादुडिय़ा, हारोआ, मीनाखां, संदेशखाली, बशीरहाट दक्षिण, बशीरहाट उत्तर, हिंगलगंज शामिल हैं। 2004 के चुनाव में स्वरूपनगर विधानसभा सीट को भी इसमें मिला लिया गया था। इस सीट पर ममता ने नुसरत के जरिए बड़ा दांव खेला है। पार्टी की बिगड़ी इमेज को सुधारने के लिए उन्होंने यहां इदरिश अली का पत्ता काटकर एक गैर-राजनीतिक चेहरे को मैदान में उतार दिया है। उधर, धर्मीय मुद्दे पर ही सही बीजेपी को अपनी जीत की उम्मीद है। हालांकि, लेफ्ट ने फिर से इस सीट पर जीत हासिल करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी है। (कोलकाता से बिपिन राय की रिपोर्ट)
