Lok Sabha Election 2019: महागठबंधन के कुछ दलों पर अपने फायदे के लिए उम्मीदवारों को थोपने का आरोप लगा है। उम्मीद थी कि भाजपा को हराने के नाम पर कार्यकर्ता इन उम्मीदवारों को स्वीकार कर लेंगे लेकिन दांव उल्टा पड़ता नजर आ रहा है। कार्यकर्ताओं के साथ इन उम्मीदवारों का रिश्ता नहीं बन पा रहा है। नतीजा यह कि आधे दर्जन से अधिक उम्मीदवार दलों के लिए बोझ बनते नजर आ रहे हैं। शिवहर, मधुबनी, पूर्वी एवं पश्चिमी चंपारण, नालंदा और मुजफ्फरपुर के उम्मीदवारों को लेकर ऐसी ही खबरें चल रही हैं।
मधुबनी सीट: बता दें कि मधुबनी की गिनती वीआईपी सीटों में होती है। यहां बद्री पूर्वे को उम्मीदवार बनाए जाने के ऐलान के बाद कांग्रेस के डा. शकील अहमद विरोध में उतर गए। समर्थक उन्हें नामांकन के लिए कह रहे हैं। उनका फैसला होना बाकी है। राजद के वरिष्ठ नेता अली अशरफ फातमी ने निर्दलीय चुनाव लडऩे का फैसला कर लिया है। पूर्व सांसद मंगनी लाल मंडल भी झंझारपुर से बेटिकट हुए। उन्हें मधुबनी से उम्मीद थी। बद्री पूर्वे की घोषणा के सप्ताह भर बाद उन्होंने राजद से नाता तोड़ लिया। बताया जाता है कि मंडल अपने इलाके के प्रभावशाली नेता हैं।
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शिवहर सीट: बता दें कि शिवहर में पत्रकार फैसल अली को राजद ने टिकट दिया है। 1989 के बाद चार बार यहां जनता दल या राजद की जीत हुई। कई बड़े कद के लोग राजद के उम्मीदवार थे। कहा जा रहा है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल के दबाव में राजद ने फैसल अली को उम्मीदवार बनाया है। फैसल को कहा गया था कि नामांकन के पहले एक बार क्षेत्र का जायजा ले लें। हालांकि इसका फायदा नहीं दिख रहा है। उनके विरोध में कई निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव लडने की तैयारी कर रहे हैं। महागठबंधन के घटक रालोसपा ने चार में से दो उम्मीदवार उतार दिए हैं। पूर्वी चंपारण में कांग्रेसी पृष्ठभूमि के आकाश कुमार सिंह हैं। पहले ही दिन भाषण देने के सवाल पर राजद के लोगों ने उनका विरोध किया। जबकि पश्चिमी चंपारण के रालोसपा उम्मीदवार ब्रजेश कुशवाहा का भी वही हाल है। पूर्व विधायक राजन तिवारी उनका विरोध कर रहे हैं।
वीआईपी के दूसरे उम्मीदवार डा. राजभूषण चौधरी के मामले में राजद कार्यकर्ताओं में अधिक दिलचस्पी नहीं दिखाई दे रही है। इसलिए कि 1989 के बाद 1998 को छोड़कर हमेशा ये सीट लालू प्रसाद के विरोधियों के कब्जे में रही है। 1998 में कैप्टन जयनारायण प्रसाद निषाद राजद उम्मीदवार की हैसियत से चुनाव जीते थे। अगले ही साल वे जदयू में चले गए और फिर सांसद बने। हालांकि राजद की दिलचस्पी भले ही न हो लेकिन कांग्रेस जरूर दिलचस्पी दिखा रही थी। पूर्व विधायक विजेंद्र चौधरी टिकट के लिए ही कांग्रेस में शामिल हुए थे। पिछले चुनाव में कांग्रेस के डा. अखिलेश प्रसाद सिंह को करीब ढाई लाख वोट मिला था। तब जदयू के उम्मीदवार रहे विजेंद्र चौधरी को 85 हजार वोट मिले थे। इन्हीं वोटों के आधार पर कांग्रेस से विजेंद्र के दावे को मजबूत माना जा रहा था। लेकिन, वीआईपी के टिकट पर डा. चौधरी मैदान में आ गए।
मुजफ्फरपुर की तरह नालंदा लोकसभा क्षेत्र पर भी लालू प्रसाद यादव की पकड़ मजबूत नहीं रही। एकीकृत जनता दल के दिनों में नालंदा भाकपा के कोटे में रहता था। बाद के दिनों में समता पार्टी और जदयू का कब्जा रहा। इसलिए राजद ने कभी इस सीट पर जीत के लिए लडने का मंसूबा नहीं बांधा। फिर भी राजद के कई नेता इसबार चुनाव लडना चाहते थे। लेकिन सीट जीतन राम मांझी हम के कोटे में चली गई। यहां से हम के अशोक आजाद उम्मीदवार बने हैं। ये राजद कार्यकर्ताओं के साथ तालमेेल बिठाने की कोशिश कर रहे हैं। मुकेश सहनी भले ही अपनी पार्टी वीआईपी के संस्थापक हैं। लेकिन, खगडिया के लिए ये भी थोपे हुए उम्मीदवार की श्रेणी में ही आते हैं।
1989 से अब तक के आठ चुनावों में चार बार इस क्षेत्र से लालू प्रसाद के उम्मीदवार की ही जीत हुई है। पिछली बार राजद उम्मीदवार कृष्णा कुमारी को दो लाख 37 हजार वोट आया था। इस पृष्ठभूमि को लेकर राजद कार्यकर्ताओं को सीट न मिलने का मलाल है। फिर भी एनडीए के कमजोर उम्मीदवार के चलते कार्यकर्ताओं की मजबूरी का लाभ सहनी को मिल सकता है।
एनडीए कार्यकर्ताओं ने दिखाया रास्ता: थोपे उम्मीदवारों से पार पाने का रास्ता सीतामढ़ी के एनडीए कार्यकर्ताओं ने दिखाया। यह अलग बात है कि महागठबंधन के कार्यकर्ता इसका अनुसरण नहीं कर रहे हैं। जदयू नेतृत्व ने डा. बरुण कुमार को सीतामढ़ी का उम्मीदवार बना दिया। ऐसे में डा. साहब खुशी-खुशी क्षेत्र में लौटे। एनडीए के कार्यकर्ताओं ने योजनाबद्ध ढंग से उनका विरोध किया। बता दें कि यह एक अहिंसक विरोध था। किसी ने डा. साहब को बधाई तक नहीं दी। वैसे, चुनाव के प्रति डा. साहब की विरक्ति के कई किस्से हैं। एक किस्सा यह भी है कि क्षेत्र के किसी दबंग ने उन्हें धमका दिया था। लेकिन, असल मामला यही है कि कार्यकर्ताओं के अहिंसक विरोध ने उन्हें सिंबल लौटाने के लिए मजबूर कर दिया। (बिहार से राजन कुमार की रिपोर्ट)

