दो-ढाई महीने पहले तक वे एक आम गृहिणी थीं। विधायक पति सत्यजित विश्वास और अपने छोटे बेटे को संभालने में ही उनका दिन बीत जाता था। लेकिन सरस्वती पूजा की रात उनके जीवन में वैधव्य की कालिमा लेकर आया और उनका जीवन अचानक ही बदल गया। पति के गम में बहने वाले आंसू अभी सूखे भी नहीं थे कि मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने उनको लोकसभा चुनावों में नदिया जिले की रानाघाट सीट से पार्टी का उम्मीदवार घोषित कर दिया। उसके साथ ही अब रूपाली विश्वास के जीवन में एक और लड़ाई शुरू हो गई।
रूपाली की कहानी राजनीति फिल्म में उभरते राजनेता पृथ्वीराज प्रताप की विधवा इंदु सेक्सरिया से काफी मिलती-जुलती है। इन दोनों को बिना किसी पूर्व अनुभव के राजनीति में धकेल दिया गया। इंदु की तरह ही अब युवा रूपाली भी अपने पति की विरासत को आगे बढ़ाते हुए उनके अधूरे कार्यों को पूरा करना चाहती हैं। रूपाली ने बीते महीने ही 25 साल पूरे किए हैं। यानी अबकी लोकसभा में वे बंगाल की सबसे युवा उम्मीदवार हैं। सत्यजित की सरस्वती पूजा के दिन घर के पास बने एक पंडाल में सरेआम गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। लेकिन इन चुनावों में वे मर कर भी जीवित हैं।
पार्टी के नेता लगभग हर चुनावी रैली में लोगों को सत्यजित का हवाला देते हैं। तमाम नेता अपने कार्यकर्ताओं को यदा दिलाना नहीं भूलते कि सत्यजित ने कृष्णनगर इलाके से पार्टी के उम्मीदवार को 50 हजार से ज्यादा वोटों की लीड दिलाने का वादा किया था। पति का गम भुला कर चुनाव मैदान में उतरना रूपाली के लिए बेहद मुश्किल रहा है। लेकिन अब तक वे बहादुरी से इस मोर्चे पर डटी रही हैं। रूपाली कहती हैं कि उन्होंने सत्यजित के बिना जीवन की कल्पना तक नहीं की थी। उनकी शादी दिसंबर, 2016 में हुई। उनका डेढ़ साल का एक पुत्र है। वे कहती हैं कि उन्होंने अपने पति के अधूरे सपनों को पूरा करने के लिए राजनीति में उतने की चुनौती स्वीकार करने का फैसला किया। अब उनकी सभाओं में बेटा गोद में ही रहता है।
स्थानीय लोग मानते हैं कि सत्यजित की मौत ही रूपाली को यहां विजयी बनाएगी। उनकी हर रैली में सहानुभूति का ज्वार उमड़ पड़ता है। तृणमूल कांग्रेस ने भी इसी सहानुभूति लहर का पूर्वानुमान लगा कर रूपाली को टिकट देने का फैसला किया था। रूपाली के छोटे बेटे को देख कर खासकर महिलाओं की आंखें बरबस ही भीग जाती हैं। अपनी रैलियों में वे ज्यादा बोल नहीं पातीं। कहती हैं कि अब तक आपने मेरे पति का समर्थन किया था, अब मेरा करें। वर्ष 2014 में तृणमूल के टिकट पर तापस मंडल यहां जीते थे। अबकी उनकी जगह पार्टी ने रूपाली को मैदान में उतारा है। इस सीट पर मतुआ समुदाय के वोट निर्णायक हैं। माकपा की ओर से यहां रमा विश्वास मैदान में हैं तो भाजपा ने जगन्नाथ सरकार को अपना उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस की ओर से इस सीट पर मिनती सरकार अपनी किस्मत आजमा रही हैं। भाजपा उम्मीदवार के समर्थन में इसी सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इलाके में चुनावी रैली कर चुके हैं। लेकिन रूपाली को भरोसा है कि लोग उनके प्रति ही समर्थन जताएंगे।
