गलत पार्टी में सही आदमी- यह दृष्टिकोण वैशाली से राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के उम्मीदवार रघुवंश प्रसाद सिंह के लिए सबसे बड़ा रोड़ा है। रघुवंश प्रसाद सिंह के सामने कद्दावर नेता तथा एमएलसी दिनेश सिंह की पत्नी वीणा देवी लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) से मैदान में हैं। क्षेत्र में लोगों के बीच यह आम धारणा है कि दोनों ही प्रत्याशी राजपूत समाज से संबंध रखते हैं, लेकिन वीणा देवी इस समाज से ज्यादा से ज्यादा वोट हासिल कर सकती हैं।

वैशाली लोकसभा सीट पर वर्तमान में जो जातीय समीकरण है, ठीक उसी समीकरण के आधार पर रघुवंश प्रसाद सिंह 1996 से लेकर 2014 तक लगातार यहां से बतौर सांसद क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते रहे। लेकिन, 2014 में मोदी लहर ने उनके विजय रथ को रोक दिया था। 2019 की जंग में रघुवंश प्रसाद के लिए दिनेश सिंह का उनके विरोधी खेमें में शामिल होना नुकसान पहुंचाने वाला साबित हो सकता है। 13 सालों तक दिनेश सिंह बतौर पोल मैनेजर आरजेडी के नेता थे। आज की तारीख में उनके नाम की वजह से वीणा देवी का पलड़ा भारी है। सिंह को उम्मीद है कि आरजेडी में होने की वजह से उन्हें राजपूत समाज के अलावा मुस्लिम और यादव वोट उनके पक्ष में जमकर मतदान करेंगे। साथ ही साथ अति पिछला तथा पिछड़ा वर्ग जिनमें साहनी और कुशवाहा समेत अन्य जातिया हैं, उनका भी वोट उन्हें मिलेगा। लेकिन, जमीनी हकीकत यह है कि इनमें से अधिकांश जातियों के लोग आज भी बीजेपी के साथ खड़े दिखाई देते हैं।

आंकड़ों के मुताबिक वैशाली लोकसभा क्षेत्र में लगभग 3 ला राजपूत, 2.5 लाख यादव, 1.5 लाख मुसलमान, 1.25 लाख कुशवाहा और एक लाख भूमिहार जातियों के लोग हैं। राजपूत बहुल गांव बेरुआ में लोगों का कहना है कि 90 के दशक में ‘रघुवंश बाबू’ ने सांसद निधि से उनके यहां बिजली का ट्रांसफार्मर लगवाया था। लेकिन, उसके बाद से गांव में कभी भी दिखाई नहीं दिए। गांव के मुखिया विजय कुंवर कहते हैं कि बीजेपी को वोट देने की वजह एक मात्र ‘नरेंद्र मोदी’ ही हैं। अपनी मोटरसाइकिल पर वीणा देवी का स्टिकर लगाए हुए विजय कुंवर कहते हैं, “हम उनके (वीणा देवी) के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं।” गौर करने वाली बात यह भी है कि इस क्षेत्र में गरीब सवर्णों को मिले 10 फीसदी आरक्षण का लाभ भी बीजेपी को मिलता दिखाई दे रहा है। कुंवर कहते हैं, “वीपी सिंह ने मंडल कमिशन की सिफारिशों का लागू किया, लेकिन मोदी ने हमारे लिए 10 फीसदी आरक्षण मुहैया कराया।”

बेरुआ गांव के ही प्रमोद सिंह जो कि महाराष्ट्र के पुणे शहर में रहते हैं, उनका कहना था, “अगर आरजेडी ने किसी गैर राजपूत को यहां से मैदान में उतारा होता, तो हम रघुवंश का समर्थन करते।” वहीं, बांगरा गांव के कुशवाहा जाति से संबंध रखने वाले बासुदेव भगत बताते हैं कि उपेंद्र कुशवाहा के महागठबंधन में शामिल होने के बावजूद आज भी अधिकांश कुशवाहा समाज के लोग एनडीए के साथ हैं। इसी तरह मल्लाह जाति के कद्दावर नेता मुकेश साहनी (विकासशील इंसान पार्टी) भी महागठबंधन के साथ शामिल हुए गए। उनके प्रभाव वाले गांव हरिपुर में भोली साहनी कहते हैं, “हमने साहनी को नहीं देखा। मोदी ने हमें रसोई गैस दिया है।” इसी तरह शिवदुलारी देवी (मल्लाह) कहती हैं कि उनके व्यवसाय (मछली पकड़ने का) 2007 लगातार गिरता जा रहा है। गांव में बाढ़ का पानी भी नहीं पहुंचता। किसी नेता ने उनकी मदद नहीं की। लेकिन, उन्होंने मोदी के बारे में सिर्फ अच्छा ही सुना है। मुकेश साहनी को एनडीए में शामिल होना चाहिए था।