विपक्षी एकता की पटना में पहली बैठक संपन्न हो गई। मीडिया से बात की गई, सभी नेताओं ने बारी-बारी से अपने विचार रखे। कह सकते हैं कि समान बयान दिया गया- बीजेपी को हराने के लिए सभी एकजुट होंगे। लेकिन फिर बारी आई राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव की, वहीं जो अपनी सियासत के लिए तो जाने ही जाते हैं, बयानों से बड़ा खेल करने में भी माहिर हैं। ऐसे में एक बार फिर जब माइक लालू के सामने आया, उन्होंने कुछ ऐसा बोल दिया जिस पर शुरुआत में हंसी आई, लेकिन बाद में लगा कि कोई बड़ा मैसेज देने का काम हुआ है।
लालू ने की राहुल की शादी की बात
असल में विपक्षी एकता वाली बैठक के बाद लालू प्रसाद यादव ने राहुल गांधी को लेकर मीडिया से बात करते हुए बोला कि दाढ़ी मत बढ़ाइए और शादी करिए। अभी भी देर नहीं हुई है। आपको जल्दी शादी कर लेनी चाहिए। हम सब आपकी शादी में बाराती चलेंगे। उन्होंने इस बीच सोनिया गांधी का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि आपकी मम्मी हमेशा कहती थीं कि हमारी बात नहीं मानता है, आप ही लोग इसकी शादी करवाइए। इसलिए अब आप हमारी बात मानिए और शादी कर लीजिए।
राजनीति में शादी की परिभाषा अलग
अब मीडिया में तो इस बयान को जैसे बोला गया, उसी तरह चला दिया गया। लेकिन राजनीतिक गलियारों में दो शब्दों ने जोर पकड़ा- एक रहा दूल्हा और दूसरा रहा- बाराती। अब आम बोलचाल में तो इन दोनों ही शब्दों का वहीं मतलब है, जो कोई सामान्य व्यक्ति सोचेगा, लेकिन इसकी राजनीतिक परिभाषा कुछ अलग रह सकती है। इसे ऐसे समझिए- दूल्हे से मतलब पीएम, बाराती से मतलब पूरा विपक्षा, अब अगर लालू के बयान को इस नजरिए से समझा जाए तो उन्होंने कह दिया है कि राहुल गांधी को पीएम उम्मीदवारी सौंप दी जाए और पूरा विपक्ष उनके साथ चलने वाला है।
टाइमिंग का सारा खेल, लालू की मैसेजिंग
यहां ये समझना जरूरी है कि अभी तक इसे लेकर कोई औपचारिक बयान नहीं दिया गया है, सिर्फ इशारों में कुछ बातों का जिक्र किया गया है जिस वजह से राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज है। वैसे भी सियासत में कोई भी बात ऐसे ही नहीं बोली जाती है। विपक्षी एकता वाली बैठक के बाद भी लालू का यूं अचानक से राहुल की शादी का जिक्र करना अजीब लगत है। इसी वजह से राजनीतिक पंडित मान रहे हैं कि लालू ने राहुल की दावेदारी वाला संदेश देने का काम किया है।
क्या विपक्ष को राहुल का चेहरा स्वीकार?
अब अगर लालू ने ऐसा कोई संदेश दिया भी है, फिर भी इस समय राहुल गांधी पीएम उम्मीदवार नहीं बन सकते हैं। इसका कारण ये है कि वे अभी मोदी सरनेम वाले मामले में फंसे हुए हैं और उसी वजह से उन्हें चुनाव लड़ने से रोक दिया गया है। लेकिन अगर मान लीजिए कि राहुल गांधी को राहत मिल जाती है, तो कांग्रेस राहुल गांधी को ही पीएम दावेदारी के लिए उतारेगी, इसमें कोई शक नहीं लगता। सवाल तो ये है कि क्या विपक्ष इसे स्वीकार करेगा? जो ममता बंगाल में कांग्रेस को आड़े हाथों ले रही है, जो लेफ्ट केरल में टक्कर दे रही है, जो AAP ऐलान कर चुकी है कि कांग्रेस के साथ नहीं जाएगी, ऐसे में राहुल की उम्मीदवारी को समर्थन कितना मिल पाएगा?
राहुल गांधी की सियासी ताकत क्या?
वैसे राहुल गांधी के साथ कुछ प्लस प्वाइंट जाते हैं। पहला ये कि उनकी छवि किसी एक राज्य तक सीमित नहीं है, यानी कि वे सही मायनों में राष्ट्रीय नेता हैं। दूसरा ये कि भारत जोड़ो यात्रा ने उनका मेकओवर करने का काम किया है, अब लोगों की नजर में और गंभीर नेता माने जाने लगे हैं। तीसरा ये कि कर्नाटक जीत ने उनकी मोहब्बत की दुकान वाले दांव को हिट कर दिया है, यानी कि प्यार की राजनीति लोगों को रास आ रही है। इसके अलावा देश में युवा वोटर सबसे ज्यादा है, राहुल गांधी लगातार उनके मुद्दे उठाते रहते हैं, ऐसे में ये बात भी कांग्रेस नेता के फेवर में जा सकती है।
बीजेपी के नेरेटिव को लालू का जवाब
यहां ये समझना भी जरूरी है कि बीजेपी पिछले कई सालों से विपक्ष के खिलाफ एक नेरेटिव सेट कर रही है। उस नेरेटिव के तहत सवाल पूछा जाता है- मोदी बनाम कौन। अब ये ‘कौन’ बीजेपी की संजीवनी है और विपक्ष की सबसे बड़ी कमजोरी। अगर लालू प्रसाद यादव के शादी वाले बयान को डीकोड किया जाए, तो लगता है कि पहली ही बैठक के जरिए उन्होंने सीधे बीजेपी को संदेश देने का काम किया है, बता दिया है कि राहुल गांधी को विपक्ष का चेहरा बनाया जाएगा। वैसे लालू ने कहा कि मम्मी (सोनिया) चाहती हैं कि राहुल जल्द शादी करें, सच्चाई तो ये भी है कि सोनिया गांधी भी राहुल को पीएम बनते देखना चाहती हैं। अध्यक्ष पद जरूर गांधी परिवार से दूर गया है, लेकिन पीएम पद पर अभी तक दावा नहीं छोड़ा गया है।
लालू का कांग्रेस के साथ कैसा रिश्ता?
अब लालू प्रसाद यादव के इस शादी वाले बयान को देख समझा जा सकता है कि वे वर्तमान में तो जरूर कांग्रेस को बीजेपी के खिलाफ एक मजबूत पार्टी मानते हैं। इतिहास बताता है कि बिहार की राजनीति में लालू की आरजेडी और कांग्रेस ने कई चुनाव साथ में लड़े हैं, लेकिन बड़ी बात ये है कि कांग्रेस उन चुनावों में जूनियर पार्टी की हैसियत में रही है। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि 1990 से पहले तक बिहार में कांग्रेस एक मजबूत पार्टी थी, इतनी मजबूत की कई मौकों पर प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई। लेकिन 1990 के बाद खेल बदल गया, जैसे-जैसे लालू की ताकत बढ़ी, कांग्रेस सिकुड़ती चली गई। कह सकते हैं कि लालू के उदय के साथ बिहार में कांग्रेस का पतन शुरू हो गया।
वैसे इस सब के बावजूद भी लालू प्रसाद यादव ने कांग्रेस का समर्थन उस समय दिया, जब कोई भी साथ ना खड़ा था। जब सोनिया गांधी को विदेशी मूल बताकर कई नेता पार्टी छोड़ रहे थे, शरद पवार ने अलग पार्टी बना डाली थी, उस समय सामने से आकर लालू ने सोनिया को देश की बहू बताया था। कुछ उसी अंदाज में अब राहुल गांधी की भी लालू ने सभी के सामने तारीफ की है। जोर देकर कह दिया है कि अडानी का मुद्दा उठाकर राहुल ने अच्छा किया, लोकसभा में उनका प्रदर्शन बढ़िया है। ये तारीफ क्या राहुल को पीएम कुर्सी के भी पास ले जा सकती है, क्या सही में विपक्ष बाराती बन कांग्रेस की धुन पर नाचेगा? इसका जवाब तो आने वाली विपक्षी एकता की बैठक और राहुल पर चल रहे मोदी सरनेम केस के फैसले से मिलेगा।