केरल, भारत का दक्षिणी राज्य अपनी खूबसूरती और सियासत दोनों की वजह से चर्चा में रहता है। इस राज्य के अपने मुद्दे हैं, अपनी भाषा है और अपने कुछ समीकरण हैं। बड़ी बात ये है कि जिस तरह की राजनीति उत्तर भारत में देखने को मिलती है, केरल में वैसा कुछ नहीं होता है। यहां पर मंदिरों के नाम पर वोट नहीं डलते हैं, यहां पर सिर्फ जाति आधारित राजनीति नहीं होती है, बल्कि स्थानीय मुद्दे और चेहरे भी खेल बनाते-बिगाड़ते दिख जाते हैं। इसी वजह से केरल में बीजेपी की दस्तक इतने सालों बाद भी नहीं हो पाई है। लेकिन फिर भी लोकसभा चुनाव के लिहाज से इस राज्य का जिक्र करना जरूरी है।

केरल में कितनी लोकसभा सीटें, कितने क्षेत्र

केरल से लोकसभा की कुल 20 सीटें निकलती हैं। देश की सियासत में केरल की ये 20 सीटें किसी का भी खेल बिगाड़ भी सकती हैं और बना भी सकती हैं। बड़ी बात ये है कि जो बीजेपी इस समय 400 पार के सपने देख रही है, उसे भी दक्षिण के इसी राज्य में कुछ कमाल दिखाने की जरूरत है। केरल को मोटा-मोटा तीन क्षेत्रों में बांटा जा सकता है- उत्तर केरल, मध्य केरल और दक्षिण केरल।

उत्तर केरल: केरल के उत्तर भाग से राज्य के कुल चार जिले निकलते हैं- कसरगोड, वायनाड, कन्नूर और कोजिकोडे। यहां भी कसरगोड और कोजिकोडे जिले में मुस्लिम आबादी निर्णयाक भूमिका में है, वहीं कन्नूर और वायरनाड में मुस्लिम के साथ इसाई धर्म को मानने वाले बड़ी संख्या में मौजूद हैं। समझने वाली बात ये है कि यहां भी तीन जिलों में हिंदू आबादी 50 फीसदी से ज्यादा है।

मध्य केरल: केरल के मध्य भाग से भी चार अहम जिले निकलते हैं- मल्लपुरम, पलक्कड़, त्रिशूर और एर्नाकुलम। मल्लपुरम में तो 70 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम आबादी है, वहीं बाकी तीन जिलों में भी 50 फीसदी से ज्यादा उनकी उपस्थिति दर्ज है। हिंदू वोटर मध्य केरल में ज्यादा भूमिका अदा नहीं करते हैं। एलडीएफ और यूडीएफ दोनों ने ही यहां पर अपना वोटबैंक मजबूत कर रखा है।

दक्षिण केरल: केरल के दक्षिण भाग से कुल 6 अहम जिले निकलते हैं- इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, पथानामथिट्टा, कोल्लम और तिरुवनंतपुरम। यहां पर इडुक्की, कोट्टायम तो अल्पसंख्यक आबादी की वजह से चर्चा में बने रहते हैं, वहीं अलाप्पुझा, कोल्लम और तिरुवनंतपुरम में बड़ी संख्या में हिंदू आबादी है।

केरल में बड़ी जातियां, धर्म

केरल में मुस्लिम और ईसाई धर्म की राजनीति सबसे ज्यादा चलती है। इन दो धर्मों का गठजोड़ ही सत्ता का रुख तय करता दिख जाता है। 1982 के बाद से केरल में या तो एलडीएफ की सरकार बनी है या फिर यूडीएफ की। यहां भी लेफ्ट का पिछड़ों के बीच में मजबूत वोटबैंक माना जाता है, वहीं यूडीएफ ईसाई और मुस्लिमों के बीच में ज्यादा लोकप्रिय रहती है।

बीजेपी के लिए तो दक्षिण के इस राज्य में नायर समुदाय सबसे अहम है। 15 फीसदी के करीब इस समाज की आबादी है और सबरीमाला विवाद के बाद तो इसके बीच बीजेपी का झुकाव बढ़ा है। नायर के अलावा केरल में एझवा समुदाय की भी अपनी भूमिका रहती है। 28 प्रतिशत के करीब उनकी हिस्सेदारी है और वर्तमान सीएम के विजयन खुद इसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं।

ईसाई की बात करें तो वे भी केरल में 18.38 फीसदी हैं, वहीं मुस्लिमों की आबादी 26 फीसदी से ज्यादा है। अब बीजेपी के लिए केरल में सिर्फ एक समीकरण बनता है- हिंदू वोटर प्लस ईसाई।

केरल के बड़े सियासी चेहरे

केरल की राजनीति में स्थानीय मुद्दे तो हावी रहते ही हैं, यहां पर स्थानीय नेता भी लोकप्रियता की चरम तक पहुंचते हैं। यहां हर इलाके के अपने नेता हैं जो कई सालों से चुने आ रहे हैं। बड़ी बात ये है कि इन्हीं नेताओं ने किसी दूसरी पार्टी को केरल में उभरने का मौका नहीं दिया है।

पी विजयन: कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) के सबसे बड़े नेता और राज्य के मुख्यमंत्री पी विजयन केरल की राजनीति में कई सालों से सक्रिय हैं। उन्होंने केरल छात्र संघ में भी कई सालों तक काम किया है, उसके बाद  पार्टी स्टेट प्रेसिडेंट का पद भी उनके पास ही रहा। जब देश में आपातकाल लगा था, विजयन की उम्र सिर्फ 30 साल थी, उन्होंने पुलिस की यातनाओं का सामना किया था।

शशि थरूर: तिरुवनंतपुरम से लगातार जीतते आ रहे शशि थरूर कांग्रेस का बड़ा चेहरा हैं। उन्हें बीजेपी से पिछले कुछ सालों में चुनौती तो मिली है, लेकिन हर बार वे तिरुवनंतपुरम सीट निकाल लेते हैं। राजनीति में आने से पहले शथि थरूर एक सफल डिप्लोमेट भी रहे हैं।

एके एंटनी: केरल के तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके एके एंटनी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं। वे पांच बार से लगातार सांसद रहे हैं और रिकॉर्ड आठ सालों तक उन्हें देश का रक्षा मंत्री बनने का मौका भी मिला था। मनमोहन सरकार के दौरान वे नंबर 2 की पोजीशन तक पर पहुंचे थे।

के सुरेंद्रन: के सुरेंद्रन बीजेपी के केरल में सबसे बड़ा चेहरा हैं, वे प्रदेश अध्यक्ष के पद पर भी तैनात हैं। आक्रमक शैली वाले सुरेंद्रन राज्य में बीजेपी को खड़ा करने के लिए जाने जाते हैं। सबरीमाला मुहिम में भी उन्होंने जिस तरह से बीजेपी को स्टैंड को मुखर होकर रखा था, उसने पार्टी को कुछ हद तक नायर वोटर के बीच में लोकप्रिय बनाया था। सुरेंद्रन ने छात्र जीवन के दौरान ही राजनीति का दामन थाम लिया था और ABVP से अपने करियर की शुरुआत की थी।