कर्नाटक चुनाव को लेकर बीजेपी और कांग्रेस के बीच में कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है। हर सीट पर समीकरण के लिहाज से दिलचस्प मुकाबला बनता दिख रहा है। जातियों का बोलबाला तो हर सीट पर जारी है और जीत के दावे अभी से शुरू हो गए हैं। दक्षिण के इस राज्य में अगर बीजेपी के कुछ गढ़ हैं तो कांग्रेस ने भी कुछ सीटों पर अपना दबदबा कायम रखा है। ऐसी ही एक सीट है वरुणा। यहां से पिछले चुनाव में सिद्धारमैया के बेटे ने चुनाव लड़ा था, अब खुद पिता फिर उस सीट से ताल ठोंक रहे हैं। वहीं बीजेपी ने भी बड़ा दांव चलते हुए लिंगायत नेता वी सोमन्ना को इस सीट से उतारा है।

वरुणा सीट का जातीय समीकरण

वरुणा सीट के जातीय समीकरण ऐसे हैं कि यहां पर कुरुबा और लिंगायत वोट काफी निर्णायक साबित होते हैं। इस क्षेत्र में कुल 2,23,007 वोटर हैं, वहां भी 53 हजार के करीब तो लिंगायत वोटर हैं। यानी कि जिस वोटर के दम कर्नाटक की सियासत तमाम उतार-चढ़ाव देखती है, उसका असर इस सीट पर भी पूरा देखने को मिलता है। अब अगर लिंगायत के बीच में बीजेपी मजबूत है तो कुरुबा समाज की भी वरुणा में जबरदस्त उपस्थिति है। इस सीट पर 27 हजार के करीब कुरुबा वोटर हैं जो परंपरागत रूप से कांग्रेस की तरफ रुझान रखते हैं। खुद सिद्धारमैया क्योंकि इस समुदाय से आते हैं, ऐसे में पार्टी को इसका भी फायदा मिलता है। बड़ी बात ये है कि सिद्धारमैया खुद को हमेशा पिछड़ी जाति वाला भी कहते रहते हैं, ऐसे में इस सीट पर जो अनुसूचित जाति और जनजाति के 48 हजार वोटर हैं, उनका रुझान भी कांग्रेस की तरफ हो जाता है। वैसे वरुणा सीट पर वोक्कालिगा समाज का भी सीमित प्रभाव है, इनकी संख्या 12000 के करीब रहती है।

सिद्धारमैया का जोर, सुरक्षित सीट होने का दावा

सरल शब्दों में समझें तो वरुणा में 35 प्रतिशत लिंगायत हैं, 25% ओबीसी और 20 फीसदी वोक्कालिगा। ये सीट कांग्रेस के लिए लंबे समय से मुफीद रही है और उसको पूरा समर्थन भी हासिल हुआ है। परिसीमन के बाद साल 2008 में ये सीट अस्तित्व में आई थी। तब सिद्धारमैया ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी, फिर 2013 के चुनाव में फिर कांग्रेस ने उन्हें वहां से उतारा और एक आसान जीत मिल गई। लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में एक बड़ा नाटकीय मोड़ आया। सिद्धारमैया को अपने बेटे को भी चुनाव लड़वाना था, सुरक्षित सीट की तलाश थी, ऐसे में उन्होंने सियासी ‘बलिदान’ देते हुए वो सीट अपने बेटे के लिए छोड़ दी, यानी कि तब उस सीट से यतींद्र सिद्धारमैया को टिकट दिया गया। उस चुनाव में खुद सिद्धारमैया दो सीट से चुनाव लड़े थे, एक बादामी और दूसरी चामुंडेश्वरी। लेकिन तब पूर्व सीएम को सिर्फ बादामी से जीत मिली, वो भी कम मार्जिन वाली, वहीं वे चामुंडेश्वरी में हार गए। ऐसे में इस बार के चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें उनकी सुरक्षित सीट से उतार कोई रिस्क नहीं लिया है।

बीजेपी का सियासी दांव, लिंगायत वोटर पर नजर

बीजेपी की बात करें तो उसकी तरफ से वरुणा सीट से एक बड़ा सियासी दांव चला गया है। लिंगायत वोटरों की अहमियत को समझते हुए पार्टी ने यहां से वी सोमन्ना को मौका दिया है। वे वर्तमान में गोविंदराजा नगर से विधायक हैं, पांच बार जीतकर विधानसभा पहुंच चुके हैं। बसवराज सरकार में वे मंत्री भी हैं, ऐसे में उनकी गिनती दिग्गज नेताओं में की जाती है। लेकिन इस बार पार्टी ने उनके लिए एक अलग राह चुन ली है। वे दो सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं, एक तो वरुणा जहां पर उनकी टक्कर सीधे सिद्धारमैया से है, तो वहीं उन्हें चामराजनगर से भी उम्मीदवार बना दिया गया है। वरुणा में सोमन्ना को मौका देने के पीछे लिंगायत समुदाय का प्रभाव माना जा रहा है। जो वोटर परंपरागत रूप से बीजेपी के साथ रहता है, उसी के दम पर पार्टी यहां कांग्रेस के साथ सियासी खेल करना चाहती है।

कर्नाटक चुनाव की बात करें तो 10 मई को मतदान होने जा रहा है और 13 मई को नतीजे आएंगे। एक तरफ बीजेपी 38 साल का ट्रेंड तोड़ते हुए सत्ता वापसी की कवायद में लगी है तो कांग्रेस परंपरा कायम रखने की उम्मीद से फिर सरकार बनाने की कोशिश में है। जेडीएस एक बार फिर खुद को किंगमेकर बनते हुए देखना चाहती है, वहीं चुनावी मैदान में उतर आम आदमी पार्टी ने भी मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है।