Shahid Pervez

कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस की जीत तो हुई ही है, इसके साथ-साथ इस दक्षिण के राज्य ने एक बड़ा सियासी संदेश भी दिया है। कर्नाटक चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी की रैलियों को अगर ध्यान से सुन लिया जाए, तो पता चल जाता है कि जनता ने क्या सोचकर वोट किया है, उनके मुद्दे क्या रहे हैं। एक तरफ राहुल गांधी ने नफरत की राजनीति को हरा प्यार की राजनीति को बढ़ावा देने की बात कही तो दूसरी तरफ पीएम मोदी ने बजरंग दल और बजरंग बली वाली सियासत पर ज्यादा जोर दिया।

दो शख्सियत..दो भाषण और चुनाव में हो गया खेल

अब द उर्दू प्रेस ने कर्नाटक के इसी सियासी संदेश को डीकोड करने का काम किया है। बेंगलुरु का सलार अखबार बताता है कि दक्षिण के इकलौते राज्य से भी बीजेपी का सफाया इसलिए हुआ क्योंकि कांग्रेस ने प्रचार के वक्त सारा फोकस लोकल मुद्दों पर रखा और बसवराज सरकार के भ्रष्टाचार को लगातार रेखांकित करती रही। सलार के लेख में इस बात पर भी जोर दिया गया कि कांग्रेस की इस जीत को नफरत के ऊपर प्यार की विजय के तौर पर देखा जाना चाहिए। इसके लिए दोनों राहुल और पीएम मोदी के कई भाषणों का हवाला दिया।

भारत जोड़ो यात्रा जब कर्नाटक में थी, तब राहुल गांधी ने जनता के बीच कहा था कि कर्नाटक में नफरत का बाजार बंद हुआ, मोहब्बत की दुकानें खुल गई हैं। दूसरी तरफ उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी रैलियों में बजरंग दल को बजरंग बली से जोड़ रहे थे। लेख में बड़ी ही प्रमुखता के साथ बताया गया है कि पीएम मोदी ने कर्नाटक चुनाव में लोकल मुद्दों को छोड़ बजरंग बली और द केरल स्टोरी की ज्यादा बात की। कोस्टल कर्नाटक में पीएम मोदी ने अपनी रैली शुरू करने से पहले जय बजरंग बली के नारे लगवाए, यहां तक कहा गया कि जब वोट डालने जाएं तो बजरंग बली का नारा जरूर लगाएं।

ये दक्षिण है… उत्तर की राजनीति नहीं आती काम!

इसी तरह कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में बजरंग दल और पीएफआई जैसे नफरत फैलाने वाले संगठनों पर बैन लगाने की बात कही थी, लेकिन पीएम मोदी ने बजरंग दल को बजरंग बली से जोड़ दिया। एक रैली में ये भी कह दिया कि बजरंग बली के भक्तों को कांग्रेस ताले में बंद करना चाहती है। अब भारत की जैसी राजनीति है, यहां पर राज्यों के साथ सिर्फ बोली या कह लीजिए संस्कृति नहीं बदलती, सियासी समीकरण भी बदल जाते हैं। उत्तर भारत में ध्रुवीकरण की राजनीति चल जाती है, हिंदू-मुस्लिम वाले मुद्दे लोगों को एकजुट करने का काम भी कर जाते हैं, लेकिन बात जब दक्षिण पर आती है, तब इन्हीं मुद्दों की हवा निकल जाती है। कर्नाटक के जनादेश ने यहीं संदेश बीजेपी और पार्टी की सेंट्रल लीडरशिप को देने का काम किया है।

कांग्रेस के पास जीत का फॉर्मूला तैयार

शुरुआत से ही कर्नाटक में बीजेपी ने जिन मुद्दों पर फोकस किया, उनमें राष्ट्रवाद, केंद्र का कामकाज, मुस्लिम आरक्षण और धर्मांतरण पर ही ज्यादा जोर रहा। बड़ी बात ये रही कि जिन प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी विकास वाली राजनीति करने की छवि बनाई है, कर्नाटक में उन्होंने भी इसी नेरेटिव को आगे बढ़ाने का काम किया। चुनावी प्रचार के अंतिम दिनों में पीएम मोदी ने जिस तरह से बजरंग बली और द केरल स्टोरी के मुद्दे को उठाया, वो बताने के लिए काफी था कि बीजेपी की सियासी राह लोकल मुद्दों से हट चुकी है। अब जनता का जो वोट पड़ा है, वो बीजेपी के लिए बड़ा संदेश है। लोगों ने इस बार राहुल गांधी और उनकी मोहब्बत की दुकान खोलने वाली राजनीति को ज्यादा पसंद किया है। इसके साथ क्योंकि कांग्रेस ने लोकल मुद्दों को भी शामिल कर लिया, ऐसे में जीत का एक पूरा कॉम्बो तैयार हो गया।

लोकल ही चल रहा है… तीन राज्यों में भी होगा खेल?

अब कांग्रेस इसी कॉम्बो के साथ दूसरे राज्यों में भी जा सकती है। अभी मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इन चुनावों में पिछली बार बीजेपी का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा, तीनों ही राज्यों में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। ये अलग बात रही कि मध्य प्रदेश में सिंधिया के एक खेल ने कांग्रेस को पांच साल से पहले ही सत्ता से बेदखल कर दिया। लेकिन अब अगर पार्टी इसी कर्नाटक फॉर्मूले को इन राज्यों में भी भुनाती है, यानी कि अगर लोकल मुद्दों पर ज्यादा जोर दिया जाता है, बीजेपी के नेरेटिव में फंसने से बचा जाता है, उस स्थिति में देश की राजनीति में 2024 के बड़े फिनाले से पहले और भी कई बड़े और निर्णायक नाटकीय मोड़ आ सकते हैं।