कर्नाटक चुनाव ने अपना 38 साल पुराना मिजाज कायम रखा है। वो मिजाज जिसमें 38 साल से लगातार हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन हो रहा है। इसी कड़ी में कर्नाटक में कांग्रेस इस बार एक ऐतिहासिक जीत की ओर बढ़ चुकी है। ऐसा प्रचंड बहुमत मिलता दिख रहा है जो पिछले कई सालों से किसी पार्टी को राज्य में नहीं मिला। कांग्रेस 130 सीटें जीतती दिखाई पड़ रही है, बहुमत के आंकड़े से कई सीटें ज्यादा। वहीं दूसरी तरफ बीजेपी 70 सीटों से भी नीचे आ चुकी है और जेडीएस अपना सबसे खराब प्रदर्शन करती दिख रही है।
वोकल फॉर लोकल , पीएम का मंत्र कांग्रेस का बूस्टर
कांग्रेस की इस ऐतिहासिक जीत के कई कारण माने जा रहे हैं। बीजेपी के खिलाफ जो सत्ता विरोधी लहर रही, उसने तो राह को आसान बनाया ही, लेकिन उससे ज्यादा पार्टी की खुद की रणनीति ने इस बार जमीन पर सारा कमाल करने का काम किया है। पीएम मोदी ने पूरे देश में एक नारा दिया था- वोकल फॉर लोकल । अब कहने को ये नारा बिजनेस से जुड़ा हुआ था, लोकल प्रोडक्ट को प्रमोट करने के लिए कहा गया था, लेकिन लगता है कि कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस ने इस मंत्र को अलग ही तरह से समझा है।
बीजेपी का ध्रुवीकरण फेल, कांग्रेस मुद्दों पर टिकी रही
कांग्रेस पार्टी का प्रचार उठाकर देख लीजिए,साफ पता चलता है कि शुरुआत से ही रणनीति स्पष्ट थी- कुछ भी हो जाए लोकल मुद्दों से खुद को नहीं भटकाया जाएगा। बीजेपी ने पूरी कोशिश क कि चुनावी मौसम में ध्रुवीकरण का मुद्दा चला जाए, किसी तरह बजरंग दल को बजरंग बलि से जोड़ा जाए, किसी तरह राष्ट्रीय मुद्दों पर चुनाव को शिफ्ट कर दिया जाए। लेकिन कांग्रेस ने बीजेपी के इन सभी दांव को अपनी रणनीति से विफल करने का काम किया। भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया, जातीय जनगणना की बात की गई और घोषणा पत्र में उन चुनावी गारंटियों का ऐलान किया गया जिसका सीधा वास्ता राज्य की जनता से रहा।
जिस कर्नाटक चुनाव में बीजेपी लगातार पीएम मोदी की लोकप्रियता को ज्यादा भुनाने की कोशिश में लगी थी, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस ने अपनी सेंट्रल लीडरशिप से ज्यादा इस बार लोकल चेहरों पर भरोसा जताया। इसी वजह से चुनावी प्रचार में इस बार राहुल-प्रियंका से ज्यादा सिद्धारमैया, डीके शिवकुमार और मल्लिकार्जुन खड़गे की सक्रियता देखी गई। नतीजे बताते हैं कि पार्टी को इसका फायदा हुआ है।
कर्नाटक के स्थानीय मुद्दे क्या थे, जो कांग्रेस समझी बीजेपी नहीं
अब कांग्रेस का ये फायदा तब समझा जा सकता है, जब कर्नाटक के स्थानीय मुद्दों को ठीक तरह से समझ लिया जाए। राज्य में पिछले काफी समय से भ्रष्टाचार का मुद्दा सुर्खियों में चल रहा है। महंगाई पर लगातार चर्चा की गई है, एलपीजी गैस सिलेंडर के रेट तो हर आम आदमी की जुबान पर हैं। बेरोजगारी पर भी चर्चा होती दिख जाती है। यानी कि कर्नाटक में ये स्थानीय मुद्दे हैं जिनका सीधा वास्ता वहां की जनता से है।
अब चुनाव में कांग्रेस ने भी इन्हीं मुद्दों को अपने प्रचार के केंद्र में रखा। उसने सबसे ज्यादा फोकस भ्रष्टाचार के मुद्दे पर किया। कई महीने पहले ही एक चुनावी रैली में प्रियंका गांधी ने 40% कमीशन सरकार का नारा दिया था। बस उस नारे ने जमीन पर ऐसी हवा बनाई कि हर नेता ने, हर कार्यकर्ता ने इसे ही अपना सबसे बड़ा मुद्दा बनाया और हर रैली और रोड शो में इसका जिक्र हुआ। ऐसा नेरेटिव सेट कर दिया कि जमीन पर बीजेपी के खिलाफ माहौल तैयार होता चला गया।
भ्रष्टाचार का मुद्दा पीएम ने भी उठाया, फायदा कांग्रेस को क्यों?
पीएम मोदी ने भी एक जनसभा में कांग्रेस के भ्रष्टाचार का मुद्दा जरूर उठाया था, लेकिन वो कोई अभी का नहीं बल्कि राजीव गांधी से जुड़ा था। यानी कि उस मुद्दे का जनता से कोई सरोकार नहीं था और एक पुराने मुद्दे को उठा देश की सबसे पुरानी पार्टी को घेरने की कोशिश थी। वहीं दूसरी तरफ राहुल गांधी से लेकर प्रियंका गांधी तक ने, जब-जब भ्रष्टाचार की बात की, उनकी तरफ से वर्तमान सरकार के आंकड़े रखे गए। एक रैली में राहुल गांधी ने कहा था कि पिछले तीन सरकार से राज्य में बीजेपी की एक सरकार चल रही है, पीएम मोदी को पता है कि यहां बहुत भ्रष्टाचार हुआ है। वो इसे डबल इंजन वाली सरकार कहते हैं। लेकिन इस बार तो वो डबल इंजन ही चोरी हो गया है। मोदी जी क्या कर्नाटक की जनता को बताएंगे कि कौन से इंजन को 40% कमीशन में से कितना पैसा मिला।
राहुल गांधी का ये सिर्फ एक बयान नहीं है, बल्कि एक तरह से उन्होंने उस मुद्दे को हवा दी जो लोगों के बीच में सेट हो चुका है। उन्होंने कोई पुराने भ्रष्टाचार या कह लीजिए विवाद पर फोकस नहीं किया, बल्कि कुछ महीने पुराने मुद्दे को उठाया और उसी के दम पर एजेंडा सेट कर दिया। अब नतीजे बता रहे हैं कि पार्टी को इसका पूरा फायदा पहुंचा है। इसी तरह कर्नाटक चुनाव में महंगाई भी एक अहम मुद्दा बनकर सामने आया था।
महंगाई ने रुलाया, कांग्रेस ने भुनाया
वहां भी लोगों में सबसे ज्यादा चर्चा इस बात की थी कि रसोई गैस की कीमतें आसमान छू रही हैं। इस मुद्दे को कांग्रेस ने बखूबी समझा था, ऐसे में भ्रष्टाचार के साथ इसे भी अपने प्रचार का एक अहम हिस्सा बनाया गया। हर रैली में जोर देकर कहा गया कि जो गैस सिलेंडर यूपीए के समय 410 रुपये में मिल जाता था, उसके लिए अब 1100 रुपये देने पड़ रहे हैं। डीके शिवकुमार ने तो यहां तक कहा था कि जब वोट करने जाएं तो एक बार अपने एलपीजी सिलेंडर की ओर जरूर देख लेना। अब लगता है कि जनता ने उन सिलेंडर की ओर देखा भी है और उन्हें देख बीजेपी के खिलाफ अपनी नाराजगी भी जाहिर कर दी है।
चुनावी रेवड़ियां, जनता को सीधा फायदा, कांग्रेस की चांदी
कांग्रेस की चुनावी गारंटियां भी इस बात की तस्दीक करती हैं कि पार्टी ने लोकल फॉर वोकल पर अच्छी तरह अमल किया। कहने को बीजेपी कहती रही कि कांग्रेस सिर्फ जनता को मुफ्त रेवड़ियां बांटने का काम कर रही है, लेकिन पार्टी ने उनसे कोई गुरेज नहीं किया और लोगों की महत्वाकांक्षाओं को समझते हुए सिर्फ वो वादे किए जिनसे सीधे वोट मिलें। कांग्रेस के कर्नाटक चुनाव में बड़े वादे कुछ इस प्रकार थे- हर परिवार को 2000 यूनिट फ्री बिजली दी जाएगी। हर घर की महिला मुख्या को महीने के 2000 रुपये देने का वादा भी, गरीबी रेखा से नीचे वाले परिवारों के लिए महीने का 10 किलो चावल मुफ्त देने की बात। अब ये रेवड़ियां हैं, लेकिन जनता को खूब पसंद आई हैं और उन्होंने खुलकर कांग्रेस को अपना समर्थन दिया है।
कर्नाटक चुनाव ने बीजेपी को संदेश दे दिया है कि हर चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे और पीएम मोदी के सहारे जीत नहीं दर्ज की जा सकती है। अगर सही तरह से लोकल मुद्दों को उठाया गया, सीधे जनता की बात हुई, उस स्थिति में आने वाले कई और राज्यों के चुनाव में भी पार्टी को बड़े झटके लग सकते हैं।