कर्नाटक चुनाव में इस समय जनता के बीच वादों की बौछार हो रही है। राजनीतिक पार्टियों में होड़ चल पड़ी है कि कौन ज्यादा लुभावना वादा करने वाला है। इसी रेस में जीतने के लिए सभी पार्टियां रेवड़ियों का पूरा इस्तेमाल कर रही हैं। सियासी भाषा में रेवड़ी वो चुनावी वादे हैं जहां पर जनता को मुफ्त में कुछ देने की बात हो रही हो। इस परंपरा को लेकर कोर्ट का रुख सख्त है, चुनाव आयोग भी समय-समय पर टोक चुका है और देश के प्रधानमंत्री भी इसे अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक मानते हैं। लेकिन सिर्फ सोचने भर से कुछ नहीं होने वाला है क्योंकि चुनावी मौसम में एक बार फिर सभी पार्टियों ने जनता के बीच रेवड़ी वाला प्रसाद परोस दिया है।
बीजेपी का फ्री वाला घोषणा पत्र
बड़ी बात ये है कि जो बीजेपी लगातार इस रेवड़ी कल्चर के खिलाफ बोल रही है, उसने भी अपने संकल्प पत्र में ऐसे ही वादों की बौछार कर रखी है। पार्टी ने अपने संकल्प पत्र में कई ऐसे ऐलान किए हैं जो बताते हैं कि 38 साल वाला ट्रेंड तोड़ने के लिए हर संभव कोशिश की जाएगी। बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में ऐलान किया है कि गरीब परिवारों को तिरुपति, अयोध्या या काशि जाने के लिए 25 हजार रुपये की मदद दी जाएगी। ये भी कहा गया है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति यानी कि SC-ST परिवारों को पांच साल के लिए 10 हजार रुपये की FD करवाई जाएगी। इसके अलावा 30 लाख महिलाओं के लिए फ्री बस पास भी दिए जाएंगे। एक और लुभावना वादा ये किया गया है कि गरीबी रेखा से नीचे वाले परिवारों को साल के 3 मुफ्त LPG सिलेंडर मिलेंगे। गरीब परिवार को रोज का आधा लीटर नंदिनी दूध मुफ्त देने की बात भी कही गई है। इसके साथ ही गरीब परिवार को पांच किलो चावल के साथ ही 5 किलो बाजरा भी फ्री देने का ऐलान है।
कांग्रेस ने फिर बांटी रेवड़ियां
अब बीजेपी ने तो कई चुनावी रेवड़ियां देने का ऐलान किया ही है, इस डिपार्टमेंट में कांग्रेस को तो लंबे समय से आलोचना का सामना करना पड़ा है। ऐसे में एक बार फिर कांग्रेस ने कर्नाटक के अपने घोषणा पत्र में कई फ्री वाली स्कीम का ऐलान कर दिया है। कांग्रेस को लेकर तो कहा जा सकता है कि कर्नाटक चुनाव में आम आदमी पार्टी के मॉडल को फॉलो कर रही है, ऐसा इसलिए क्योंकि उसका हर ऐलान उसी रणनीति की ओर संकेत दे रहा है। पार्टी ने ऐलान किया है कि हर परिवार को 200 यूनिट फ्री बिजली दी जाएगी। हर घर की महिला मुख्या को महीने के 2000 रुपये देने का वादा भी हुआ है, इसके साथ गरीबी रेखा से नीचे वाले परिवारों के लिए महीने का 10 किलो चावल मुफ्त देने की बात भी हुई है। कांग्रेस के घोषणा पत्र में सबसे बड़ा ऐलान बेरोजगार युवाओं के लिए किया गया है. जोर देकर कहा गया है कि अगर सरकार बन जाती है तो प्रत्येक ग्रेजुएट को हर महीने 3000 रुपये का बेरोजगारी भत्ता और डिप्लोमा होल्डर को 1500 रुपये का भत्ता दिया जाएगा।
JDS के वादे तो और ज्यादा लुभावने
वैसे इस चुनावी रेस में एक और पार्टी है जिसके सहयोग से इन दोनों ही पार्टियों ने समय-समय पर अपनी सरकार बनाई है,यानी कि JDS जो किंग बनने के सपने देखती है, लेकिन हर बार किंगमेकर की भूमिका में रह जाती है। एक बार फिर जनता के बीच जेडीएस कई वादों के साथ आई है। इन वादों में फ्री वाली रेवड़ियों की भरमार है। जेडीएस का MANIFESTO कहता है- गर्भवती महिलाओं के लिए 6 महीने तक 6 हजार रुपये, विधवा महिलाओं को 900 रुपये की जगह 2500 रुपये की सहायता, एक साल में पांच फ्री LPG सिलेंडर और यहां भी सबसे बड़ा- किसान के बेटे से अगर लड़की ने शादी की तो उसे दो लाख रुपये की सब्सिडी। वैसे जानकारी के लिए बता दें कि आम आदमी पार्टी ने भी इसी तर्ज पर कुछ चुनावी वादे किए हैं।
कितना खतरनाक है रेवड़ी कल्चर, क्या पड़ता असर?
इसमें किसानों को मुफ्त बिजली देने से लेकर BPL महिलाओं को प्रति महीना 1000 रुपये की सहायता देना शामिल है। अब ये बात तो माननी पड़ेगी कि कर्नाटक में दूसरे कई राज्यों की तुलना में आर्थिक स्थिति मजबूत है या कह सकते हैं कि बेहतर है। सबसे ज्यादा कमाने वाले लोग, गरीबी भी कम और दूसरे आर्थिक मोर्चों पर भी ठीक ठाक प्रदर्शन। लेकिन फिर भी राज्य पर कर्ज तो है, वो भी पूरे 5.5 लाख करोड़ का। अर्थशास्त्र का ज्ञान कहता है कि जब किसी राज्य पर कर्ज बढ़ता है तो इनकम के दूसरे रास्ते सरकार को तलाशने पड़ते हैं। आसान शब्दों में कहें तो जितना पैसा कर्ज के तौर पर लिया जाएगा, उसकी भरपाई करने के लिए उतना ही Indirect Tax वसूला जाएगा, और जब ऐसा होगा तो इसका बोझ गरीबों पर पड़ना लाजिमी है. जानकार बताते हैं कि किसी भी सरकार को ऐसी स्थिति से बचना चाहिए वरना राजस्व का एक बड़ा हिस्सा ऋण चुकाने में चला जाता है।
देश पर कितना कर्ज, राज्यों में कौन कर रहा टॉप?
RBI के ही आंकड़े बताते हैं कि मार्च 2021 तक देश के सभी राज्यों पर कुल 69.47 लाख करोड़ के करीब का कर्ज है। यहां भी अकेले तमिलनाडु पर 6.59 लाख करोड़ का कर्ज चढ़ चुका है, यानी इस रेस में वो सबसे आगे चल रहा है। दूसरे पायदान पर उत्तर प्रदेश खड़ा है जिस पर 6.53 लाख करोड़ का कर्ज है। वहीं 19 ऐसे राज्य हैं जिन पर 1 लाख करोड़ से ज्यादा का कर्ज चल रहा है। यानी कि कुल मिलाकर स्थिति तो खतरे की घंटी बजा रही है, अगर ऐसे ही चुनावी रेवड़ियों का प्रसाद जनता के बीच बांटा गया तो वो दिन दूर नहीं जब कर्ज ही कर्ज हो जाएगा और उसे चुकाने का जरिया नहीं मिलेगा।