कर्नाटक में शिमोगा, बेल्लारी और मांड्या लोकसभा सीटों के लिए उपचुनाव कराया गया। इसके अलावा दो विधानसभा सीटों के लिए भी मतदाताओं ने वोट डाले थे। विधानसभा चुनाव के बाद उभरे नए राजनीतिक समीकरण के बीच सत्तारूढ़ गठबंधन (कांग्रेस-जेडीएस) और बीजेपी के बीच यह पहला बड़ा चुनावी मुकाबला है। इसमें कांग्रेस ने 4-1 से बाजी मार ली है। पांच सीटों पर उपचुनाव होने के बावजूद कांग्रेस-बीजेपी नेताओं और समर्थकों के अलावा राजनीतिक विश्लेषकों की नजरें बेल्लारी लोकसभा सीट पर ही टिकी थीं। बेल्लारी रेड्डी बंधुओं का प्रभाव क्षेत्र भी माना जाता है। इसके अलावा उपचुनाव में कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी के कद्दावर नेता बीएस येद्दियुरप्पा की नेतृत्व क्षमता भी दाव पर लगी थी। इसके बावजूद कांग्रेस प्रत्याशी वीएस. उगरप्पा ने बीजेपी उम्मीदवार जे. शांता को मात दे दी। बेल्लारी कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था, लेकिन पिछले 14 वर्षों से इस सीट पर बीजेपी का कब्जा था। कांग्रेस ने अब तकरीबन डेढ़ दशक बाद यहां वापसी की है। इससे पहले कर्नाटक में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद बीजेपी के सरकार न बना पाने से येद्दियुरप्पा को झटका लगा था। कर्नाटक उपचुनावों में बीजेपी को ऐसे समय हार का सामना करना पड़ा है, जब अगले साल आम चुनाव होने वाले हैं। बता दें कि सोनिया गांधी ने वर्ष 1999 में अमेठी के साथ ही कांग्रेस की सुरक्षित बेल्लारी सीट से भी लोकसभा का चुनाव लड़ा था। उन्होंने बीजेपी की सुषमा स्वराज को हराया था। हालांकि, वर्ष 2004 के बाद से यह सीट बीजेपी के पास ही रही थी।
नहीं रहा रेड्डी बंधुओं का प्रभाव: बेल्लारी लोकसभा क्षेत्र खनिज-संसाधनों से भरपूर है। रेड्डी बंधुओं (करुणाकर रेड्डी, जनार्दन रेड्डी और सोमशेखर रेड्डी) के पास इस क्षेत्र की कई खानें थीं। ऐसे में बेल्लारी इलाके में रेड्डी बंधुओं का व्यापक प्रभाव माना जाता है। येद्दियुरप्पा सरकार में खनन घोटाला उजागर होने के बाद सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ा था। रेड्डी बंधुओं पर कई प्रतिबंध भी लगाए गए थे। जनार्दन रेड्डी पर पैसे के दम पर वोट खरीदने का भी आरोप लग चुका है। ऐसे में उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के हाथों बीजेपी उम्मीदवार की हार प्रभावशाली रहे रेड्डी ब्रदर्स के रसूख में कमी को दिखाता है।
कांग्रेस को मिला गठबंधन का फायदा: कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर सामने आई थी। हालांकि, पार्टी स्पष्ट बहुमत से दूर थी। ऐसे में मौके का फायदा उठाते हुए दूसरी बड़ी पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस ने जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) से हाथ मिला लिया। साथ ही एचडी. कुमारास्वामी को मुख्यमंत्री के तौर पर भी स्वीकार कर लिया। कांग्रेस-जेडीएस ने उपचुनावों में साथ मिलकर बीजेपी को टक्कर दी थी। ऐसे में कांग्रेस को वोट न बंटने का फायदा हुआ और पार्टी प्रत्याशी ने बड़े अंतर से जीत दर्ज की।
श्रीरामुलु के प्रति नाराजगी: वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में रेड्डी बंधुओं के करीबी माने जाने वाले श्रीरामुलु ने जीत हासिल की थी। लेकिन, इस साल हुए विधानसभा चुनाव में जीतने के बाद उन्होंने यह सीट छोड़ दी थी। श्रीरामुलु ने अपनी बहन जे. शांता को टिकट दिलाया था। शांता का चुनाव प्रबंधन और जनता के बीच पहुंच श्रीरामुलु की तरह नहीं है। आखिरकार बीजेपी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा। इसके अलावा बताया जाता है कि बेल्लारी लोकसभा सीट को छोड़ने और अपनी बहन को टिकट दिलाने के कारण श्रीरामुलु के प्रति भी नाराजगी थी।
कांग्रेस का बेहतर चुनाव प्रबंधन कौशल: बीजेपी की ओर से श्रीरामुलु खुद बेल्लारी सीट के लिए हो रहे उपचुनाव का नेतृत्व कर रहे थे। वह प्रचार से लेकर बूथ मैनेजमेंट तक का काम खुद ही देख रहे थे। दूसरी तरफ, कांग्रेस की ओर से बेल्लारी सीट के लिए चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी वरिष्ठ नेता और मंत्री डी. शिवकुमार को दी गई थी। बताया जाता है कि शिवकुमार ने कांग्रेस के अलावा जेडीएस के कैडरों के साथ भी बेहतर तालमेल बिठाने में सफल रहे। वहीं, श्रीरामुलु को पार्टी के अंदर ही विरोध और नाराजगी का सामना करना पड़ रहा था। इसका असर चुनाव नतीजों पर भी दिखा।

