लोकसभा चुनाव समाप्त हो चुके हैं। 303 सीटों की जीत के साथ बीजेपी ने सत्ता में वापसी की है। कई राज्यों में बीजेपी का प्रदर्शन में अहम रहा लेकिन सबसे चौकाने वाले नतीजे पार्टी को बंगाल में हासिल हुए। पश्चिम बंगाल की 42 सीटों में से बीजेपी ने 18 सीटों पर कब्जा जमाते हुए पहली बार राज्य में खुद को स्थापित कर दिया। बीजेपी का अगला दांव बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनाव पर है। आखिर पश्चिम बंगाल में अब तक ‘बाहरी’ पार्टी समझे जाने वाली बीजेपी ने इतना बड़ा उलट फेर कैसे कर दिया। 2014 में मोदी लहर का असर भी बंगाल पर नहीं पड़ा था और 2016 में ममता बनर्जी ने बड़े स्तर से विधानसभा चुनाव जीता था। बंगाल में बीजेपी की कामयाबी की कहानी के पीछे क्या कारण रहे? बंगाल में आखिरी चरण का मतदान हिंसा के कारण चर्चा में रहा।  इस दौरान कोलकाता और आसपास के हिस्सों में बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। अन्य राज्यों में चुनाव की जिम्मेदारी से मुक्त हुए प्रभारियों, नेताओं को प्रचार में लगाया गया था। त्रिपुरा में बीजेपी को ऐतिहासिक जीत दिलाने वाले बीजेपी के नेशनल सेक्रेटरी सुनील देवधर भी एक महीने के लिए प्रचार को गए थे। बंगाल में जीत कारणों को लेकर उन्होंने जनसत्ता के मैनेजिंग एडिटर केशवानंद धर दुबे से विस्तार में बातचीत की।

सवाल: सुनील जी, आप तो बंगाल में कुछ समय पहले ही आए हैं। बीजेपी के चुनाव नतीजों को आप कैसे देखते हैं?

जवाब: जैसे फेज वाइज इलेक्शन होते गए और जो नेता फ्री होते गए। बीजेपी ने उन नेताओं को दूसरी जगह भेजा। बंगाल का दायित्व कैलाश विजयवर्गीय जी का है और वह वहां कई साल से काम कर रहे हैं। संघ के प्रचारक और भाजपा के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्रीप्रकाश जी वहां पर काम कर रहे हैं। अरविंद मेनन जी को भी वहां लगाया है। दिलीप घोष जी और मुकुल राय आदि टीम वहां काम कर रही है। जब मैं त्रिपुरा के चुनाव से फ्री हो गया और मेरे पास एक महीने का वक्त बचा था तो मैंने राष्ट्रीय अध्यक्ष जी से कहा कि मैंने पिछली बार वाराणसी देखा था तो इस बार भी मैं वाराणसी चला जाता हूं। महीना भर समय है मेरे पास। अध्यक्ष जी ने कहा कि वाराणसी में अभी तुम्हारी कोई जरूरत नहीं है। तुम पश्चिम बंगाल चले जाओ। वहां तुम्हारे जाने से लाभ होगा। मैं उस हिसाब से पश्चिम बंगाल चला गया। आखिरी फेज में वहां 9 लोकसभा सीटों पर चुनाव हो रहा था तो वह चुनाव देखने के लिए मुझे वहां भेजा गया। बेसिकली कलकत्ता और उसके आसपास की सीटें मैंने देखीं।

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सवाल: आप बता रहे हैं कि जो नेता फ्री होते गए बीजेपी सेंट्रल कमेटी ने उन्हें लास्ट फेज के लिए भेजना शुरू कर दिया। आखिरी चरण में बीजेपी के प्रभारी के अलावा ए और बी क्लास के कितने नेता पश्चिम बंगाल पहुंचे थे?

जवाब: पश्चिम बंगाल में बहुत बड़ा उड़िया भाषी समाज है तो धर्मेंद्र प्रधान जी कुछ उड़ीसा के कार्यकर्ताओं को लेकर पहुंचे थे। मिदनापुर में तेलुगु भाषी लोग हैं तो मैं आंध्र प्रदेश के लोगों को लेकर पहुंचा था। त्रिपुरा और बंगाल की भाषा बंगाली है। ऐसे में मैं त्रिपुरा के करीब 70 बहुत अच्छे कार्यकर्ता लेकर गया था। पैटर्न एकदम समान था। मतलब जिस तरह से हमने सीपीएम के खिलाफ चुनाव लड़ा था, जैसे गुंडागर्दी और कमीशनखोरी सिंडिकेट वाला राज हमने तोड़ा। वैसा ही सिंडिकेट ममता बनर्जी का चल रहा था तो उसके साथ लड़ने के लिए एक्सपीरियंस तकनीक त्रिपुरा के लोगों के लिए नई नहीं थी। आंध्र और उड़ीसा से आए लोगों के लिए यह नया था। उन्हें लगता था कि राजनीति में ऐसा नहीं होता है। इसके अलावा गुजरात में चुनाव हो गया था और हमारे टिंकू रॉय, जो प्रदेश के युवा मोर्चा अध्यक्ष थे। वह भी हमारे साथ आए थे। बाहर से करीब 250 कार्यकर्ता आए थे। वहीं, बंगाल में फेज के हिसाब से चुनाव होते रहे। ऐसे में नॉर्थ बंगाल के कार्यकर्ता फ्री हुए तो उन्हें साउथ बंगाल भेज दिया गया। ऐसे में संख्या 500 से ज्यादा हो गई थी। असम से भी कार्यकर्ता आए थे। असम के दिगुड़ी, नागौर, सिलचर, गुवाहाटी से भी कार्यकर्ताओं को बंगाल भेजा गया था। यहां भी बंगाली कम्युनिटी है। उन्हें हेमंत बिस्वा शर्मा लेकर आए थे।

दिल्ली बीजेपी के नेता तेजिंदर पाल बग्गा के साथ सुनील देवधर। फोटो सोर्स: एएनआई

सवाल: बंगाल में बीजेपी को बाहरी पार्टी माना जाता था। इस जीत में बंगाल के लोगों ने ऐसा क्या एक्सेप्ट कर लिया कि 18 सीटें दे दीं?

जवाब: इसके कई कारण हैं। इसमें सबसे पहला कारण माकपा ने 34 साल में बंगाल को क्रूर तंत्र दिया। जैसे गरीबी की दुकान चलाओ, गरीबी की बात करो, लेकिन गरीबों के लिए कुछ मत करो। ऐसी परिस्थिति में सिंडिकेट राज चलता है।

सिंडिकेट राज से आम आदमी परेशान

उदाहरण के लिए आपको कोई मकान खरीदना है तो उसका मालिक आपको पार्टी के कैडर के पास भेजता है। पार्टी का कैडर आपको जमीन का सौदा करके देगा। वहां से सिंडिकेट राज शुरू होता है। इसके बाद आप लेबर, सीमेंट आदि सामान कहां से लाओगे, यह सब पहले से तय है। वहीं, फर्नीचर और इलेक्ट्रिसिटी के लिए किससे बात करनी है, यह सब बंधा हुआ है। यह पार्टी के हाथ में है। ऐसे में जब मोनोपोली होती है तो आप कुछ नहीं कर सकते हैं। ऐसे में मकान के मालिक भी परेशान रहते हैं और खरीदने वाले भी। यह सिंडिकेट राज बंगाल में भी है और त्रिपुरा में तो काफी भयंकर था। बंगाल में बिना कमीशन दिए मनरेगा का छोटा-सा काम भी नहीं मिलता है। त्रिपुरा में भी ऐसा ही हाल है। ममता बनर्जी ने इसके साथ बहुत बड़ा संघर्ष किया और बीजेपी ने उनका साथ भी दिया था। वह सत्ता में भी आई गईं। बंगाल की जनता ने उन्हें सत्ता इसलिए सौंपी थी कि उन्हें लगा था कि 34 साल का कमीशनराज खत्म हो जाएगा। बंगाल में इसे तोलाबाजी बोला जाता है, लेकिन यह कभी बंद नहीं हुआ। बीजेपी कभी पर्याय बनकर 2011 से 2014 के बीच नहीं आ सकी, क्योंकि तब तक नरेंद्र मोदी जी का युग शुरू नहीं हुआ था। 2014 से 2016 तक उनका युग शुरू हो गया था, लेकिन वह सिर्फ शुरू हुआ था। उसका जो फायदा नीचे तक पहुंचना है, वह आखिरी 3 साल में काफी तेजी से हुआ। पहले 2 साल में उन्होंने योजनाएं बनाईं और देना शुरू किया। उस दौरान हर 15 दिन में वह एक योजना दे रहे थे, इसलिए उस वक्त पहला विधानसभा इलेक्शन 2016 में हुआ तो लोगों ने ममता बनर्जी को ही बंगाल सौंप दिया। वहां के लोगों को कमीशन आदि की आदत काफी समय से थे और वे इससे गुजर रहे थे। बाद में यह सब लगातार जारी रहा। इसमें फर्क यह आया कि पहले वाला रैकेट सीपीएम के कंट्रोल में था। टीएमसी आने के बाद यह न तो टीएमसी के कंट्रोल में रहा और न ही सीपीएम के।

चिटफंड कंपनियों ने लूटा

दूसरी बात पीएम मोदी के आने के बाद गरीबों के बैंक खाते खुले। इससे पहले गरीबों के खाते नहीं थे। ऐसे में जब बैंक खाते नहीं थे तो गरीब और मध्यमवर्गीय अपना पैसा कहां रखें? इसके चलते चिट फंड कंपनियों का बहुत बड़ा जाल बिछाया गया और उनके माध्यम से गरीबों का पैसा जमा किया गया। वह रकम 10-15 हजार या लाख 2 लाख चाहे जो भी हो, लेकिन जब चिटफंड कंपनियों ने पैसा लौटाना बंद कर दिया, तब बंगाल के लाखों लोगों को बहुत बड़ा झटका लगा। उस दौरान लोगों का पैसा शारदा, नारदा और रोज वैली चिट फंड कंपनियों में डूब गया। वहां से बंगाली समाज, जो हिंदी भाषी नहीं थे, वह आपकी गुंडागर्दी सहन कर रहे थे। लेकिन यहां मेरी कमाई हुई पूंजी लुट गई थी, जिसमें सब टीएमसी वाले पकड़े गए। चिटफंड कंपनियों के कारण बंगाली लोगों का मन टीएमसी से हटना शुरू हो गया। इसके बाद ममता बनर्जी ने पोलराइजेशन किया। उन्हें लगा कि मैं एक बार सीएम बनी। दूसरी बार भी मैंडेट मिल गया, लेकिन तीसरी बार उन्हें एहसास हो गया कि जनता मुझसे दूर जा रही है।

एक वोट बैंक को बढ़ावा देना

ऐसे में वहां का सबसे बड़ा मुस्लिम वोट बैंक, जो करीब 30-35 प्रतिशत है। वह आज सीपीएम, कांग्रेस और टीएमसी में बंटा हुआ है। ममता ने उसे अपनी तरफ खींचना शुरू कर दिया। उन्हें लगा कि हिंदू वोट बैंक मुझे छोड़कर नहीं जाएगा। यह उन्हें भ्रम था। ऐसे में जब दुर्गा पूजा और मुर्हरम एक साथ पड़े तो उन्होंने दुर्गा पूजा का कार्यक्रम टाल दिया और मुर्हरम का कार्यक्रम कराया। उन्होंने धार्मिक भावना पर चोट पहुंचाई, जिससे बंगाली समाज खफा होने लगा।

दंगों से हुआ हिंदुओं का पलायन

चौथा कारण दंगे हैं। मुस्लिमों ने कई जगह दंगे किए। दरअसल, जब भी मुस्लिमों को पता चलता है कि प्रशासन पूरी तरह से हमारे साथ है तो वे खुराफात और दंगे करते हैं। इसमें मुस्लिम बहुल्य इलाकों से हिंदुओं को पलायन करना पड़ा। इन खबरों को स्थानीय मीडिया ने दबा दिया, लेकिन सोशल मीडिया से इनका पता चलता रहा। आज तक वे लोग अपने घर नहीं जा पाए। वे सभी बंगाली थे, हिंदी भाषी नहीं थे। इस वजह से बहुत ज्यादा पोलराइजेशन हुआ। करीब 25 साल पहले सीपीएम ने बंगाल में रामनवमी बंद करा दी थी, जो पहले काफी धूमधाम से होती थी। उन्हें लगता था कि बीजेपी राम के नाम से कनेक्शन जोड़कर बंगाल में आ जाएगी। लोग इस त्योहार को मनाना भूल गए थे, लेकिन श्रद्धा खत्म नहीं हुई थी। ऐसे में विश्व हिंदू परिषद और संघ ने जगह-जगह रामनवमी मनाना शुरू किया तो स्वाभाविक नाराज हिंदू इन कार्यक्रमों में जुटने लगा। ऐसे में पिछले 20 साल से रामनवमी नहीं मना रहे हिंदू लोग अचानक बीजेपी की तरफ आने लगे। ऐसे में बंगाल के हिंदू समाज में स्वाभाविक तौर पर जय श्रीराम का नारा आ गया।

ममता से कट रहे हैं उनके पुराने करीबी

इसके अंदर जो फैमिली राज आया। ममता ने अभिषेक बनर्जी को बढ़ावा दिया। ममता तो चप्पल पहनने वाली हैं, लेकिन अभिषेक कॉर्पोरेट स्टाइल से फंक्शनिंग करने वाले और एरोगेंट हैं। जैसे कार्यकर्ताओं से नहीं मिलना तो तृणमूल के जिन लोगों ने ममता के साथ लंबा संघर्ष किया। ऐसे कई नेता नाराज होने लगे और टीएमसी के अंदर ही ममता का सपोर्ट कम होना शुरू हो गया। इनका बात करने का जो असभ्य तरीका है, वह बंगाली भद्र मानुष को नहीं भाया। इनके कई ऊटपटांग बयान पहले से आते रहे, लेकिन चुनाव के आखिरी चरणों में मैं प्रधानमंत्री को प्रधानमंत्री नहीं मानती। मुझे प्रधानमंत्री को थप्पड़ मारने की इच्छा हो रही है। बाद में वह बदलकर राजनीतिक थप्पड़ मारने की इच्छा हो रही है। मैं मिट्टी के रसगुल्ले में कंकड़ डालकर भेज दूंगी। उनके दांत टूट जाएंगे। कोई जय श्रीराम बोले तो उससे कहना कि गाली दे रहे हो क्या मुझे? इस तरह की चीजें ममता के खिलाफ जाती रहीं। इसके अलावा ममता के चुनावी वादे भी फेल हो गए। बेरोजगारी कम नहीं हुई। न गरीबी दूर हुई। सेंट्रल गवर्नमेंट की स्कीम, जिन्हें राज्य सरकार को लागू करना था, वह सभी ममता ने लागू कीं, लेकिन खुद का नाम लगाकर। साथ ही, टीएमसी का कमीशन काटने के बाद। जैसे शौचालय उन्होंने दिया, लेकिन शौचालय देते समय कमीशन टीएमसी वालों ने लिया। घर दिया, लेकिन टीएमसी वाले हैं तो नाम देंगे, वरना नाम नहीं देंगे। जैसे मोदी जी ने कुछ योजना ऐसी बनाईं, जिसमें राज्य सरकार का कोई संबंध ही नहीं रखा। जैसे उज्ज्वला योजना। उज्ज्वला का सिलेंडर सबके पास पहुंचा और उसमें कोई कमीशन की गुंजाइश भी नहीं थी। उसके बाद ममता ने आयुष्मान भारत योजना लागू ही नहीं की, क्योंकि उसमें कमीशन नहीं था। इस योजना में अगर आप बीमार पड़े और आपको यह योजना इस्तेमाल करनी है तो 5 लाख का पेमेंट डायरेक्ट सेंट्रल गवर्नमेंट मरीज के अकाउंट में करेगी। ऐसे में इस योजना में कमीशन नहीं था, जिसके चलते ममता बनर्जी ने आयुष्मान भारत योजना लागू नहीं की। ऐसे में ममता के खिलाफ एंटी इनकमबैंसी बहुत बड़े पैमाने पर आ गई और इसी तरह सेंट्रल गवर्नमेंट के बारे में प्रो इनकमबैंसी उतनी ही भयंकर तरीके से आ गई। ये दोनों एक साथ आने के कारण बंगाल में अचानक शिफ्ट आ गया। मतलब मान लीजिए कि इतने अत्याचार करने के बाद भी अगर विपक्ष पावरफुल नहीं होता तो लोग क्या करते? बीजेपी की वजह से लोगों को ऑप्शन मिल गया और अमित शाह जी ने जो हिम्मत दिलाई और जो मेहनत की, वह बेजोड़ है। उन्होंने पूरे देश भर में बेजोड़ मेहनत की। उन्होंने काफी रैलियां कीं और कई बार प्रवास किया।

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सवाल: बंगाल में इन 4-5 कारण के अलावा क्या लेफ्ट ने चुप्पी साध ली और बीजेपी को जीतने दिया? क्या इससे उनका वोट बैंक बीजेपी की तरफ शिफ्ट हो गया?

जवाब: लेफ्ट का वोट बैंक कम्युनिस्ट आइडियोलॉजी का वोट बैंक नहीं है। यह एक वोट बैंक है, जो कई साल तक कम्युनिस्ट पार्टी के साथ जुड़ा हुआ था। लेकिन जब उन्होंने देखा कि कम्युनिस्ट पार्टी अब पर्याय नहीं बन रही तो उन्होंने बीजेपी को ऑल्टरनेटिव के तौर पर चुना। यह एंटी टीएमसी वोट बैंक था, जिसके चलते टीएमसी उनका ऑल्टरनेटिव नहीं बनी। इसके बाद यह वोट स्प्लिट हो गया। सीपीएम को जो मुसलमान सपोर्ट करते थे, वे टीएमसी के पास गए और एंटी टीएमसी हिंदू बीजेपी में आ गए। इनके अलावा टीएमसी के अंदर के बहुत सारे हिंदू बीजेपी में आ गए। उनमें से कोई भी सीपीएम के पास नहीं गया। वहीं, डिस्ट्रिक्ट कमेटी, युवा कमेटी के 25-30 लोग मुझसे मिले। उन्होंने कहा कि हम टीएमसी से नहीं लड़ सकते हैं। हम आपसे लड़ सकते हैं, क्योंकि यह हमारी अपनी लड़ाई है, जिसे हम बाद में निपट लेंगे, लेकिन पहले ममता बनर्जी को हटाएंगे।

सवाल: तो अब बंगाल में क्या लगता है कि आगे क्या होगा?

जवाब: प्रधानमंत्री जी ने अपने भाषण में कहा था कि टीएमसी के 40 एमएलए हमारे संपर्क में हैं। मुकुल रॉय जी और दिलीप घोष जी कहते हैं कि 100 से ज्यादा विधायक हमारे संपर्क में हैं। हम लोग संविधान से बनी हुई सरकार को नहीं गिराना चाहते हैं। हम बहुत ज्यादा उत्साही नहीं हैं कि सरकार गिराई जाए, लेकिन वे लोग अब यह सोच रहे हैं कि अब हम कमल के पुष्पक के ऊपर ही चुनाव जीत सकते हैं। अब टीएमसी के चिह्न पर हम जीतने वाले नहीं हैं। अगर विधायकों को यह लगने लगता है तो एक राजनीतिक पार्टी होने के नाते हम उन्हें इधर-उधर जाने से कैसे रोक सकते हैं? टीएमसी द्वारा लगाए जा रहे आरोप निराधार हैं कि हम ताकत और पैसे का इस्तेमाल कर रहे हैं। यह सब बकवास है, क्योंकि हमारे शारदा-नारदा जैसे किसी चिटफंड का पैसा नहीं है और पूरे देश ने हमें सर्टिफिकेट दिया है कि हमारी पार्टी और हमारे प्रधानमंत्री एकदम क्लीन हैं। इतना ज्यादा बवंडर खड़ा किए जाने के बाद भी जनता ने उन्हें इतनी बड़ी मात्रा में चुना है। ममता बनर्जी के पास मसल पावर है। राजीव कुमार से पूछताछ करने गई सीबीआई की टीम को रोकने के लिए मुख्यमंत्री खुद धरने पर बैठती हैं। उन्होंने ऐसा क्यों किया? उन्होंने सभी अफसरों को मैसेज दिया कि मैं आपके साथ हूं। आप जो चाहते हैं, करें। मैं आपका समर्थन करूंगी। मैं जो चाहूंगी, वह मैं करूंगी। आप भी मेरा सपोर्ट और बचाव करें। इसी वजह से बंगाल की जनता गागर लेकर देने के लिए तैयार बैठी है और बीजेपी कटोरा लेकर बैठी है। हम लोग बहुत पीछे थे और जनता काफी आगे थी। जनता ने कई जगह जबर्दस्ती बीजेपी को जिता दिया। वहां हमारा कैडर नहीं था। इसके बाद भी लोगों ने भर-भरकर बीजेपी को वोट डाले। यह वहां की स्थिति है, क्योंकि बीजेपी का कार्यकर्ता गरीब है। सालों तक कभी सत्ता नहीं मिली है। वह मध्यमवर्गीय है और उसे चुनाव के बाद 2 साल तक टीएमसी के कार्यकाल में ही रहना है। वह चाहकर भी भगत सिंह नहीं बन सकता है। बंगाल में हमारे 55 कार्यकर्ताओं की हत्या हुई है। इसके खिलाफ हम अभी कैंडल मार्च करने जा रहे हैं। ममता ने पहचाना कि उनकी पार्टी के अंदर उनका पापुलर बेस खत्म हो चुका है। बीजेपी का पापुलर बेस बढ़ा हुआ है। टीएमसी को राज्य का निर्वाचन आयोग, स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन और स्टेट पुलिस द्वारा रिप्रेजेंट की जा रही थी।

सवाल: आप भी कोलकाता में किसी नेता के खिलाफ धरने पर बैठे थे?

जवाब: हमारे अधिकारियों की सभाओं को रोका जा रहा था। शाम 4 बजे अमित शाह जी की जनसभा थी और सुबह 11 बजे तक परमीशन नहीं दी गई थी। ऐसे में लोग कैसे आएंगे। हम तैयारी कैसे करेंगे और टेंट कैसे ठोंकेंगे। फिर अचानक 11 बजे परमीशन दे दी। हमने जल्दी-जल्दी में 200-400 लोगों को बुलाया। इसके बाद वे कहेंगे कि अमित शाह आए तो ये सिर्फ 400 लोग जुटा पाए। इनका कोई सपोर्ट नहीं है। इस तरह आखिरी चरण के चुनाव में कई प्रोग्राम फेल किए गए। योगी आदित्यनाथ जी की एक सभा रद्द की गई। स्मृति ईरानी जी की एक सभा को 3 घंटे पहले परमीशन दी। इस वजह से हमें अमित शाह भाई की भी एक सभा कैंसल करनी पड़ी। हम लोग जाकर धरने पर बैठे और हंगामा किया। इसके बाद प्रतिनिधिमंडल केंद्रीय चुनाव आयोग से मिला।

सवाल: बंगाल में सीएम ममता बनर्जी को टक्कर देने वाला लीडर है आपके पास?

जवाब: बंगाल में वोट पीएम मोदी पर ही पड़ेगा। मोदी जिसको मुख्यमंत्री बनाएंगे, बंगाल की जनता उसे ही एक्सेप्ट करेगी। विधानसभा चुनाव में भी मोदी-मोदी ही चलेगा।

सवाल: जैसे त्रिपुरा में 2017 के दौरान वाम मोर्चा के खिलाफ वोट बैंक शिफ्ट हुआ था, क्या वैसे ही 2019 में टीएमसी के खिलाफ वोट बैंक शिफ्ट हो रहा है?

जवाब: हुआ है, लेकिन त्रिपुरा के शिफ्ट में कोई पोलराइजेशन नहीं था। माणिक सरकार ने बहुत कोशिश की कि बीजेपी आएगी तो दंगा कराएगी। चुनाव से पहले भी कोई दंगा नहीं हुआ और चुनाव के बाद एक साल हो गया, लेकिन कोई दंगा नहीं हुआ। उन्होंने पोलराइज करने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुए। हमने कभी पोलराइजेशन की कोशिश नहीं की। ऐसे में हमने साबित किया कि बिना पोलराइजेशन के भी हम अपने विरोधियों को मात दे सकते हैं।

सवाल: अगर हिंसा पर हम बात करें तो हिंसा का कारण क्या है? ममता बनर्जी कहती हैं कि बंगाल में अब तक बीजेपी नहीं थी तो हिंसा नहीं होती थी। बीजेपी आई, हिंसा लेकर आई। जय श्रीराम के नारे लगवाकर हिंसा करवाती है। गदा लेकर रैली करते हैं और फरसा लेकर रामनवमी में निकलते हैं?

जवाब: वह तो दिखावे की गदा होती है और रामनवमी में दिखावे की तलवारें होती हैं। यह सब बकवास है। ममता बनर्जी के खिलाफ बंगाल में कितनी हिंसा हुई है, वह याद करें। उनके जमाने में 55 हजार पॉलिटिकल मर्डर सीपीएम ने 34 साल में किए हैं। पंचायत चुनाव में हमारे 50 से ज्यादा कार्यकर्ताओं की हत्या हुई। इसका बहुत बड़ा कारण यह रहा कि पंचायत चुनाव में लोगों को वोट नहीं डालने दिया गया तो जो टीएमसी का वोटर था, वह नाराज हो गया। उसे लगा कि टीएमसी को उस पर विश्वास नहीं है। आपने हमको वोट नहीं डालने दिया तो जाओ हमको भी आप पर विश्वास नहीं है। यह टीएमसी वोटर्स का रिएक्शन था, क्योंकि उन्हें वोट डालने से रोका गया था।

अमित शाह के रोड शो के दौरान हुई थी हिंसा। आपस में भिड़ गए थे BJP-TMC समर्थक। फोटो सोर्स: एएनआई

सवाल: सीटों की संख्या के हिसाब से बीजेपी के लिए एक तरह से बंगाल बहुत स्पेसिफिक स्टेट हो गया है। आपको क्या लगता है बंगाल की ओर से कैबिनेट में क्या प्रतिनिधित्व हो सकता है? बंगाल के स्थानीय सांसदों का केंद्र सरकार में क्या रोल हो सकता है?

जवाब: यह मुझसे जुड़ा मामला नहीं है। मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकता हूं।

सवाल: इसके आधार पर बीजेपी विधानसभा के लिए क्या करेगी? मोदी का नाम साथ है, लेकिन इसके अलावा क्या किया जाएगा?

जवाब: पार्टी अपना काम करेगी। पार्टी अपनी नीतियां बताएगी। केंद्र सरकार में बंगाल के नेता मंत्री जरूर बनेंगे। आपने मुझसे संख्या पूछी, लेकिन वह आपको मोदी जी से पूछनी चाहिए। ऐसे में जो चुनकर आए हैं, उनमें से ही मंत्री बनेंगे। 2014 में बंगाल से 2 सांसद चुने गए थे। दोनों ही मंत्री बने थे। जैसे देश भर में बाकी राज्यों का रिप्रेजेंटेशन रहता है, वैसा ही बंगाल का भी रहेगा। अगले दो साल में मोदी जी की और भी योजनाएं आ जाएंगी तो स्वाभाविक है कि आने वाले 2 साल में मोदी सरकार का जो परफॉर्मेंस रहेगा, उसका फायदा बंगाल में आने वाले विधानसभा चुनाव से पहले हमें मिलेगा।