इंडिया गठबंधन की नींव मोदी को हराने के लिए रखी गई थी। बिहार के ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सबसे पहले उस एकजुटता की कवायद की थी, लगातार दिल्ली के दौरे किए थे और तब जाकर अलग-अलग विचारधारा वाले कई दल साथ आए थे। उसमें ममता से लेकर लेफ्ट तक को शामिल कर लिया गया था। पहले मांग उठी थी कि बिना कांग्रेस के ही थर्ड फ्रंट बनाया जाए, लेकिन नीतीश के प्रयासों ने ही कांग्रेस को भी साथ रखा और विपक्षी एकता की रूपरेखा तैयार हुई।

कैसे अकेले होती चली गई कांग्रेस?

लेकिन अब जब लोकसभा चुनाव बिल्कुल करीब है, यही इंडिया गठबंधन बिखराव का शिकार हो गया है। नीतीश कुमार ने फिर पलटी मार ली है और देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के लिए मुश्किलें खत्म होने का नाम नहीं ले रहीं। ये बात सभी को पता थी कि कांग्रेस को ही इस इंडिया गठबंधन में सबसे ज्यादा कुर्बानियां देनी पड़ेंगी, ये भी साफ था कि वो पहले की चुनावों की तुलना में कम सीटों पर चुनाव लड़ेगी। लेकिन ये किसी ने नहीं सोचा था कि इंडिया गठबंधन के नेता ही मोदी से ज्यादा कांग्रेस को निशाने पर लेने का काम करेंगे। लेकिन जो नहीं सोचा था, वैसे ही होता दिख रहा है।

ममता ने क्यों दे डाली चुनौती?

पिछले कुछ दिनों ने इंडिया गठबंधन के अंदर तल्ख माहौल को चरम पर पहुंचा दिया है। बात सबसे पहले बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ही करनी चाहिए जिन्होंने अब तक का सबसे बड़ा प्रहार कांग्रेस पर कर दिया है। जब से बंगाल में कांग्रेस के साथ सीट शेयरिंग फेल हुई है, ममता के हमले लगातार जारी हैं। लेटेस्ट बयान में उन्होंने कहा है कि मैं नहीं मानती कि कांग्रेस 300 में से 40 सीट भी जीत पाएगी या नहीं। पहले ये पार्टी जहां जीत भी जाती थी, अब तो वहां भी हार ही रही है। अगर हिम्मत है तो बनारस में बीजेपी को हराके दिखाएं।

अब जो टीएमसी इस समय इंडिया गठबंधन में सहयोगी बनी हुई है, वो क्या इस तरह से चुनौती दे सकती है? ऐसा कम ही बार देखने को मिलता है कि गठबंधन के साथ अपने सियासी दुश्मन से ज्यादा सहयोगी पर ही निशाना साधना शुरू कर दें। लेकिन यहां पर ऐसा ही होता दिख रहा है, कांग्रेस को बीजेपी से ज्यादा निशाने पर लेने का काम उनकी दूसरी सहयोगी पार्टियां कर रही हैं। ये निशाने भी इसलिए साधे जा रहे हैं क्योंकि कांग्रेस सीट शेयरिंग के मामले में झुकने को तैयार नहीं और दूसरे दल उसे ज्यादा देने के मूड में नहीं।

जिसका डर, वहीं हुआ, कैसे बिखरा इंडिया गठबंधन?

समझने वाली बात ये है कि इंडिया गठबंधन में सीट शेयरिंग ही सबसे बड़ी चुनौती साबित होनी थी। दलों का साथ आना बड़ी बात नहीं थी, एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम तैयार करना भी ज्यादा मुश्किल नहीं था, हर किसी को पता था कि चुनौतियां तो सीट शेयरिंग के टाइम आएंगी। इसी वजह से सीट शेयरिंग कई मौकों पर टाली गई, कई बैठकों के बाद भी कोई फैसला नहीं हुआ। लेकिन अब जब चर्चा शुरू हुई, देखते ही देखते कई राज्यों में खेल बिगड़ गया। एक कॉमन लिंक इसमें ये रहा कि हर किसी ने कांग्रेस को ही विलेन के रूप में पेश किया।

बंगाल में कांग्रेस 10 सीटें चाहती थी, ममता देने को रेडी हुईं सिर्फ 2, मामला बिगड़ गया और वहां पर सीट शेयरिंग फंस गई। टीएमसी का कहना रहा कि कांग्रेस में बहुत अहंकार है, दो सीटें जीतने वाली पार्टी कैसे इतनी ज्यादा की डिमांड रख सकती है। दूसरी तरफ कांग्रेस ने भी बोल दिया कि ममता की भीख नहीं चाहिए। इसी से समझा जा सकता है कि रिश्ते कितने खराब हो गए हैं। पंजाब की तरफ अगर जाया जाए, वहां से लोकसभा की 13 सीटें निकलती हैं।

केजरीवाल भी कांग्रेस के लिए सिरदर्दी

ये एक ऐसा राज्य है जहां पर कुछ साल पहले तक कांग्रेस की सरकार थी, प्रचंड बहुमत के साथ बनी थी। लेकिन आम आदमी पार्टी की आंधी ने उसका सफाया कर दिया। अब सत्ता पलट चुकी है, भगवंत मान की अगुवाई में आप की सरकार चल रही है। विश्वास इतना ज्यादा है कि सारी सीटों पर जीतने का दम भरा जा रहा है। कांग्रेस से गठबंधन करने को लेकर कोई रेडी नहीं, यानी कि ये राज्य भी फंस गया। राजधानी चले जाएं तो वहां तो अरविंद केजरीवाल किसी भी कीमत पर कांग्रेस को फिर पैर जमाने का मौका नहीं देना चाहते। कॉमन लिंक तो ये भी है कि यहां भी कांग्रेस की ही सरकार उखाड़कर सत्ता में आया गया है।

अखिलेश ने भी कर दिया खेला

ऐसे में इंडिया गठबंधन के तमाम बड़े नेता कांग्रेस को ज्यादा बारगेनिंग पावर देने की स्थिति में ही नहीं हैं। इसी वजह से उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने भी पहले ही 16 लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए। वहां भी तीन ऐसी सीटों पर भी प्रत्याशी खड़े किए जहां से कांग्रेस टिकट चाहती थी। बात चाहे फर्रुखाबाद की हो या उन्नाव और अयोध्या की, इन सीटों पर कांग्रेस दावा ठोक रही थी। लेकिन अखिलेश ने बिना कांग्रेस से चर्चा किए उसे सिर्फ 11 सीटें देने का ऐलान कर दिया। ये बताने के लिए काफी है कि इंडिया गठबंधन में क्या खिचड़ी पक रही है।

पलटी मारने से पहले नीतीश का ‘सियासी थप्पड़’

इस खिचड़ी में कांग्रेस के लिए चुनौतियों का तड़का मारने का काम नीतीश कुमार ने कर दिया था। बिहार में उन्होंने पलटी तो मारी, लेकिन उसके लिए लालू-तेजस्वी से ज्यादा कांग्रेस को जिम्मेदार बता दिया। केसी त्यागी ने तो आरोप तक लगा दिया कि इंडिया गठबंधन को हड़पने की कोशिश में थी कांग्रेस। अब इस बयान को देकर जेडीयू तो अलग हो गई, लेकिन विलेन पूरी तरह कांग्रेस बन गई। यानी कि बिहार में सत्ता गंवाने के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार बताया गया। इसी वजह से अब कांग्रेस के लिए बीजेपी से पहले इंडिया गठबंधन का मुकाबला करना एक चुनौती बना हुआ है। इस चुनौती से पार पाने के बाद ही चुनाव की तैयारी की जा सकती है।