Gujarat Lok Sabha Chunav: गुजरात की 26 में से 25 लोकसभा सीटों पर मंगलवार को वोट डाले जाएंगे। सूरत लोकसभा सीट पर बीजेपी का प्रत्याशी पहले ही निर्विरोध निर्वाचित हो चुका है। राज्य में लोकसभा चुनावों में किस्मत आजमा रहे कुल 266 प्रत्याशियों में से 32 मुस्लिम हैं (करीब 12 फीसदी)। लेकिन खास बात ये है राज्य में बीजेपी और कांग्रेस पार्टी ने एक भी मुस्लिम प्रत्याशी पर भरोसा नहीं जताया है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार, गुजरात राज्य में करीब 10% जनसंख्या मुस्लिम है।
राज्य में बीएसपी एकमात्र ऐसी नेशनल पार्टी है, जिसने लोकसभा चुनाव में एक मुस्लिम कैंडिडेट को सियासी रण में उतारा है। लोकसभा चुनाव में किस्मत आजमा रहे ज्यादातर मुस्लिम या तो निर्दलीय प्रत्याशी हैं या फिर वो छोटे दलों के टिकट पर मैदान में किस्मत आजमा रहे हैं। इन दलों में भारतीय जन नायक पार्टी (खेड़ा लोकसभा), लोग पार्टी (नवसारी लोकसभा), राइट टू रिकॉल पार्टी (खेड़ा लोकसभा) और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (पाटन और नवसारी लोकसभा) शामिल हैं।
बात अगर किसी एक विशेष लोकसभा सीट की करें तो गुजरात की गांधीनगर लोकसभा सीट से सबसे ज्यादा सात मुस्लिम कैंडिडेट चुनाव मैदान में हैं। यहां से देश के बीजेपी के टिकट पर गृह मंत्री अमित शाह भी लगातार दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस पार्टी ने गांधीनगर लोकसभा सीट से सोनल पटेल को चुनाव मैदान में उतारा है।
किन सीटों पर मुस्लिमों की अच्छी संख्या
सबसे ज्यादा मुस्लिम प्रत्याशियों के मामले में गांधीनगर लोकसभा सीट के बाद भरूच और पाटन लोकसभा का नंबर आता है। इन दोनों ही सीटों पर चार-चार मुस्लिम कैंडिडेट चुनाव लड़ रहे हैं। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात में पंद्रह सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिमों की अच्छी संख्या है। इन सीटों में कच्छ, जामनगर, जुनागढ़, भरूच, भावनगर, सुंदरनगर, पाटन, बनासकांठा, सांबरकांठा, अहमदाबाद वेस्ट, अहमदाबाद ईस्ट, गांधीनगर, नवसारी, पंचमहल और आनंद लोकसभा सीटें शामिल हैं।
साल 2004, 2009 और 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने भरूच लोकसभा सीट मुस्लिम प्रत्याशी को मौका दिया था। यहां कांग्रेस ने क्रमश: मोहम्मद पटेल, अज़ीज़ तनकरवी और शेरखान पठान को प्रत्याशी बनाया था। भरूच इलाके को कांग्रेस के दिवगंत नेता अहमद पटेल का गढ़ माना जाता था। इस बार इस लोकसभा सीट पर आम आदमी पार्टी इंडिया ब्लॉक के दल के रूप में चुनाव लड़ रही है। यहां से उसने अपने विधायक चैतर वसावा को मैदान में उतारा है।
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने भरूच सीट से जयेश पटेल को चुनाव मैदान में उतारा था लेकिन तब पार्टी ने नवसारी में बीजेपी के सीआर पाटिल के सामने एक मुस्लिम कैंडिडेट को चुनाव मैदान में उतारा था।
बीजेपी ने गुजरात में आखिरी दो लोकसभा चुनावों में क्लीन स्वीप किया है। इस बार भी यहां सूरत सीट पहले ही उसके खाते में आ चुकी है। कांग्रेस के नेता और पार्टी के एकमात्र मुस्लिम विधायक इमरान खेड़ावाला कहते हैं कि भरूच में चैतर वसावा के पक्ष में रहने का पार्टी का फैसला सही है।
आपको बता दें कि भरूच लोकसभा सीट के अस्तित्व में आने के बाद से साल 1984 तक कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। अहमद पटेल ने साल 1977 से साल 1984 के बीच यहां तीन बार जीत दर्ज की। वह इस सीट से कांग्रेस पार्टी के आखिरी सांसद थे। बीजेपी के चंदूभाई देशमुख ने साल 1989 में उन्हे हराया। इसके बाद वह भरूच से तब तक चुनाव जीतते रहे, जब तक पार्टी ने यहां से प्रत्याशी नहीं बदला। साल 1998 में बीजेपी ने यहां से मनसुख वसावा को टिकट दिया। वसावा इस बार यहां से अपना सातवां चुनाव लड़ रहे हैं।
अहमद पटेल के बच्चे भरूच से चाहते थे टिकट
अहमद पटेल के बेटे फैजल और बेटी मुमताज भरूच लोकसभा सीट से टिकट चाह रहे थे। इसपर विधायक इमरान खेड़ावाला कहते हैं कि वो जीत नहीं पाते लेकिन लेकिन चैतर लोकल हैं और सीटिंग विधायक हैं और उस समुदाय से संबंध रखते हैं, जिसकी यहां अच्छी संख्या है। इस लोकसभा में करीब तीन लाख मुस्लिम वोटर हैं। अगर ये सभी भी वोट करते हैं तो भी काफी नहीं है। आप सिर्फ मुस्लिम वोट के भरोसे नहीं जीत सकते। आपको हिंदुओं के वोटों की भी जरूरत पड़ेगी।
क्या कहते हैं जफर सरेशवाला?
मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के पूर्व चांसलर और इस्लामिक इनवेस्टमेंट एडवाइजरी सर्विस प्लेटफॉर्म पारसोली कॉर्पोरेशन के मालिक जफर सरेशवाला किसी भी नेशनल पार्टी द्वारा गुजरात में मुस्लिमों को टिकट न देने पर चिंता जताते हैं। वह अपने समुदाय के लोगों से भी सवाल करते हैं हैं कि अगर मुसलमानों को चुनाव में टिकट नहीं दिया जाएगा तो वे कैसे प्रासंगिक बने रह सकते हैं। वो आगे कहते हैं कि अब ऐसा लगता है कि हमारा सुमदाय यह मान बैठा है कि हमारा काम वोट देना है न कि टिकट की डिमांड करना।
हालांकि इसी दौरान सरेशवाला गुजरात में मुस्लिम समुदाय के विकास पर भी फक्र जताते हैं। वह कहते हैं कि 2002 के मुस्लिमों ने सिर्फ तीन चीजों पर फोकस किया- शिक्षा, व्यापार और हेल्थ। अहमदाबाद में पहले सिर्फ तीन चार स्कूल मुस्लिमों द्वारा चलाए जाते थे लेकिन अब इनकी संख्या 72 है। इसी तरह 2002 में जो व्यापार जलाकर राख कर दिए गए थे, वो अब दस से पंद्रह गुना फैल हो गए हैं।