इस पश्चिमी प्रदेश की कुल 182 सदस्यीय विधानसभा के लिए पहले चरण में 89 सीटों पर और दूसरे चरण में 93 सीटों पर मतदान होगा। इस चुनाव में निम्नलिखित 10 प्रमुख सीटों पर लोगों की खास निगाहें रहेंगी।
मणिनगर : अहमदाबाद जिले की यह शहरी विधानसभा सीट 1990 के दशक से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की गढ़ रही है। यहां हिन्दू मतदाताओं की बहुलता है। गुजरात का मुख्यमंत्री रहते नरेंद्र मोदी ने 2002, 2007 और 2017 के चुनावों में इसी सीट से जीत दर्ज की थी। इस सीट से वर्तमान में भाजपा के सुरेश पटेल विधायक हैं। घाटलोदिया : यह अहमदाबाद की एक अन्य शहरी सीट है। इस सीट पर पाटीदार मतदाताओं की खासी संख्या है और इसने राज्य को दो मुख्यमंत्री दिए हैं। वे हैं आनंदी बेन पटेल और भूपेंद्र पटेल। आनंदी बेन पटेल के सक्रिय राजनीति से अलग होने के बाद भाजपा ने 2017 में भूपेंद्र पटेल को इस सीट से उम्मीदवार बनाया था।
मोरबी : हाल ही में पुल ढहने से 135 लोगों की यहां मौत हो गई थी, जिसकी वजह से पाटीदार बहुल यह निर्वाचन क्षेत्र सुर्खियों में है। पाटीदार आरक्षण आंदोलन के कारण पिछली बार यहां भाजपा के पांच बार के विधायक कांती अमृतिया को कांग्रेस के ब्रिजेश मेरजा के हाथों पराजय का सामना करना पड़ा था। वर्ष 2020 में मेरजा ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया।
राजकोट पूर्व : अक्तूबर 2001 में पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने फरवरी 2002 में इस सीट से जीत हासिल की थी। भाजपा के दिग्गज नेता वजुभाई वाला ने 1980 से 2007 के बीच छह बार इस सीट का प्रतिनिधित्व किया था। उन्होंने 2002 में मोदी के लिए इसे खाली कर दिया था। साल 2017 का चुनावी मुकाबला दिलचस्प हो गया था क्योंकि राजकोट-पूर्व से तत्कालीन कांग्रेस विधायक इंद्रनील राजगुरु ने घोषणा की थी कि वे अपनी सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ने के बजाय विजय रूपाणी का मुकाबला करेंगे।
हालांकि राजगुरु चुनाव हार गए। हाल ही में वे आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए और फिर कांग्रेस में वापस आ गए। गांधीनगर उत्तर : गुजरात की राजधानी गांधीनगर शहर में कोई विशिष्ट जाति समीकरण नहीं है। गांधीनगर उत्तर निर्वाचन क्षेत्र 2008 में अस्तित्व में आया था। साल 2012 में भाजपा के अशोक पटेल ने 4,000 से अधिक वोटों के मामूली अंतर से जीत हासिल की थी। साल 2017 में कांग्रेस नेता सी जे चावड़ा ने पटेल को करीब 4,700 वोटों से हराया था।
वराछा: यह सूरत जिले की पाटीदार बहुल सीट है। पिछले चुनाव से पहले पाटीदार आरक्षण आंदोलन के दौरान यहां भी हिंसा देखी गई थी। गुजरात के पूर्व मंत्री किशोर कनानी 2012 में यहां से भाजपा के टिकट पर जीते थे और 2017 में इसे बरकरार रखने में कामयाब रहे थे।
झगाड़िया: भारतीय ट्राइबल पार्टी के संस्थापक छोटू बसावा इस जनजातीय बहुत सीट से 1990 से लगातार जीत दर्ज करते आ रहे हैं। हाल में उन्होंने आम आदमी पार्टी से संबंध तोड़ लिए थे। इस पार्टी का प्रभुत्व देडियापारा सीट पर भी है।
आणंद: आणंद में पटेल और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के मतदाताओं की मिश्रित जनसंख्या है। इस सीट पर फिलहाल कांग्रेस का कब्जा है। पिछले चुनाव में कांति सोढ़ा परमार ने यहां से जीत दर्ज की थी। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में और 2014 के उपचुनाव में उन्हें भाजपा उम्मीदवारों के हाथों पराजय झेलनी पड़ी थी। हालांकि 2017 में उन्होंने जीत दर्ज की।
पावी जेतपुर अनुसूचित (जनजाति): छोटा उदयपुर जिले की इस आरक्षित सीट पर वर्तमान में विपक्ष के नेता सुखराम राठवा का कब्जा है। उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर 2017 के विधानसभा चुनाव में यहां से जीत दर्ज की थी।
जसदण: इस सीट पर वर्तमान में राज्य के सबसे कद्दावर कोली नेताओं में शुमार भाजपा के कुंवरजी बावलिया का कब्जा है। बावलिया पांच बार कांग्रेस के विधायक रह चुके हैं। वर्ष 2017 में कांग्रेस के टिकट पर जीतने के बाद उन्होंने पाला बदल लिया था। अमरेली : गुजरात के पहले मुख्यमंत्री जीवराज मेहता 1962 में सौराष्ट्र क्षेत्र के इस अमरेली से ही चुनकर विधानसभा पहुंचे थे।
साल 1985 से 2002 तक हुए यहां के विधानसभा चुनावों में भाजपा के उम्मीदवारों ने सफलता हासिल की। साल 2002 में कांग्रेस के परेश धनानी ने एक बड़ा उलटफेर करते हुए यह सीट भाजपा से छीन ली। उन्हें 2007 में भाजपा के दिलीप संघानी ने हरा दिया। लेकिन धनानी ने 2012 में बदला लेते हुए यह सीट वापस जीत ली। साल 2017 में वह फिर से यहां से निर्वाचित हुए।
पोरबंदर : मेर और कोली मतदाताओं के प्रभुत्व वाले इस निर्वाचन क्षेत्र में लंबे समय से भाजपा के बाबू बोखिरिया और कांग्रेस के अर्जुन मोढवाडिया के बीच प्रतिद्वंद्विता देखी जाती रही है। 2017 में बोखिरिया ने पूर्व नेता प्रतिपक्ष और पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोढवाडिया को 1,855 मतों के मामूली अंतर से हराया था।
कुटियाना : यह गुजरात की एकमात्र सीट है जिस पर पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का कब्जा है। कथित गैंगस्टर दिवंगत संतोकबेन जडेजा के बेटे कंधाल जडेजा ने 2012 और 2017 में यहां से भाजपा को हराया था। उन्होंने राज्यसभा चुनाव के दौरान भाजपा उम्मीदवारों को वोट दिया था और बाद में राकांपा नेतृत्व ने उन्हें नोटिस जारी किया था।
गोंडल : पटेल और राजपूत समुदायों के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के लिए प्रसिद्ध यह सीट वर्तमान में भाजपा के पास है। पिछले चुनाव में भाजपा की गीताबेन जडेजा ने यहां से जीत दर्ज की थी। वह एक राजपूत और पूर्व विधायक और स्थानीय बाहुबली जयराजसिंह जडेजा की पत्नी हैं, जो हत्या के एक मामले में जमानत पर बाहर हैं।
मेहसाणा : यह पाटीदार बहुल सीट है। वर्ष 1990 से यह भाजपा का गढ़ बना हुआ है। भाजपा नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल ने 2012 और 2017 में यहां से जीत हासिल की थी। मेहसाणा शहर में पाटीदार आरक्षण आंदोलन के दौरान हिंसक प्रदर्शन हुए थे। नतीजतन, पटेल की जीत का अंतर पिछली बार 7,100 से थोड़ा अधिक था।