कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में लगातार बड़े झटके लग रहे हैं, जिन नेताओं पर भरोसा कर आगे की रणनीति बनाई जा रही थी, वो नेता ही पाला बदलकर दूसरे खेमे में जा रहे हैं। गुरुवार का दिन भी कांग्रेस के लिए काफी भारी रहा, गौरव वल्लभ ने कांग्रेस छोड़ दी तो दूसरी तरफ संजय निरुपम को निष्कासित कर दिया गया। अब दोनों अलग हुए, ये बड़ी बात है, लेकिन क्या बोलकर अलग हुए, ये इससे भी ज्यादा बड़ी बात है।
देश की सबसे पुरानी पार्टी का पिछले 10 सालों में पतन का एक बड़ा कारण है- तुष्टीकरण वाली राजनीति। सच्चाई इससे कुछ अलग भी हो सकती है, लेकिन जो धारणा बनी है, उसने कांग्रेस को बहुत नुकसान दिया। एक बड़े वर्ग को ऐसा लगने कि कांग्रेस एक समुदाय के वोट के लिए दूसरों को नजरअंदाज करती है। अब जब तक ये आरोप बीजेपी वाले लगा रहे थे, इसे राजनीति कहा जा सकता था, लेकिन अब तो कांग्रेस के ही ‘अपने’ उसे हिंदू विरोधी बताने लगे हैं।
टीवी डिबेट में कांग्रेस के सबसे बड़े प्रवक्ता माने जाने वाले गौरव वल्ल्भ ने पार्टी छोड़ दी है…अनुमान के मुताबिक बीजेपी में शामिल भी हुए हैं। अब जो बातें बोलकर गौरव ने बीजेपी का दामन थामा है, वो कांग्रेस को बहुत दर्द देगा।गौरव वल्लभ ने कहा कि कांग्रेस पार्टी आज जिस प्रकार से दिशाहीन होकर आगे बढ़ रही है। उसमें मैं ख़ुद को सहज महसूस नहीं कर पा रहा। मैं ना तो सनातन विरोधी नारे लगा सकता हूं और ना ही सुबह-शाम देश के वेल्थ क्रिएटर्स को गाली दे सकता हूं। इसलिए मैं कांग्रेस पार्टी के सभी पदों से इस्तीफ़ा दे रहा हूं।
अब गौरव वल्लभ यही नहीं रुके, दूसरे बागी नेताओं की तरह परंपरा निभाते हुए उनके हमलों का केंद्र भी कांग्रेस हाईकमान है। इसी हिंदू वाली लाइन पर आगे बढ़ते हुए गौरव ने कहा- राम मंदिर को लेकर जो कांग्रेस का स्टैंड था, मैं उससे हैरान हूं, मैं जन्म से हिंदू और कर्म से शिक्षक हूं। पार्टी के इस स्टैंड ने मुझे हमेशा असहज किया, परेशान किया पार्टी और गठबंधन से जुड़े कई लोग सनातन के विरोध में बोलते हैं और पार्टी का उस पर चुप रहना, उसे मौन स्वीकृति देने जैसा है।
अब अगर अकेले गौरव वल्लभ ऐसा बोलते है तो बात अलग होती, लेकिन एक और नेता हैं- संजय निरुपम। फायर ब्रांड नेता ने कांग्रेस की ही नींव पर हमला कर दिया है, कहना चाहिए चाशनी में डिबोकर सियासी हमले किए गए हैं। आलम ये रहा कि निरुपम ने तो जवाहर लाल नेहरू तक को नहीं बख्शा। सेक्युलरिज्म की असली DEFINATION बताते हुए उन्होंने कहा कि सेक्युलरिज्म में कोई बुराई नहीं है लेकिन सेक्युलरिज्म में दूसरे धर्म का विरोध नहीं होता। ये कितना बड़ा बयान है, कांग्रेस का ही एक बड़ा नेता बता रहा है- देश की सबसे पुरानी पार्टी एक धर्म का विरोध करने लगी है। निरुपम ने यहां तक कहा है कि हिंदू धर्म में आस्था रखना कोई गुनाह हो गया है।
अगर ये हमले बीजेपी करती, कांग्रेस के लिए जवाब देना आसान होता, लेकिन ये हमले क्योंकि उसके अपने नेताओं ने किए हैं, इनका नुकसान ज्यादा है। बड़ी बात ये है कि तमाम बड़े नेता इन्हीं मुद्दों पर कांग्रेस को टोक रहे हैं। कुछ महीने पहले ही कांग्रेस छोड़ने वाले आचार्य प्रमोद कृष्णम ने कह दिया- कुछ नेताओं को हिंदू और राम से नफरत है। गुजरात कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अर्जुन मोढवाडिया ने पार्टी छोड़ते टाइम कहा था- राम मंदिर कार्यक्रम में नहीं जाने से लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंची।
अब ये सारे बयान इस ओर इशारा करते हैं कि कांग्रेस के अपने नेता भी कई मुद्दों पर पार्टी के स्टैंड से असहज हैं। ऐसे नेताओं की असहजता उस समय से और बढ़ चुकी है जब से राहुल गांधी ने शक्ति विवाद छेड़ दिया है। एक बयान में कह दिया- हिंदू में शक्ति शब्द का जिक्र है। हमारा मुकाबला शक्ति से है। अब जानकार कह रहे थे कि बीजेपी इस बार राम मंदिर के जरिए ध्रुवीकरण वाली राजनीति करेगी, उस बीच ऐसे विवादों ने उसकी पिच को और ज्यादा मजबूत करने का काम कर दिया है।
अब कांग्रेस इस समय बड़ी दुविधा में चल रही है। वो ना खुलकर हिंदुओं की बात कर सकती है, ना ही खुलकर उनके खिलाफ बोल सकती है। ऐसे समझिए- राहुल गांधी मंदिर गए, नेरेटिव सेट हुआ- कांग्रेस कर रही सॉफ्ट हिंदुत्व। राहुल गांधी गए मस्जिद- नेरेटिव सेट हुआ- तुष्टीकरण की राजनीति हो रही है, यानी कि इधर खाई उधर कुए वाली स्थिति में कांग्रेस फंस चुकी है।