पूर्व क्रिकेटर और बीजेपी नेता गौतम गंभीर ने चुनावी संन्यास लेने का ऐलान कर दिया है। उनकी तरफ से बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को एक चिट्ठी अपील की गई है कि उन्हें अब राजनीतिक जिम्मेदारियों से मुक्ति दी जाए। उनका तर्क है कि उन्हें अपने क्रिकेट के कुछ कमिटमेंट पूरे करने हैं, ऐसे में राजनीति में सक्रिय नहीं रह सकते। अब ये वो कारण है जो गंभीर ने मीडिया के सामने बताया है। लेकिन राजनीति में हर फैसले के कई मायने और कारण रहते हैं।

गौतम गंभीर ने साल 2019 में राजनीति में कदम रखने का फैसला किया था। 22 मार्च, 2019 को स्वर्गीय अरुण जेटली ने गंभीर को बीजेपी की सदस्यता दिलवाई थी। पार्टी ज्वाइन करते ही बीजेपी ने भी उनकी लोकप्रियता को भुनाने के लिए उन्हें पूर्वी दिल्ली सीट से लोकसभा चुनाव में उतार दिया था। वो मुकाबला काफी कड़ा था, कांग्रेस के कद्दावर नेता अरविंद सिंह लवली वहां से प्रत्याशी थे, आम आदमी पार्टी ने भी आतिशी को उतार रखा था। लेकिन पहली बार में गंभीर ने सियासी छक्का मारते हुए पूर्वी दिल्ली सीट से प्रचंड जीत दर्ज की।

गंभीर ने उस जीत के बाद बतौर सांसद शुरुआती समय में काफी सक्रियता दिखाई। दिल्ली की साफ-सफाई को उन्होंने सबसे बड़ा मुद्दा बनाया, कई मौकों पर गाजीपुर लैंडफिल जाकर स्थिति का जायजा लिया। उसी मुद्दे को लेकर उनकी आम आदमी पार्टी से समय-समय पर तकरार भी देखने को मिली। इसके अलावा बतौर सांसद गंभीर ने गरीबों के लिए जन रसोई चलाने का काम भी किया। गरीबों को एक रुपये खाना खिलाकर उन्होंने कम समय में एक बड़े वर्ग के बीच में खुद को स्थापित किया। इसके बाद सुकमा के शहीद जवानों को तो गंभीर ने बड़ी मदद की थी। उनके बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का खर्चा उन्होंने उठाया था।

लेकिन एक तरफ गंभीर खुद को राजनीति में सक्रिय रखने की कोशिश कर रहे थे, दूसरी तरफ उसी राजनीति से उनकी दूरी बढ़ती भी जा रही थी। बीजेपी के कई बड़े कार्यक्रम हुए जिससे गंभीर नदारद दिखने लगे। कभी IPL में कमेंट्री करते दिख गए, कभी भारत के किसी मैच के लिए कमेंट्री करने चले गए, लेकिन बतौर बीजेपी नेता उनकी उपस्थिति कम होती चली गई। इसके ऊपर क्रिकेट की पिच पर उनका जो गर्म मिजाज देखने को मिलता था, वैसे ही अंदाज राजनीति में भी रहा। ये आक्रमता को जनता के बीच में तो फिर भी पसंद की गई, लेकिन बीजेपी के अंदरखाने ही तकरारें बढ़ने लगीं।

अब जानकार मानते हैं कि ऐसी ही एक तकरार इस बार गंभीर के सियासी संन्यास का कारण भी बनी है। खुद गंभीर ने तो इस कारण का जिक्र नहीं किया है, लेकिन ये विवाद ही इतना बड़ा रहा कि माना जा रहा था कि इस बार 2024 के लोकसभा चुनाव में गंभीर का टिकट कटने वाला था। इसी वजह से उन्होंने पहले ही अपने संन्यास का ऐलान कर दिया।

वैसे गंभीर का एक काफी चर्चित झगड़ा भी है जिसने उन्हें बीजेपी हाईकमान की नजरों में विवादों में ला दिया था। बीजेपी के ही एक और सांसद हैं ओपी शर्मा। एक कार्यक्रम में जिसमें वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भी मौजूद थीं, गंभीर, ओपी शर्मा के खिलाफ कुछ ऐसे तल्ख शब्दों का इस्तेमाल कर दिया कि बात हाथ से निकल गई। कई दिनों तक तनाव बना रहा, ओपी शर्मा भी जगह-जगह गंभीर पर आरोप लगाते रहे। उस समय बताया जाता है कि बीजेपी के कई नेता गंभीर के खिलाफ एक्शन चाहते थे।

एक बड़े वर्ग का मानना था कि गंभीर कई बार ज्यादा ही तीखे अंदाज में बात करते हैं जो पार्टी के सीनियर नेताओं को पसंद नहीं आता। एक धड़ा ऐसा भी रहा है कि जो गंभीर को अभी भी राजनीति में एक आउटसाइडर के रूप में ज्यादा देखता है। इसी वजह से गंभीर के विवादित बयान भी उन्हें पार्टी की नजरों में लंबे समय से बुरा बना रहे थे। इसके ऊपर पार्टी के कार्यक्रमों में और उनके दूसरे अभियानों में उनकी कम होती दिलचस्पी ने खेल को पहले ही काफी बिगाड़ दिया था।

माना जा रहा है कि गौतम गंभीर ने इस माहौल को समझ लिया था, ऐसे में पार्टी के कहने से पहले ही उन्होंने खुद ही सियासी संन्यास का ऐलान कर दिया। ये अलग बात है कि जानकार यही मान रहे हैं कि क्रिकेट कमिटमेंट बहाना है, असल कारण किसी झगड़े को छिपाना है।