राजधानी दिल्ली में प्रचार थम चुका है और कल यानी कि 25 मई को सात सीटों पर वोटिंग होने वाली है। इस बार दिल्ली में एक बड़ा परिवर्तन देखने को मिल रहा है, पहली बार दो बड़ी पार्टियों ने साथ मिलकर चुनाव लड़ने की ठानी है- आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन हो चुका है। इंडिया अलायंस के तहत दिल्ली में ये दोनों दल इस बार साथ में ही चुनावी रण में उतरे हैं। एक तरफ अगर आम आदमी पार्टी 4 सीटों पर चुनाव लड़ रही है तो वही कांग्रेस ने भी 3 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं।
AAP कैसे बनेगी डिसाइ़डिंग फैक्टर?
इस बार के चुनाव में अगर बीजेपी के पास नरेंद्र मोदी का चेहरा है, तो वहीं दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी को लगता है कि अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी की वजह से उन्हें कुछ सहानुभूति का वोट मिल सकता है। दूसरी तरफ कांग्रेस को लग रहा है कि आप के साथ हुए गठबंधन की वजह से केजरीवाल की लोकप्रियता का फायदा उनके प्रत्याशियों को भी सीटों पर मिल सकता है। लेकिन नेताओं की बयानबाजी से इतर अगर सिर्फ दिल्ली चुनाव के पिछले नतीजों पर नजर दौड़ाएं तो कुछ निष्कर्ष जरूर निकाले जा सकते हैं। इस चुनाव में हर कोई मान रहा है कि अगर आम आदमी पार्टी को डिसाइडिंग फैक्टर बनना है तो उसे स्विंग वोटर्स की बहुत जरूरत पड़ने वाली है।
6 फीसदी स्विंग वोट का गणित
समझने का प्रयास करते हैं कि कितने स्विंग वोटर्स आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के पक्ष में माहौल बना सकते हैं। अगर 2019 के लोकसभा चुनाव को बेंचमार्क माना जाए तो कहा जा रहा है कि अगर 6 प्रतिशत स्विंग वोट इंडिया गठबंधन को मिल जाए तो दिल्ली में उसका खाता जरूर खुल सकता है, बहुत ज्यादा फर्क तो नहीं आएगा लेकिन दो सीटें जीतने की संभावना बन सकती है। यानी कि उस स्थिति में बीजेपी का आंकड़ा 5 तक जा सकता है। लेकिन अगर गठबंधन को 9 फीसदी के करीब स्विंग वोट मिल जाए तो बाजी पलट भी सकती है। उस स्थिति में दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन को पांच सीटें मिलने की संभावना है और बीजेपी का आंकड़ा दो सीटों पर सिमट सकता है।
12 फीसदी स्विंग वोट का गणित
एक तीसरी संभावना भी है जो वर्तमान स्थिति में जरूर नाममुकिन सी लगती है, लेकिन राजनीति में कुछ भी हो सकता है। अगर माना जाए कि इंडिया गठबंधन दिल्ली में 12 प्रतिशत स्विंग वोट हासिल कर लेता है तो बीजेपी दिल्ली में पहली बार अपना खाता भी नहीं खोल पाएगी और इंडिया गठबंधन सारी सात सीटें अपने नाम कर लेगा। लेकिन ये जो बताया गया है, वो सिर्फ अनुमान है, अनुमान भी स्विंग वोटर्स अगर शिफ्ट हो जाएं तो। लेकिन अगर बात वोट शेयर की बात करें तो उससे साफ लगता है कि दिल्ली में अभी भी बीजेपी को चुनौती देना उतना आसान तो नहीं रहने वाला है। कुछ सीटों पर जरूर मुकाबला बन सकता है,लेकिन अगर ये कहा जाए कि कोई बड़ा उलटफेर हो जाएगा, अभी के लिए उसकी गुंजाइश कम नजर आती है।
बीजेपी के दबदबे वाले इलाके
C-Voter ने दिल्ली में बीजेपी और आप-कांग्रेस के वोट शेयर का अध्ययन किया है, यहां तक सोचा गया है कि कुछ वोट दूसरी तरफ शिफ्ट हो जाएं तो जमीन पर स्थिति कितनी बदल सकती है। अगर 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों की बात करें तो बीजेपी ने दिल्ली में सभी सात सीटें जीत ली थीं। दक्षिण दिल्ली में बीजेपी का वोट शेयर 56.6 फीसदी था, आप-कांग्रेस का कुल वोट 39.9 फीसदी। इसी तरह पश्चिमी दिल्ली में बीजेपी को 60 प्रतिशत वोट मिले थे, वहीं आप-कांग्रेस का अगर टोटल किया जाए तो आंकड़ा 37.4 फीसदी जाता है। इसी तरह नॉर्थ वेस्ट दिल्ली में 60.5 फीसदी वोट बीजेपी को मिला, लेकिन आप-कांग्रेस के खाते में 37.9 प्रतिशत वोट गया। अब ये सारे वो इलाके हैं जहां पर बीजेपी का दबदबा ज्यादा माना जाता है।
इन सीटों पर AAP-कांग्रेस कर सकती है खेल
लेकिन अगर इन इलाकों से आगे बढ़ा जाए तो कुछ मुकाबला जरूर दिखाई दे सकता है। ये बात भी 2019 के आंकड़ों से ही समझ आती है। चांदनी चौक में पिछली बार बीजेपी का वोट शेयर 52.9 फीसदी रहा था, वहीं गठबंधन का आंकड़ा 44.4 फीसदी बैठा। वही नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में बीजेपी को 53.9 प्रतिशत वोट हासिल हुआ तो वही आप-कांग्रेस को 41.9 फीसदी वोट मिला। इसी तरह नई दिल्ली सीट पर भाजपा का आंकड़ा 54.8 फीसदी रहा तो वही गठबंधन के खाते में 43.2 फीसदी वोट गए। अगर ईस्ट दिल्ली चला जाए तो वहां पर बीजेपी को 55.3 प्रतिशत वोट मिला था, वही आप-कांग्रेस को 41.7 फीसदी वोट मिला। इन चार सीटों पर एक कॉमन बात ये रही कि आप-कांग्रेस को 40 फीसदी से ज्यादा वोट जरूर मिले। अब इन्हीं सीटों पर कुछ बदलाव की गुंजाइश दिखाई भी देती है।
मनोज तिवारी की सीट पर कांटे का मुकाबला
फिर वही सवाल आता है, अगर 6 फीसदी स्विंग वोटर्स आप-कांग्रेस के साथ चले जाते हैं तो चांदनी चौक, नॉर्थ ईस्ट दिल्ली, नई दिल्ली और ईस्ट दिल्ली में स्थिति कितनी बदल सकती है? अब इस सवाल का जवाब इंडिया गठबंधन के लिए दिल्ली में एक उम्मीद की किरण लेकर आता है। ऐसा इसलिए क्योंकि C-Voter ने जब कैलकुलेट किया तो पता चलता है कि 6 फीसदी परिवर्तन होते ही कई सीटों पर मुकाबला एकदम कांटे का बनता दिख रहा है। अगर चांदनी चौक सीट पर 6 फीसदी स्विंग वोट आप-कांग्रेस के गठबंधन के साथ चले जाए तो वो बीजेपी से वोट शेयर के मामले में आगे हो जाएगा। उस स्थिति में उसका वोट शेयर 50.4 फीसदी रहेगा, वही बीजेपी का वोट प्रतिशत 46.9 फीसदी। अगर मनोज तिवारी और कन्हैया कुमार वाली नॉर्थ ईस्ट दिल्ली सीट की बात करें तो वहां भी मुकाबला 50-50 का बन जाएगा।
जहां जीत का अंतर ज्यादा, वहां इंडिया का जीतना मुश्किल
सिर्फ 6 फीसदी स्विंग वोटर्स की वजह से आप-कांग्रेस का संयुक्त वोट शेयर 47.9 प्रतिशत पहुंच जाएगा। अब ये नहीं भूलना चाहिए कि पिछले चुनाव में इस सीट पर बीजेपी का वोट शेयर भी इतना ही था, यानी कि गठबंधन और स्विंग वोटर्स की मदद से बाजी पलटी जा सकती है। नई दिल्ली की सीट भी आप-कांग्रेस को खुशखबरी दे सकती है अगर स्विंग वोटर्स उसके पाले में चले जाएं। एक 6 फीसदी का उछाल उनके वोट शेयर को 49.2 प्रतिशत तक पहुंचा देगा, वही बीजेपी का वोट शेयर 48.8 है, ऐसे में स्थिति यहां भी विपक्ष के लिए मुफीद बन सकती है। अगर ईस्ट दिल्ली की सीट पर चला जाए तो वहां भी मुकाबला कड़ा बन सकता है। इस सीट पर 6 फीसदी स्विंग वोट मिलते ही आप-कांग्रेस का वोट शेयर 47.7 फीसदी तक पहुंच रहा है, वही बीजेपी को तो पिछली बार 49.3 प्रतिशत मिला था। ये ट्रेंड बताता है कि दिल्ली की इन चार सीटों पर जरूर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के लिए उम्मीद की किरण है। यहां पर जीत का अतंर क्योंकि उतना बढ़ा नहीं था, ऐसे में स्थिति को जमीन पर बदला जा सकता है।
लेकिन जो दक्षिण दिल्ली, पश्चिमी दिल्ली और नॉर्थ वेस्ट दिल्ली वाली सीट हैं, वहां पर मुकाबला बीजेपी के पक्ष में ज्यादा इसलिए है क्योंकि उसने पिछले चुनाव में भी काफी बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी। ये वो सीटें हैं जहां पर अगर आप-कांग्रेस साथ भी जाएं तो बीजेपी का वोट शेयर 10 फीसदी तक ज्यादा चल रहा है, ऐसे में उस अंतर पाटना वर्तमान में कुछ मुश्किल दिखाई पड़ता है। इसी वजह से आप-कांग्रेस के लिए दिल्ली की चार सीटों पर फाइट ज्यादा तगड़ी है, वहां से उसे कुछ हासिल होने की उम्मीद भी दिख जाती है।
दलित-अगड़ा-पिछड़ा… हर जगह बीजेपी को वोट
वैसे स्विंग वोटर्स की जरूरत तो आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन को पड़ेगी, अगर दिल्ली में कोई बड़ा उलटफेर करना है तो अगड़ी जाति, पिछड़ी जाति और दलित वोटबैंक में बडे़ स्तर पर सेंधमारी करनी पड़ेगी। ऐसा इसलिए क्योंकि बीजेपी ने पिछले कुछ सालों में दिल्ली के अंदर इन सभी समुदायों के बीच में खुद को काफी मजबूत कर लिया है। लोकनीति CSDS का सर्वे साफ दिखता है कि इन समुदायों के बीच में बीजेपी की लोकप्रियता काफी ज्यादा बढ़ चुकी है। अगर अगड़ी जाति की बात करें तो 2014 में दिल्ली में बीजेपी को उनका 62 फीसदी वोट मिला था, वही आम आदमी पार्टी को 21 और कांग्रेस को महज 10 फीसदी वोट हासिल हुआ।
अगर 2019 के चुनाव पर चलें तो बीजेपी का अगड़ों के बीच में वोट शेयर 76 प्रतिशत तक पहुंच गया, वही आप और कांग्रेस का मात्र 12 फीसदी पर सिमट गया। ये बताने के लिए काफी है कि बीजेपी क्यों दिल्ली में सातों सीटों पर स्वीप कर रही है। अगर दलित वोटर की बात की जाए तो 2014 में बीजेपी को उनका 32 फीसदी वोट मिला था, उस चुनाव में आम आदमी पार्टी ने बेहतर प्रदर्शन करते हुए उस समाज का 42 फीसदी वोट हासिल किया था, वहीं कांग्रेस 18% पर सिमट गई थी। बस मुस्लिम वोटर ही एक ऐसा रहा है जहां पर बीजेपी का सूपड़ा साफ दिखता है। पिछले चुनाव में तो उसे 0 फीसदी मुस्लिमों का वोट हासिल हुआ, यानी कि किसी ने भी कमल का बटन नहीं दबाया।
लोकसभा सीट | बीजेपी | इंडिया गठबंधन | |
1 | नई दिल्ली | बांसुरी स्वराज | सोमनाथ भारती |
2 | पूर्वी दिल्ली | हर्ष मल्होत्रा | कुलदीप कुमार |
3 | उत्तर पूर्वी दिल्ली | मनोज तिवारी | कन्हैया कुमार (कांग्रेस) |
4 | चांदनी चौक | प्रवीण खंडेलवाल | जयप्रकाश अग्रवाल (कांग्रेस) |
5 | साउथ दिल्ली | रामवीर सिंह बिधुड़ी | सहीराम पहलवान |
6 | पश्चिमी दिल्ली | कमलजीत सेहरावत | महाबल मिश्रा |
7 | उत्तर पश्चिमी दिल्ली | योगेंद्र चंदौलिया | उदित राज (कांग्रेस) |