Lok Sabha Election 2019: एनडीए में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के उम्मीदवार चिराग पासवान बिहार के जमुई से चुनाव मैदान में आरएलएसपी प्रत्याशी के खिलाफ ताल ठोक चुके हैं। पहले चरण के मतदान के तहत जमुई की जनता आज (गुरुवार,11 अप्रैल) दोनों उम्मीदवारों के किस्मत का फैसला कर रही है। चिराग जमुई के वर्तमान सांसद भी हैं। हालांकि, जब लोजपा प्रमुख राम विलास पासवान ने चुनावी राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा की तब चिराग के पास अपने पिता की परंपरागत सीट हाजीपुर से संसद भवन पहुंचने का आसान रास्ता भी था। लेकिन, चिराग कहते हैं कि उन्होंने 2014 में जीती हुई जमुई की सीट को नहीं छोड़ना चाहते। उन्होंने कहा, “जमुई मेरी मां समान है। मैं जमुई के लिए काफी कुछ करना चाहता हूं और वही पहचान दिलाना चाहता हूं, जो हाजीपुर को मेरे पिता ने दिलाई है।” अपने संसदीय क्षेत्र में हुए विकास कार्यों का बखान करते हुए चिराग कहते हैं, “इन पांच सालों में हमने एक मेडिकल कॉलेज, एक इंजीनियरिंग कॉलेज, एक फूड कॉरपोरेशन का डिविजनल ऑफिस, एक पासपोर्ट केंद्र और 2,800 करोड़ का रेलवे प्रॉजेक्ट दिया है।”

प्रचंड गर्मी वाले दिन जनता को संबोधित करते हुए राम विलास पासवान ने कहा, “पांच साल पहले, आप चिराग को मेरे बेटे और एक फिल्म हीरो के तौर पर जानते थे। लेकिन, आज की तारीख में मैं गर्व से कह सकता हूं कि आप उन्हें एक अच्छे सांसद के रूप में जानते हैं। हर पिता की ख्वाहिश होती है कि उसका बेटा उससे बढ़कर हो। मैं भी चाहता हूं कि वह मेरे हाजीपुर के रिकॉर्ड (5 लाख वोटों के अंतर से जीत) को तोड़ें।”

जमुई एक आरक्षित लोकसभा सीट है और यहां से चिराग के खिलाफ राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) के उम्मीदवार भूदेव चौधरी हैं। चौधरी पासी समुदाय से संबंध रखते हैं। सूत्रों का कहना है कि चौधरी का जातीय समीकरण से जानाधार काफी मजबूत है और यह बात आरएलएसपी प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा बाखूबी जानते हैं। एक आरएलएसपी नेता के मुताबिक, “हम जानते हैं कि हमारे महागठबंधन के पास 3.5 लाख यादव और 1.75 लाख मुस्लिम वोट है। ऐसे में सभी का ध्यान गैर-यादव ओबीसी, जिनमें कुशवाहा (1.5 लाख) , बिंद और चौहान (70,000) और मांझी (करीब 1 लाख) समुदाय के वोटरों पर हैं।” गौरतलब है कि आरएलएसपी ने एनडीए से नाता तोड़कर दिसंबर में महागठबंधन से हाथ मिलाया था।

लेकिन, जमुई में स्थिति इतनी आसान भी नहीं है। जमुई लोकसभा क्षेत्र में जमुई, तारापुर, सिंकद्रा, शेखपुरा, चकई और झाझा में एक तरफ जहां कांग्रेस का न्यूनतम आय की घोषणा लोगों को लुभा रही है, तो वहीं पीएम नरेंद्र मोदी के नाम पर समर्थन भी काफी है। तारापुर के महेशकूट गांव के रहने वाले बरुन कुमार कहते हैं, “2014 के चुनाव में 10 में से 10 कुशवाहा मतदाताओं ने एनडीए को वोट दिया (तब RLSP एनडीए के साथ थी)। लेकिन, इस बार इनमें से 50 फीसदी महागठबंधन के पक्ष में जाएंगे। शहरी इलाकों का वोट चिराग के खाते में जाएगा। लेकिन, ग्रामीण इलाकों में जातीय आधार पर वोटिंग होगी। यहां अब मोदी लहर नहीं है।” बरुन इसके साथ यह भी कहते हैं कि एनडीए सरकार द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ एयर-स्ट्राइक की घटना वोटरों पर कोई खास असर नहीं डालेगी।

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तारापुर के ही लौना-खुडिया गांव के राजेश कुमार कहते हैं, “उपेंद्र कुशवाहा हमारे नेता हैं, हमें उनकी आवाज सुननी ही पड़ेगी।” इसके अलावा आर्थिक रूप से पिछड़ी जातियों में भी विघटन देखने को मिला है। जमुई के एक ग्रामी अशोक चंद्रवंशी कहते हैं, “हम ऊपर में मोदी देखते हैं लेकिन, नीचे बहुत कुछ देखते हैं। सोचते हैं और तब वोट देते हैं।” चिराग पासवान की मुश्किलों को बढ़ाने वाले दूसरी बात यह है कि यहां के स्थानीय राजपूत नेता और पूर्व कृषि मंत्री नागेंद्र सिंह का भी पूरा समर्थन नहीं मिल रहा है। खबर है कि सिंह के दो बेटे अजय प्रताप (जमुई के पूर्व विधायक) और सुमित सिंह (चकई के पूरव् विधायक) चिराग का समर्थन नहीं कर रहे हैं। हालांकि, ये दोनों भाई चिराग के साथ मंच साझा करते हुए दिखाई जरूर देते हैं।

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