Chaatisgarh Vidhan Sabha Election Result 2018, Rajasthan Chunav Result 2018: छत्तीसगढ़ में 15 साल तक सत्ता पर काबिज होने के बाद भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। इसके साथ कांग्रेस का वनवास खत्म हुआ। आदिवासी बहुल सरगुजा और बस्तर में तो भाजपा खाता तक नहीं खोल सकी। माना जा रहा था कि पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के अलग पार्टी बनाने से कांग्रेस को नुकसान होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

कांग्रेस की घोषणाए पड़ीं भारी
ग्रामीण इलाकों में कुल 53 सीटें हैं, जिनमें से 42 पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की। माना जा रहा है कि प्रचार के दौरान कांग्रेस ने कर्जमाफी और धान का समर्थन मूल्य 2500 रुपए करने का वादा किया था, जो भाजपा पर भारी पड़ा।

एससी/एसटी और ओबीसी सीटों पर भाजपा बेअसर
छत्तीसगढ़ में एससी-एसटी बहुल वाली 39 सीटें हैं। इनमें 32 पर कांग्रेस ने पैठ बनाई। माना जा रहा है कि पार्टी को सतनाम सेना के प्रमुख को शामिल करने का फायदा मिला। वहीं, एससी बाहुल्य 10 सीटों में से भाजपा महज एक सीट जीत सकी। कांग्रेस ने 9 सीटों पर कब्जा जमाया। इसके अलावा ओबीसी चेहरों के दम पर कांग्रेस ने 35 सीटें हासिल कीं। कांग्रेस ने साफ कर दिया था कि सीएम ओबीसी से ही होगा। दूसरी ओर सवर्ण रमन सिंह थे।

शराबबंदी का वादा रंग लाया
प्रदेश में 24 ऐसी सीटें हैं, जहां महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा वोटिंग की। इनमें से 22 सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की। विश्लेषकों के मुताबिक, कांग्रेस ने चुनाव प्रचार के दौरान शराबबंदी का वादा किया था, जिसका असर नतीजों पर दिखाई दे रहा है।

ओबीसी बड़ा फैक्टर
49 सामान्य सीटों में से ज्यादातर पर विशेष रूप से मैदानी क्षेत्रों में इनका प्रभाव है। पिछले चुनावों तक यह वर्ग भाजपा के साथ था, इस बार यह वर्ग कांग्रेस के साथ खड़ा रहा। दरअसल, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस-भाजपा के नेता ओबीसी वर्ग से ही हैं। प्रदेश में करीब 52 फीसदी ओबीसी हैं। इसमें शामिल 95 से अधिक जातियों के दावे भी अलग-अलग हैं। ओबीसी में भी साहू की आबादी लगभग 30 फीसदी के बीच है, जबकि यादव आठ से नौ फीसदी, मरार, निषाद व कुर्मी की आबादी करीब चार से पांच फीसदी है। इस बार कांग्रेस ने साहू और कुर्मी नेताओं को टिकट देकर महत्व दिया। नतीजतन ये वर्ग कांग्रेस के साथ खड़े हो गए।

 

नक्सल मामले से भी पड़ा असर
कांग्रेस लगातार झीरम कांड को उठाती रही। नक्सल इलाकों में हो रही घटनाओं के बाद से बस्तर में लोग भाजपा में कमियां खोजने में लग गए थे। 15 साल में हुई नक्सली वारदातों में महिलाएं सबसे ज्यादा टारगेट बनीं। पुरुषों को भी नक्सलियों और पुलिस दोनों की यातना झेलनी पड़ी थी।