छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में अबूझमाड़ इलाका काफी चर्चा में रहता है और इस इलाके को एक चुनौती के तौर पर भी देखा जाता है। ऐसा क्यों है यह हम आपको इस आर्टिकल के जरिए समझाएंगे। अबूझमाड़ छत्तीसगढ़ के बस्तर में एक घने जंगल का इलाका है जिसे देश में माओवादियों के आखिरी गढ़ के तौर पर देखा जाता है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह इस बात पर जोर देते रहे हैं कि भाजपा सरकार ने माओवादी खतरे से लड़ाई पूरी कर ली है। 7 नवंबर को छत्तीसगढ़ का मतदान शुरू हो जाएगा ऐसे में जमीनी लेवल पर अधिकारी अबूझमाड़ इलाके को लेकर सतर्क हैं।
क्यों चुनौतीपूर्ण है आबूझमाड़?
अबूझमाड़ जंगल गोवा राज्य से भी बड़ा है, इसका कुछ हिस्सा छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा और बीजापुर जिलों तक फैला हुआ है और महाराष्ट्र में गढ़चिरौली की सीमा से लगा हुआ। अबूझमाड़ में लगभग 200 गांव शामिल हैं। अनुमान है कि यहां 40,000 लोगों की आबादी है। यह नारायणपुर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है। अधिकारियों का कहना है कि इसके 90% क्षेत्र में सर्वे नहीं हुआ है। यहां रहने वाले लोगों को अबूझमाड़िया कहा जाता है, जो छत्तीसगढ़ के सात विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) के लिए एक छोटा सा शब्द है।
2018 से अब तक अबूझमाड़ में मतदाता सूची में 312 नए मतदाताओं के नाम जोड़े गए हैं। वहीं नारायणपुर जिले में कुल मिलाकर 14,800 से ज़्यादा नाम शामिल किए गए हैं। बस्तर की बाकी 11 विधानसभा सीटों का औसत 13,000 से अधिक है। एक अधिकारी का कहना है कि अबूझमाड़ क्षेत्र के 30 मतदान केंद्रों में से तीन-चौथाई पर आम तौर पर मतदान बहुत कम होता है। एक बूथ को छोड़कर बाकी सभी बूथों के लिए अधिकारियों को हेलिकॉप्टर से भेजा जाता है।
चुनाव अधिकारी क्या कहते हैं?
छत्तीसगढ़ की मुख्य निर्वाचन अधिकारी रीना कंगाले ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि बस्तर क्षेत्र में पहली बार 2,000 मतदान केंद्रों पर लाइव वेबकास्ट की व्यवस्था होगी, जिसमें अधिकारी नियंत्रण कक्ष से कार्यवाही की निगरानी करेंगे। कुल मिलाकर छत्तीसगढ़ के 12,000 मतदान केंद्रों पर लाइव वेबकास्टिंग होगी। हालांकि अबूझमाड़ में यह सुविधा उपलब्ध नहीं होगी। 2018 में, अबूझमाड़ के ओरछा विकास खंड में सबसे कम मतदान हुआ था जहां केवल 32.40% मतदान हुआ था, जो राज्य के औसत 76.45% के आधे से भी कम है। नारायणपुर जिले में कुल मिलाकर 74.88% मतदान हुआ था।
राजनीतिक दलों के लिए क्यों जरूरी है अबूझमाड़?
यहां राजनीतिक दलों के लिए हर वोट मायने रखता है। क्योंकि 2018 में कांग्रेस के चंदन कश्यप ने नारायणपुर में दो बार के मंत्री और तीन बार के विधायक भाजपा के केदार कश्यप को सिर्फ 2,647 वोटों के अंतर से हराया था। हालांकि पांच भाजपा नेताओं पर हुए घातक हमलों के बाद मतदान को लेकर डर बना हुआ है, जिससे इस बार मतदान और भी कम होने की संभावना है। नारायणपुर जिले के भाजपा चुनाव समन्वयक रतन दुबे कहते हैं कि मैंने भाजपा कार्यकर्ताओं से कहा है कि अबूझमाड़ में मतदान केंद्रों पर जाने का जोखिम लेने की कोई जरूरत नहीं है। न ही कांग्रेस कार्यकर्ता यह जोखिम उठा रहे हैं।