2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी और कांग्रेस चुनाव आयोग पहुंच गई हैं। द इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक दोनों राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों ने चुनाव आयोग से पिछले साल सितंबर में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश पर चिंता व्यक्त की है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि दागी उम्मीदवारों को आगामी लोकसभा चुनाव लड़ते समय अपने आपराधिक रिकॉर्ड अखबारों और टीवी चैनलों के माध्यम से मतदाताओं को बताने होंगे। उन्हें सभी लंबित आपराधिक मामलों का ब्योरा बड़े अक्षरों में अखबारों में छपवाना होगा। टीवी चैनलों में भी ऐसे मामलों की जानकारी विस्तार से देनी होगी। यहीं नहीं, ऐसे नेताओं को टिकट देने वाले राजनीतिक दलों को भी इस बारे में अपनी वेबसाइट पर विस्तार से बताना होगा।
मामले से परिचित लोगों ने कहा कि चुनाव आयोग इस मुद्दे को देखेगा और इस पर नए सिरे से विचार करेगा। चुनाव आयोग ने हाल ही में हुए राज्य चुनावों में पहली बार इस आदेश को लागू किया, जिससे प्रत्येक उम्मीदवार ने अपने आपराधिक रिकॉर्ड की सार्वजनिक घोषणा की थी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश में यह स्पष्ट नहीं किया कि इन विज्ञापनों के लिए बिल कौन देगा और इसके तहत किस सटीक चुनावी खाते से इसका पैसा जाएगा। इसे मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के चुनावों में उम्मीदवार के चुनाव खाते में जोड़ा गया।
इस मामले की जानकारी रखने वालों के मुताबिक अब, कांग्रेस और भाजपा दोनों के राजनेताओं ने चुनाव आयोग को लिखा है कि उम्मीदवार को अपने आपराधिक रिकॉर्ड के विज्ञापन का खर्च वहन करने के लिए नहीं कहा जाना चाहिए, क्योंकि चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार व्यय की एक सीमा है, और इसका खर्च भी इसमें जुड़ने पर चुनाव अभियान में दिक्कत आएगी। अब तक विधानसभा के उम्मीदवार के लिए खर्च की सीमा 28 लाख रुपये है, जबकि आम चुनाव के उम्मीदवारों के लिए यह 70 लाख रुपये है। सभी समाचार पत्र और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विज्ञापन / प्रचार सामग्री वर्तमान में इस सीमा के भीतर शामिल हैं। दिलचस्प बात यह है कि कई उम्मीदवार प्रचार खर्च के लिए भी इस सीमा को नहीं छू पाते हैं।