उत्तराखंड में भाजपा की बनने वाली सरकार के कामकाज पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पैनी नजर रहेगी। संघ के स्वयंसेवक मुख्यमंत्री के विशेष कार्यकारी अधिकारी के रूप में तैनात रहेंगे। वहीं मंत्रियों के दफ्तरों में निजी सचिव से लेकर जनसंपर्क अधिकारी भी संघ की पृष्ठभूमि वाले ही नियुक्त किए जाएंगे। राज्य सरकार के हर कदम की रिपोर्ट संघ के ये विशेष कार्यकर्ता सीधे तौर पर संघ के मुख्यालय नागपुर और दिल्ली में स्थित संघ दफ्तर झंडेवालान में भेजेंगे।
इस तरह उत्तराखंड की भाजपा सरकार संघ के प्रशिक्षित और वफादार कार्यकर्ताओं के कड़े पहरे में रहेगी। मुख्यमंत्री के विशेष कार्यकारी अधिकारी,मंत्रियों के निजी सचिव और जनसंपर्क अधिकारी बनने के लिए संघ के कार्यकर्ताओं में होड़ लगी है। 2007 में जब सूबे में भाजपा की सरकार बनी थी, तब संघ और भाजपा हाईकमान का अनुभव सूबे की सरकार को लेकर अच्छा नहीं रहा था।
2004 के लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड की सभी पांच लोकसभा सीटों पर भाजपा की करारी हार हुई थी और भगत सिंह कोश्यारी के दवाब में भुवनचंद खंडूड़ी को हटाकर भाजपा हाईकमान ने रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री बनाया था। 2010 में हरिद्वार में लगे कुंभ महापर्व तथा स्टुर्जिया भूमि घोटाले को लेकर निशंक सरकार की अच्छी खासी बदनामी हुई थी, जिससे भाजपा और संघ परिवार की खासी किरकिरी हुई थी। निशंक को संघी पृष्ठभूमि के कारण खंडूड़ी को हटाकर मुख्यमंत्री बनाया गया था मगर निशंक सरकार और उसके कई मंत्री विभिन्न कारणों से विवाद में फंसते चले गए।
संघ के दवाब के बाद निशंक को 2011 में मुख्यमंत्री पद से हटाकर खंडूड़ी को फिर से सूबे की कमान सौंप दी गई। 2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने खंडूड़ी पर दांव खेला और खंडूड़ी कोटद्वार विधानसभा सीट से चुनाव हार गए। 2007 और 2012 में सूबे के राजनीतिक घटनाक्रमों से सबक लेकर 2017 में उत्तराखंड में भाजपा की सरकार के कामकाज को लेकर संघ बेहद सतर्क हैं। क्योंकि इस बार भाजपा को सूबे में प्रंचड बहुमत मिला हैं। 57 विधानसभा सीटें भाजपा की झोली में होने के कारण इस बार उत्तराखंड की जनता की भाजपा सरकार से उम्मीदें बहुत ज्यादा बढ़ गई हैं।
राज्य सरकार के विधिवत गठन के बाद राज्य में मुख्यमंत्री और मंत्रियों के दफतरों में संघ के कार्यकर्ताओं की तैनाती करने के लिए संघ में उच्च स्तर पर विचार मंथन जारी हैं। भाजपा ने विधानसभा चुनाव के वक्त अपना जो घोषणा पत्र जारी किया था उस पर कैसे अमल हो, कैसे उसे धरातल पर उतारा जाए इसे लेकर भी संघ में विचार मंथन जारी हैं। इसकी वजह यह है कि भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में हर वर्ग को लुभाने के लिए बड़ी-बड़ी घोषणाएं की हैं। दो साल बाद 2019 में लोकसभा के चुनाव भी होने हैं ऐसे में सूबे की भाजपा सरकार की जिम्मेदारी और भी ज्यादा बढ़ जाती हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सूबे की पांचों लोकसभा सीटें जीती थी। लिहाजा भाजपा की बनने वाली सरकार को सूबे में 2014 का चुनावी प्रदर्शन फिर से दोहराने के लिए भारी मशक्कत करनी पड़ेगी। उत्तराखंड भाजपा की नई सरकार के लिए 2019 का लोकसभा चुनाव अग्निपरीक्षा होगा। इस अग्निपरीक्षा में भाजपा की बनने वाली सरकार कैसे पास हो, संघ ने इसकी रणनीति नई सरकार के गठन के साथ ही शुरू कर दी है।
संघ के पहरे में सरकार
’सरकार संघ के प्रशिक्षित और वफादार कार्यकर्ताओं के कड़े पहरे में रहेगी
’स्वयंसेवक मुख्यमंत्री के विशेष कार्यकारी अधिकारी के रूप में तैनात रहेंगे
’मुख्यमंत्री और मंत्रियों के दफ्तरों में नियुक्तियों पर संघ में उच्च स्तर पर विचार मंथन
’मंत्रियों के निजी सचिव व जनसंपर्क अधिकारी बनने की संघ कार्यकर्ताओं में होड़