बिहार में विधानसभा चुनाव के बाद वोटों की गिनती जारी है। रुझानों में महागठबंधन को बड़ा फायदा मिलता नजर आ रहा है। साफ नजर आ रहा है कि तेजस्वी यादव के रोजगार के वादे ने भी बड़ा कमाल दिखाया है। इसके अलावा कोविड के दौरान हुए मिसमैनेजमेंट का भी फायदा महागठबंधन को भी मिलता नजर आ रहा है। बीजेपी के नेताओं ने भी इस बात को मान लिया है कि इस बार एनडीए संकट में है। वहीं तेजस्वी यादव ने इस चुनाव में ‘मजदूर-युवा’ के अजेंडे पर प्रचार किया।

एक बीजेपी नेता ने कहा, ‘अगर नीतीश कुमार के खिलाफ ऐंटी इनकंबेंसी है तो किसी तरह मैनेज हो जाएगा लेकिन अगर लोगों के मन में गुस्सा है तो वास्तव में हम बिहार में संकट में है।’ ग्राउंड रिपोर्ट स्पष्ट बताती रही हैं कि ऐंटी इनकंबेंसी बड़ा फैक्टर है। बहुत सारे वोटर्स का कहना है कि नीतीश कुमार ने अपने वादों को नहीं निभाया।

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इधर लॉकडाउ की वजह से बिहार में खड़े रोजगार के संकट, मजदूरों की बदहाली और युवाओं के रोजगार के मुद्दे को तेजस्वी यादव ने भुनाया और रोजगार के वाद के साथ लोगों का मन बदलने में कामयाब होते नजर आए। इस चुनाव में बिहार में उद्योगों और फैक्ट्रियों की खराब हालत भी नीतीश कुमार के खिलाफ है। इसको लेकर लोगों के मन में शिकायत है। इसके अलावा लॉकडाउन की वजह से लोगों की रोजगार छिन गया। जो लोग दूसरे राज्यों से वापस बिहार आ गए उन्हें रोजगार नहीं मिल पाए। इस वजह से भी नीतीश सरकार के प्रति लोगों के मन में निराशा ने घर बना लिया। लॉकडाउन के दौरान लोग दूसरे राज्यों में फंस गए थे। इसका असर अब तक वोटर्स के मन पर है। लोगों का कहना था कि जिस तरह योगी ने अपने प्रदेश के लोगों के लिए बस भेजी थीं, नीतीश को भी भेजनी चाहिए थी।

रोजगारों का वादा
लॉकडाउन के दौरान लगभग 40 लाख लोग बिहार वापस लौटे। बिहार में शिक्षकों के अलावा पिछले लंबे समय से कोई सरकारी भर्ती नहीं हुई है। ऐसे में तेजस्वी का 10 लाख सरकारी नौकरियों का वादा काम कर गया। एक युवा ने बताया कि 10 लाख सरकारी नौकरियों का वादा तो सही नहीं लगता लेकिन मुद्दा यह है कि नीतीश सरकार में भर्तियों पर रोक क्यों लगा दी गई। तेजस्वी ने शिक्षकों और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को वेतन में वृद्धि का भी वादा किया है।