सपा-कांग्रेस से सीधी कांटे की टक्कर में भाजपा की सबसे बड़ी चुनौती बरेली संसदीय क्षेत्र के अपने गढ़ को बचाना है। यहां बसपा के उम्मीदवार मास्टर छोटेलाल गंगवार का नामांकन खारिज होने से अब मुकाबला भाजपा के छत्रपाल गंगवार और सपा-कांग्रेस की ओर से चुनाव मैदान में डटे प्रवीन सिंह ऐरन के बीच सिमट गया है। दंगल में बसपा के न होने से बने दोनों उम्मीदवार अपने पक्ष में चुनाव भुनाने के प्रयास में जुटे हैं।

बरेली संसदीय क्षेत्र में 1989 से लेकर 2019 तक हुए कुल नौ लोकसभा चुनावों में आठ बार जीत दर्ज कराकर पूर्व केन्द्रीय मंत्री और सांसद संतोष कुमार गंगवार ने इसे भाजपा के मजबूत गढ़ के रूप में पहचान दिलाई। भाजपा को यहां 2019 के चुनाव में 52.9 फीसद मत मिले थे। इस संसदीय क्षेत्र के चार विधानसभा क्षेत्रों नवाबगंज, बरेली, बरेली कैंट और मीरगंज पर भाजपा का कब्जा है।

संसदीय क्षेत्र की सिर्फ एक विधानसभा सीट भोजीपुरा पर सपा का विधायक है। यहां के वर्तमान सांसद गंगवार की उम्र 75 पार होने के कारण भाजपा ने इस बार यहां उम्मीदवार बदला है। भाजपा की ओर से पूर्व विधायक छत्रपाल गंगवार चुनाव मैदान में हैं। सपा-कांग्रेस के संयुक्त उम्मीदवार के रूप में यहा सपा के टिकट पर प्रवीन सिंह ऐरन चुनावी अखाड़े में ताल ठोक रहे हैं।

वे लोकसभा चुनाव 2009 में यहां से कांग्रेस के टिकट पर लड़कर 9,338 वोटों के मामूली अंतर से जीते थे, लेकिन अगले ही चुनाव यानी 2014 में भाजपा के संतोष गंगवार उन्हें पराजित कर फिर सांसद बन गए थे। बरेली संसदीय क्षेत्र में पिछले कई चुनावों से प्रमुख तीन दलों भाजपा, सपा और बसपा के बीच मुकाबला होता रहा है। हालांकि यहां बसपा कभी जीत नहीं सकी है। लेकिन चुनाव को तो काफी हद तक प्रभावित करती ही रही है।

चुनाव में स्थानीय और बुनियादी मुद्दे लगभग गायब नजर आ रहे हैं। यहां भाजपा के प्रचार के लिए आए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और दूसरे बड़े प्रचारकों ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और बरेली को नाथ नगरी के रूप में विकसित करने का मुद्दा उठाया है। कार्यकर्ताओं की लगातार बैठकें कर बेहतर बूथ प्रबंधन के जरिये चुनाव जीतने की रणनीति पर भाजपा चल रही है।

सपा-कांग्रेस के उम्मीदवार ऐरन सभाओं, सोशल मीडिया, विज्ञापनों और अन्य माध्यमों से उद्योगों, सड़कों और रोजगार आदि के मुद्दे उठाकर सपा के जनाधार के अलावा अन्य वर्गों के मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के प्रयास कर रहे हैं। वे किसानों को भी उनकी उपज का बेहतर मूल्य दिलाने का वादा कर रहे हैं।