इस साल का लोकसभा चुनाव खर्च के मामले में पिछले रेकार्ड टूट सकते हैं और भारत में दुनिया की सबसे खर्चीली चुनावी कवायद देखने को मिल सकती है। चुनाव विशेषज्ञों की राय में इस बार लोकसभा चुनाव में अनुमानित खर्च के 1.35 लाख करोड़ रुपए तक पहुंचने की संभावना है, जो 2019 में खर्च किए गए 60,000 करोड़ रुपये से दोगुने से भी अधिक है।

इस व्यापक व्यय में राजनीतिक दलों और संगठनों, उम्मीदवारों, सरकार और निर्वाचन आयोग सहित चुनावों से संबंधित प्रत्यक्ष या परोक्ष सभी खर्च शामिल हैं। चुनाव संबंधी खर्चों पर बीते करीब 35 साल से नजर रख रहे गैर-लाभकारी संगठन ‘सेंटर फार मीडिया स्टडीज’ (सीएमएस) के अध्यक्ष एन भास्कर राव ने दावा किया कि इस लोकसभा चुनाव में अनुमानित खर्च के 1.35 लाख करोड़ रुपए तक पहुंचने की उम्मीद है।

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता की अत्यंत कमी का खुलासा हुआ है। चुनावी बांड के खुलासे से साफ हो गया है कि पार्टियों के पास खुलकर खर्च करने के लिए धन है। राजनीतिक दलों ने उस धन को खर्च करने के रास्ते तैयार कर लिए हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार सरकार बनाने का प्रयास कर रही है। चुनाव प्रचार में हो रहे खर्च के मामले में यह पार्टी अपने प्रतिद्वंद्वियों पर भारी पड़ रही है।

एन भास्कर राव के मुताबिक, उन्होंने प्रारंभिक व्यय अनुमान को 1.2 लाख करोड़ रुपए से संशोधित कर 1.35 लाख करोड़ रुपए कर दिया, जिसमें चुनावी बांड के खुलासे के बाद के आंकड़े और सभी चुनाव-संबंधित खर्चों का हिसाब शामिल है। ‘एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफार्म्स’ (एडीआर) ने हाल में भारत में राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता की अत्यंत कमी की ओर इशारा किया था।

एडीआर ने दावा किया कि 2004-05 से 2022-23 तक, देश के छह प्रमुख राजनीतिक दलों को कुल 19,083 करोड़ रुपए का लगभग 60 फीसद योगदान अज्ञात स्रोतों से मिला, जिसमें चुनावी बाण्ड से प्राप्त धन भी शामिल था। हालांकि, एडीआर ने इस लोकसभा चुनाव के लिए कुल चुनाव व्यय का कोई अनुमानित आंकड़ा पेश नहीं किया।

‘सेंटर फार मीडिया स्टडीज’ (सीएमएस) के राव ने कहा, ‘चुनाव पूर्व गतिविधियां पार्टियों और उम्मीदवारों के प्रचार खर्च का अभिन्न अंग हैं, जिनमें राजनीतिक रैलियां, परिवहन, कार्यकर्ताओं की नियुक्ति और यहां तक कि नेताओं की विवादास्पद खरीद-फरोख्त भी शामिल है।’ उन्होंने कहा कि चुनावों के प्रबंधन के लिए निर्वाचन आयोग का बजट कुल व्यय अनुमान का 10-15 फीसद होने की उम्मीद है।

वाशिंगटन डीसी से संचालित गैर-लाभकारी संस्थान ‘ओपन सीक्रेट्स डाट ओआरजी’ के अनुसार भारत में 96.6 करोड़ मतदाताओं के साथ प्रति मतदाता खर्च लगभग 1,400 रुपए होने का अनुमान है। उसने कहा कि यह खर्च 2020 के अमेरिकी चुनाव के खर्च से ज्यादा है, जो 14.4 अरब डालर या लगभग 1.2 लाख करोड़ रुपए था। विज्ञापन एजंसी डेंशू क्रियेटिव के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमित वाधवा ने कहा कि इस साल डिजिटल प्रचार बहुत ज्यादा हो रहा है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दल कारपोरेट ब्रांड की तरह काम कर रहे हैं और पेशेवर एजंसियों की सेवाएं ले रहे हैं।