पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव अब लगभग अंतिम दौर में है। 11 दिसंबर को नतीजों का भी ऐलान हो जाएगा। इन पांच राज्यों में मिलाकर 83 लोकसभा सीटें हैं, इसीलिए लोकसभा चुनाव 2019 के लिहाज से इसे सेमीफाइनल भी माना जा रहा है। पांच में से तीन राज्योंं मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में यह चुनाव भाजपा के लिए साख का सवाल है। वहीं मिजोरम उन चंद राज्यों में शुमार हैं जहां कांग्रेस की सरकार है ऐसे पार्टी के लिए बेहद अहम हैं। तेलंगाना में अलग राज्य बनने के बाद दूसरी बार चुनाव हो रहे हैं। इन चुनावों के मुद्दों, प्रमुख नेताओं की सियासत और मोदी लहर के असर को लेकर पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक डॉ वेद प्रताप वैदिक से जनसत्ता की खास बातचीत…
– मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनाव में क्या संभावनाएं हैं?
अब तक के विधानसभा चुनावों में भाजपा एक लहर के साथ धड़ाधड़ सत्ता में आ रही थी लेकिन अब लहर जैसी कोई बात नहीं है। अब चुनाव इस बात पर हो रहे हैं कि वहां की सरकार ने जनता के लिए क्या किया है। इस हिसाब से कम से कम तीन हिंदी भाषी राज्यों में तो भाजपा को लौटना चाहिए। मैं कई जगह की जनता से बात करता हूं। राजस्थान के ज्यादातर लोग तो यही कह रहे हैं कि इस बार सरकार बदलना है। जब मैं उनसे पूछता हूं क्यों बदलना है तो वे कहते हैं कि हम हर बार बदलते हैं।
– आप जिस लहर के खत्म होने की बात कह रहे हैं वो अलग-अलग राज्यों में भाजपा की लहर की बात कर रहे हैं या मोदी लहर की?
ना तो मोदी लहर है, ना ही भाजपा की लहर है और ना ही कांग्रेस की लहर है। कांग्रेस के पास तो न कोई बड़ी नीति या नेता भी नहीं है। प्रादेशिक नेता टक्कर दे रहे हैं लेकिन वहां भी सब बंटे हुए हैं।
– मध्य प्रदेश में मतदान हो चुका है नतीजों के संबंध में क्या संभावना आपको लग रही है?
मैं तो स्वयं मध्य प्रदेश के इंदौर से हूं। वहां के पहले मुख्यमंत्री पंडित रविशंकर शुक्ल को छोड़कर भगवंत राव मंडलोई से शिवराज सिंह चौहान तक मुझे सभी को बतौर पत्रकार और बतौर साथी नजदीक से जानने का अवसर मिला है। मुझे लगता है कि शिवराज बहुत ही अनूठे व्यक्ति है। बातों और कामों से किसी को घायल नहीं करते हैं। कहीं कोई गलती हो जाती है तो माफी मांगते हैं और सुधार करते हैं। उन्होंने काम भी काफी किया है।
– जिन व्यक्तिगत खूबियों का आप जिक्र कर रहे हैं क्या वो उन्हें चुनाव में जीत दिला पाएगी?
मुझे लगता है भाजपा की सीटें जरूर कम होंगी। लेकिन शिवराज की वजह से नहीं कम होंगी। मोहभंग का जो अखिल भारतीय वातावरण बना है वो इस कमी का कारण होगा। पिछले चार-साढ़े चार साल में बातें खूब हुई हैं, नौटंकियां खूब हुई हैं, ठोस काम कुछ नहीं हुआ है। कुछ नहीं हुआ से मेरा मतलब यह नहीं कि कुछ नहीं हुआ सरकार है लाखों कर्मचारी हैं तो काम तो होना ही है। लेकिन जो वादे किए गए थे वो पूरे नहीं हुए। जो किए हैं उन कामों ने लोगों को बहुत नुकसान पहुंचाया है। इसलिए उसका असर इन प्रादेशिक चुनावों पर जरूर पड़ेगा। लेकिन मुझे नहीं लगता कि छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में सत्ता परिवर्तन होगा।
– मध्य प्रदेश की राजनीति के लिहाज से शिवराज के बाद नंबर-2 कौन है?
भविष्यवाणी करना तो मुश्किल है लेकिन नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय समेत कई बड़े चेहरे हैं। छत्तीसगढ़ में भी रमन सिंह के बाद बृजमोहन अग्रवाल समेत कई लोग हैं।
– तीन चुनाव जीतकर अब शिवराज काफी बड़ा चेहरा बन चुके हैं। ऐसे में यदि अब चुनाव हारते हैं तो क्या मोदी-शाह की जोड़ी उन्हें भी साइडलाइन कर सकती है?
उन्होंने क्या सोचा ये कहना तो मुश्किल है। लेकिन उन्होंने पार्टी की जितनी सेवा की है उसको देखते हुए उन्हें केंद्र में या संगठन में कोई बड़ी जगह मिलनी ही चाहिए।
…अगर पार्टी की सेवा ही पैमाना होती तो लालकृष्ण आडवाणी आज मार्गदर्शक मंडल में नहीं होते हैं।
आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी दो ऐसे नेता हैं जिन्हें राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति बनाना या मंत्रिमंडल में रखना नरेंद्र मोदी के लिए थोड़ा मुश्किल होता, क्योंकि इतने बुजुर्ग हैं कि उनकी किसी भी बात को आप ना नहीं कह सकते। इसके लिए उद्दंड होना पड़ेगा। मोदी ऐसा सीमा उल्लंघन नहीं करना चाह रहे होंगे, इसी डर से उन्होंने दोनों को सत्ता से अलग रखा। जहां तक शिवराज का सवाल है मुझे नहीं लगता कि मोदी या शाह को इनसे कोई खतरा या डर है।
(मार्गदर्शक मंडल पर कसा तंज)
मार्गदर्शक मंडल का मतलब जो उसके सदस्य हैं वो ही नहीं समझते। मैंने उनको कई बार कहा कि आपको हिंदी ठीक से नहीं आती तो उन बुजुर्ग सदस्यों ने आश्चर्य जताया। मैंने कहा मोदी जी ही असली हिंदी समझते हैं। दर्शक का मतलब क्या होता है… देखने वाला तो मार्गदर्शक का मतलब हुआ मार्ग देखने वाला। तो मार्ग देखते रहिए। चार साल से आप मार्ग देख रहे हैं तो और जब तक यह सरकार चल रही है देखते रहिए।
– मध्य प्रदेश में अगर कांग्रेस को मौका मिलता है तो मुख्यमंत्री किसे बनाया जा सकता है?
कमलनाथ का अनुभव विराट है और ज्योतिरादित्य अपने पिता माधवराव जी से भी ज्यादा योग्य थे। ज्योतिरादित्य सदाचारी है, नौजवान है लेकिन अनुभव के बिना बहुत मुश्किल होती है। मुख्यमंत्री के तौर पर यदि उनका चेहरा सामने होता तो कांग्रेस जीत सकती थी क्योंकि लोग चेहरे और वाणी पर जाते हैं। अंदरूनी बातें उन्हें ज्यादा पता नहीं होती। अनुभव के लिहाज से कमलनाथ काफी योग्य हैं।
– टिकट बंटवारे में जिस तरह से दिग्विजय सिंह की चली है उसे देखते हुए उनकी वापसी कहीं कोई संभावना है?
मुश्किल है। वो खुद सक्रिय राजनीति से संन्यास की बात कह चुके हैं। वे अखिल भारतीय स्तर पर ही काम करे तो बहुत अच्छा है। उनको संन्यास नहीं लेना चाहिए।