झारग्राम से महज छह किमी की दूरी पर बसे सत्यदिही गांव की दास्तां अनूठी है। यहां के लोगों आज तक उन नेताओं से रूबरू नहीं हुए, जिन्हें वो अपना नुमाइंदा चुनते हैं। पार्टी के वर्कर गांव में आकर जब पोस्ट लगाते हैं तो उन्हें पता चलता है कि कौन-कौन चुनाव में खड़ा है। वर्कर ही उन्हें बताते हैं कि किसे वोट देना है। गांव में शनिवार यानि आज के दिन ही मतदान किया जाना है।

गांव का हाल देखें तो यहां के लोग विकास से कोसों दूर हैं। न तो उन्हें उज्जवला योजना के बारे में कोई जानकारी है और न ही पीएम किसान सम्मान निधि की। अपने सिर पर लकड़ियों की गठरी लेकर जा रहीं 60 साल की बुलु मिद्या से जब इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्टर ने बात की तो यह जानकर हैरत हुई कि उन्हें ये पता ही नहीं है कि केंद्र महिलाओं को मुफ्त में गैस का सिलेंडर दे रहा है। उनका कहना है कि लकड़ियों से वह खाना पकाती हैं।

यहां तक कि इस गांव के लोगों को बंगाल सरकार की कृषक बंधु स्कीम की भी जानकारी नहीं है। बात करने पर ग्रामीण हैरत जताते हुए कहते हैं कि उन्हें इन स्कीमों के बारे में पता ही नहीं। गांव वाले कहते हैं कि पंचायत के सदस्य यदा-कदा ही गांव में आते हैं। वो कभी कोई जानकारी उनसे साझा नहीं करते हैं। गांव के लोग अपने जीवन यापन के लिए महंगी दरों पर बंबू खरीदकर टोकरियां बनाते हैं। महिलाएं रसोई में लकड़ी इस्तेमाल करती हैं।

असम में जागा ‘लैंड जिहाद’ का जिन्न

असम चुनाव को लेकर बीजेपी ने अपना घोषणा पत्र जारी किया तो लव जेहाद के साथ लैंड जेहाद का भी जिक्र इसमें किया, लेकिन ज्यादातर लोगों को पता ही नहीं कि आखिर यह क्या बला है। असम बीजेपी के उपाध्यक्ष स्वपिनल बरुआ की मानें तो लैंड जेहाद का मकसद जमीन की जबरन होने वाली बिकवाली को रोकना है। असम में यह काम बंगाली मूल के मुस्लिम करते आ रहे हैं।

वह बताते हैं कि तरह-तरह के हथकंडे अपनाकर यह लोग असम मूल के लोगों को मुंहमांगे दाम पर जमीन बेचने को मजबूर करते हैं। कभी उनके पालतू जानवर चुरा लिए जाते हैं तो कभी किसी और तरह से उन पर दबाव बनाया जाता है। 2012 में जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ईस्ट पाकिस्तान से आजादी के बाद आए लोगों ने असम में जमीनों पर कब्जा किया। उन्होंने खाली पड़ी बहुत सारी जमीन को अपने कब्जे में ले लिया। यह रिपोर्ट नॉर्थ-ईस्ट पॉलिसी इंस्टीट्यूट ने तैयार की थी। इसमें कहा गया कि हालांकि, बांग्लादेशी मुस्लिम असम की अर्थव्यवस्था में योगदान करते हैं, लेकिन सामाजिक तानाबाना इन लोगों ने बिगाड़ दिया।

हालांकि, बीजेपी सरकार ने इन लोगों पर अंकुश लगाने के लिए ही एनआरसी लाने की बात कही थी। सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद एनआरसी रजिस्टर बनाने का काम शुरू तो हुआ, लेकिन यह इतना ज्यादा गलत हुआ कि मूल निवासी ही इससे बाहर हो गए। जब सीएए लाने की बात कही गई तो उसका पुरजोर विरोध हुआ। पीएम मोदी ने 2020 में असम मूल के लोगों के अधिकार सुरक्षित करने के लिए असम समझौते के क्लाज 6 को लागू करने की बात कही थी, लेकिन अभी तक नतीजा ढाक के तीन पात ही है।

बीजेपी के एक दूसरे नेता कहते हैं कि फिर से सरकार बनने पर वो मूल रूप से असम के निवासियों को जमीन का पट्टा जारी करेंगे। उन्होंने बताया कि सोनोवाल सरकार ने ऐसे 3 लाख लोगों को जमीन का पट्टा दिया है। उधर, असम के पूर्व डीजीपी हरेकृष्णा डेका कहते हैं कि बीजेपी लैंड जेहाद के जरिए सांप्रदायिक कार्ड खेल रही है। मोदी सरकार बांग्लादेश से लगती सीमा को सील करने में पूरी तरह से नाकाम रही है। उनका कहना है कि केंद्र और राज्य दोनों जगहों पर बीजेपी की सरकारें हैं। उसे लैंड जेहाद जैसी चीजों के बजाए सीमा को सील करने का काम करना चाहिए। कांग्रेस की बोबीता शर्मा कहती हैं कि बीजेपी के सामने क्या मजबूरी है जो बांग्लादेश से घुसपैठ को नहीं रोक पा रही है?