उत्तर प्रदेश समेत पांच में राज्यों के विधानसभा चुनाव में देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस ने एक बार फिर खराब प्रदर्शन किया है। यूपी में दो, उत्तराखंड में 19, पंजाब में 18, मणिपुर में 5 और गोवा में 11 सीटें मिलीं। पार्टी अपने सबसे खराब दौर से गुजर रही है। ऐसे में अब यह सवाल उठता है कि आगे पार्टी का भाविष्य क्या होगा?
सोनिया गांधी ने 1998 में जब कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला था तब कांग्रेस सिर्फ तीन राज्यों मध्य प्रदेश, ओडिशा और मिजोरम में सत्ता में थी। इसके बाद पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया। 2004 में केंद्र में सत्ता में लौटी। 2014 में वह नौ राज्यों में सत्ता में थी। आज कांग्रेस 24 साल पहले की तुलना में बदतर स्थिति में है। वह केवल दो राज्यों, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ही सत्ता में है।
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पिछले सात वर्षों में कांग्रेस केवल पांच राज्य सरकार बनाने में सक्षम रही। 2016 में केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी, 2017 में पंजाब और 2018 में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सरकार बना पाई। इस दौरान उसे 40 बार असफलता हाथ लगी।
पार्टी के अंदर दरार- विधानसभा चुनाव के परिणाम से पार्टी में राहुल गांधी विरोधी खेमे को बल मिलेगा, जो पार्टी में लोकतंत्र की बात करते हैं। सामूहिक नेतृत्व मॉडल लाने की बात हो सकती है। देखने वाली बात होगी कि कपिल सिब्बल समेत जी-23 के नेताओं अलावा कोई अन्य नेता इस पर बोलने की हिम्मत जुटा पाता है या नहीं।
गांधी परिवार के लिए चुनौती- पार्टी का एक बड़ा वर्ग चाहता है कि राहुल फिर से अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाले। यदि वह इसके लिए तैयार हो जाते हैं और नामांकन दाखिल करते हैं तो उन्हें बहुत ज्यादा विरोध का सामना नहीं करना पड़ेगा। संकट के इस दौर में गांधी परिवार को पहले पार्टी के आंतरिक कलह को पाटना होगा।
ब्रांड प्रियंका को नुकसान- उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन ने आखिरी बड़ी उम्मीद – प्रियंका गांधी वाड्रा के छवि को भी नुकसान पहुंचाया। कई लोगों के लिए वह तुरुप का इक्का थीं। वह 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी से जुड़ी। उन्हें जनवरी में ही यूपी का प्रभारी महासचिव नियुक्त किया गया था, ऐसे में उस वक्त उनपर बहुत ज्यादा सवाल नहीं उठे, लेकिन यूपी विधानसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन ने ब्रांड प्रियंका को नुकसान पहुंचाया है।
इन पार्टियों से मिल रही चुनौती- पार्टी की एक और आंतरिक संकट यह है कि राज्यों में उसके पास जनाधार वाले नेताओं की कमी है। आम आदमी पार्टी से उसे काफी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। आप ने पंजाब के मतदाताओं को दिल्ली मॉडल का सपना दिखाया। इसके विपरीत, कांग्रेस कोई ऐसा “मॉडल” विकसित करने में सक्षम नहीं रही है, जो वह किसी अन्य राज्य में प्रदर्शित कर सकती है। विपक्ष का केंद्र होने के कांग्रेस के दावे को आप और तृणमूल कांग्रेस जैसी पार्टियों लगातार चुनौती मिल रही है।
क्षेत्रीय दल गठजोड़ से कतराते हैं- टीएमसी को भले ही गोवा में सफलता न मिली हो, लेकिन एनसीपी जैसे सहयोगी और राजद सहित कई दलों को लगता है कि भाजपा के खिलाफ एक नई शैली और नेतृत्व की जरूरत है। समाजवादी पार्टी की तरह, कई क्षेत्रीय दल अब कांग्रेस के साथ गठजोड़ करने के लिए अनिच्छुक दिखाई देते हैं।