दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को कथित शराब घोटाले में अंतरिम जमानत मिल गई। जो राहत हाई कोर्ट से नहीं मिल रही थी, सर्वोच्च अदालत ने चुनावी मौसम में आप प्रमुख को वो फायदा देने का काम किया। अब रिहाई हो चुकी है, राहत मिल गई है, सवाल बस इतना- आजाद केजरीवाल का आम आदमी पार्टी को क्या फायदा होने वाला है? आजाद केजरीवाल का बीजेपी की रणनीति पर क्या असर पड़ेगा? आजाद केजरीवाल के कांग्रेस के लिए क्या मायने है?

आजाद केजरीवाल से आम आदमी पार्टी को क्या फायदा?

आम आदमी पार्टी में कहने को कई बड़े और कद्दावर नेता मौजूद हैं, संजय सिंह भी कम लोकप्रिय नहीं माने जाते हैं। लेकिन आम आदमी पार्टी की संरचना इस तरह से हुई है कि वहां पर अरविंद केजरीवाल के इर्द-गिर्द ही सारी सियासत चलती है। इसी वजह से जब सीएम केजरीवाल की कथित शराब घोटाले में गिरफ्तारी हुई, सबसे पहला असर आम आदमी पार्टी के प्रचार पर पड़ा। एक तरफ बीजेपी तो काफी आक्रमक दिखाई दे रही थी, आप सिर्फ सहानुभूति और सुनीता केजरीवाल को आगे कर माहौल बनाने की कवायद में दिखी।

लेकिन अब जब अरविंद केजरीवाल प्रचार के लिए बाहर आ गए हैं, आम आदमी पार्टी को बड़ी राहत है। उनके कैडर में एक अलग जोश दिख रहा है। शुक्रवार रात को जब केजरीवाल को जमनत मिली थी, आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने जिस तरह से दिवाली मनाई, जिस तरह से नारेबाजी हुई, वो बताने के लिए काफी था कि इस राष्ट्रीय दल के लिए असल चुनाव अब शुरू हुए हैं।

इसके ऊपर अरविंद केजरीवाल की सियासी शख्सियत को कमतर नहीं आका जा सकता। हवा का रुख कैसे और कब बदलना है, किस मुद्दे को किस तरह से भुनाना है, ये उन्हें अच्छे तरीके से आता है। इसी वजह से चुनाव से ठीक पहले उनका बाहर आना जमीन पर बड़ा परिवर्तन ला सकता है। अभी तक तो जेल में बैठे कैदी केजरीवाल के जरिए सहानुभूति की कोशिश हो रही थी, लेकिन अब आपबीती बताकर आजाद केजरीवाल सहानुभूति लेने की कोशिश करेंगे।

आम आदमी पार्टी ये भी समझती है कि अरविंद केजरीवाल का असर सिर्फ दिल्ली तक सीमित नहीं रहने वाला है, बल्कि उनका बाहर आना पंजाब, हरियाणा तक अपना असर रखेगा। दिल्ली में तो चार सीटों पर आम आदमी पार्टी चुनाव लड़ रही है, वहीं पंजाब में 13 और हरियाणा में एक सीट उसे मिली है। अब केजरीवाल अपने प्रचार के जरिए जमीन पर माहौल बना सकते हैं।

आजाद केजरीवाल से बीजेपी को क्या फायदा?

वैसे अरविंद केजरीवाल का बाहर निकलना सिर्फ आम आदमी पार्टी के लिए राहत नहीं है, अगर सियासी चश्मे से समझा जाए तो बीजेपी के लिए भी यहां फायदा छिपा है। असल में कुछ ऐसे सर्वे सामने आए थे, जहां कहा गया कि जेल में कैद केजरीवाल की वजह से आम आदमी पार्टी को सहानुभूति मिल रही है और कुछ सीटों पर बीजेपी को उसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता था। ऐसे में अगर केजरीवाल जेल से बाहर नहीं आते, बीजेपी के लिए उस नेरेटिव से लड़ना संभव ही नहीं होता। प्रचार के दौरान यही मुद्दा उठाया जाता कि दिल्ली के सीएम को जेल में डाला गया।

लेकिन अब जब केजरीवाल बाहर आ चुके हैं, बीजेपी पर कम से कम ये आरोप नहीं लगेगा कि चुनावी मौसम में सीएम को जेल में रखा गया है। इसके ऊपर केजरीवाल क्योंकि जमानत पर बाहर निकले हैं, इस आधार का भी बीजेपी पूरा फायदा उठाएगी। क्लीन चिट मिलने में और सिर्फ जमानत मिलने में काफी फर्क होता है। यहां तो सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कह दिया है कि एक जून को केजरीवाल को सरेंडर करना पड़ेगा। ये ‘सरेंडर’ शब्द ही बीजेपी को सियासी इम्युनिटी देने का काम करेगा और आप के सहानुभूति फैक्टर का काउंटर भी बनेगा।

बीजेपी नेताओं ने तो कहना शुरू कर दिया है कि केजरीवाल पर गंभीर आरोप लगे हुए हैं, कोर्ट ने इस बात को स्वीकार किया है, सिर्फ जमानत देकर कुछ दिन के लिए बाहर जाने की अनुमति मिली है। यानी कि भ्रष्टाचार की पिच पर बीजेपी और ज्यादा आक्रमक होकर बैटिंग करेगी। भूलना नहीं चाहिए कि इससे पहले राहुल और सोनिया गांधी को लेकर भी ये हमले होते हैं कि दोनों जमानत पर बाहर हैं। बीजेपी लगातार नेशनल हेराल्ड का मुद्दा उठाकर तंज कसने का काम करती है। अब वही अंदाज आम आदमी पार्टी और केजरीवाल को लेकर रहने वाला है।

आजाद केजरीवाल के कांग्रेस के लिए मायने

कांग्रेस पार्टी पर भी अरविंद केजरीवाल की रिहाई का असर पड़ने वाला है। बात अगर नुकसान की करें तो कांग्रेस कभी नहीं चाहती कि मुकाबला मोदी बनाम केजरीवाल का बने। आम आदमी पार्टी की तो ये कोशिश रहती है, लेकिन देश की सबसे पुरानी पार्टी इससे असहज है क्योंकि उस स्थिति में राहुल गांधी की दावेदारी कमजोर पड़ जाती है। इस समय इंडिया गठबंधन में कांग्रेस अपनी स्थिति को मजबूत रखना चाहती है, दिखाना चाहती है कि राहुल की अगुवाई में विपक्षी एकजुटता देखने को मिल रही है। लेकिन दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी का हर नेता भी कहता नहीं थकता कि मोदी सिर्फ और सिर्फ केजरीवाल से डरते हैं।

इसके ऊपर जिस तरह से सुनीता केजरीवाल ने पिछले महीने केजरीवाल की अनुपस्थिति में और इंडिया गठबंधन के नेताओं के सामने 6 गारंटियों का ऐलान किया था, उसने भी केजरीवाल की दावेदारी को ही मजबूत बनाया। ऐसे में अब जब केजरीवाल खुद बाहर हैं, कांग्रेस को भी अपनी रणनीति में बदलाव करना पड़ेगा, ऐसा बदलाव जहां पर केजरीवाल, राहुल गांधी पर भारी ना पड़ जाएं। अगर फायदे की बात करें तो वो बस इतना दिखाई देता है कि आने वाले दिनों में केजरीवाल और राहुल की साथ में संयुक्त रैली हो सकती है, ऐसे में इंडिया गठबंधन को कुछ मजबूती मिल सकती है।