दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कथित शराब घोटाले मामले में जमानत पा चुके हैं। कुछ दिनों के लिए ही सही, लेकिन आम आदमी पार्टी के लिए ये एक बड़ी राहत की खबर है। जेल से बाहर आते ही अरविंद केजरीवाल का पहला बड़ा भाषण भी हो गया है, मीडिया से बात करते हुए जो तल्खी उन्होंने दिखाई है, वैसा पहले देखने को नहीं मिला। उनका अंदाज पुराना है, लेकिन तेवर और ज्यादा तीखे हो गए हैं।

बीजेपी के अंदर जंग छिड़वाएंगे केजरीवाल?

अरविंद केजरीवाल ने शनिवार को जो भाषण दिया है, उसमें एक बात गौर करने लायक है। हमला जरूर उनका बीजेपी पर रहा है, लेकिन इस बार वे एक अलग रणनीति के तहत अटैक कर रहे थे। ऐसा देखने को मिला कि केजरीवाल बीजेपी के अंदर ही एक अलग तरह की जंग शुरू करना चाहते थे। वे नेताओं को एक दूसरे के खिलाफ भड़का रहे थे, एक अविश्वास की दीवार खड़ी करने की कोशिश कर रहे थे। अपने भाषण के जरिए दिल्ली सीएम ने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपने निशाने पर लिया, अमित शाह पर तंज कसा और फिर पीएम मोदी को लेकर भी बड़े दावे कर दिए।

योगी को लेकर बयान, पैदा होगा संशय?

सीएम केजरीवाल ने कहा कि मैं भाजपा से पूछता हूं कि आपका PM कौन होगा? मोदी जी अगले वर्ष 75 साल के हो रहे हैं, भाजपा के अंदर 2014 में मोदी जी ने खुद नियम बनाए थं कि BJP में जो भी 75 साल का होगा उसे रियाटर कर दिया जाएगा… अब मोदी जी रिटायर होने वाले हैं… अगर इनकी सरकार बनी तो सबसे पहले दो महीनों में वे योगी जी को निपटाएंगे, इसके बाद अगले साल सबसे खास अमित शाह को प्रधानमंत्री बनाएंगे… मोदी जी अपने लिए वोट नहीं मांग रहे हैं ये अमित शाह के लिए वोट मांग रहे है।

नेताओं की कुर्बानी, केजरीवाल को क्यो पसंद?

अब यहां तो केजरीवाल ने योगी की सीएम कुर्सी को संकट में बताया, अपने एक और बयान में उन्होंने तमाम उन नेताओं का जिक्र कर दिया जिनकी बीजेपी ने सियासी कुर्बानी दे दी। इन्होंने आडवाणी जी, मुरली मनोहर जोशी, सुमित्रा महाजन की राजनीति खत्म कर दी। शिवराज सिंह चौहान जिन्होंने मध्य प्रदेश का चुनाव जिताया, उन्हें CM नहीं बनाया, उनकी राजनीति खत्म कर दी। वसुंधरा राजे, खट्टर साहब, रमन सिंह की राजनीति खत्म कर दी अब अगला नंबर योगी आदित्यनाथ का है। अगर ये चुनाव यह जीत गए तो दो महीने में उत्तर प्रदेश का CM बदल दिया जाएगा… यही तानाशाही है।

अब इस दूसरे बयान के जरिए बीजेपी के अंसतोष नेताओं को आक्रोश से भरने की कवायद दिखी है। शिवराज सिंह चौहान से सीएम कुर्सी छिनी, ये एक सच है। पूर्व सीएम इस बात का बुरा लगा, ये भी सच है। इसी तरह 15 साल तक सीएम रहे रमन सिंह हटा भी उन्हें नाराज कर गया था। यानी कि केजरीवाल ने उन नेताओं का जिक्र किया जो कहीं ना कहीं बीजेपी हाईकमान से कुछ नाराज हैं या जिन्हें हाल ही में बड़ा सियासी झटका लगा है।

बीजेपी के मुद्दे, केजरीवाल देंगे दखल!

अब वैसे बीजेपी के निजी मसलों के बारे में सिर्फ बीजेपी को ही सोचने का अधिकार है, लेकिन यहां अरविंद केजरीवाल ने गंगा उल्टी बहा दी है। उनकी तरफ से बीजेपी के मुद्दे उठाए गए हैं, पार्टी के अंदर चल रही रस्साकशी को पूरे देश के सामने रख दिया गया है। कहने को योगी की सीएम कुर्सी पर कोई खतरा नहीं है, लेकिन जनता के मन में उन्होंने संशय डाल दिया है कि दो महीने के अंदर योगी को मुख्यमंत्री पद गंवाना पड़ेगा।

इसी तरह और बड़ा दावा करते हुए उन्होंने अमित शाह को प्रधानमंत्री बनाने की बात कर दी है। लोगों के बीच में और राजनीतिक गलियारों में ऐसी चर्चा जरूर चलती है कि मोदी के बाद योगी को बीजेपी पीएम दावेदार के रूप में पेश करेगी। लेकिन उस धारणा को ही तोड़ने के लिए केजरीवाल ने अमित शाह का नाम आगे कर दिया। जोर देकर बोल दिया कि मोदी की गारंटी के नाम पर वोट जरूर मांगे जा रहे है, लेकिन बाद में पीएम तो अमित शाह को बना दिया जाएगा।

मोदी की गांरटी की निकालेंगे हवा?

अब इस बयान के जरिए भी केजरीवाल ने एक तीर से दो निशाने लगा दिए हैं। एक तरफ जनता के बीच में ‘मोदी की गारंटी’ नारे की कीमत एकदम कम कर दिया गया है, दूसरी तरफ बीजेपी के अंदर में भी ये मैसेज दिया जा रहा है कि आपके लोकप्रिय नेता मोदी अब पीएम नहीं बनने वाले हैं या अगर बन भी गए तो वे किसी दूसरे को वो पद सौंप देंगे। ये अविश्वास वाला खेल ही बगावत की नींव रखता है और किसी भी पार्टी के लिए नई मुश्किल खड़ी करता है। अब ये पहली बार है जब केजरीवाल ने बीजेपी पर हमला बीजेपी के सहारे ही किया है। पहले तो सिर्फ आरोप लगाए जाते थे कि आम आदमी पार्टी को खत्म करने की साजिश हो रही है।

केजरीवाल के माइंड गेम!

लेकिन जेल से बाहर निकलने के बाद केजरीवाल ने एक नया गेम शुरू कर दिया है। इस गेम तहत वे बीजेपी कार्यकर्ताओं के साथ ही माइंड गेम खेल रहे हैं। उनके मन में ही ये अविश्वास पैदा किया जा रहा है कि उनके नेता अब ज्यादा समय तक सक्रिय नहीं रहने वाले हैं। इसके ऊपर जानबूझकर विकल्प के तौर पर ऐसे नेताओं को आगे किया जा रहा है जिनको लेकर शायद बीजेपी में ही एक राय ना बन पाए, यानी कि फिर बगावत की सुगबुगाहट।