MP Assembly Election 2018: मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी को उन्हीं सवालों का सामना करना पड़ रहा है जो करीब एक साल पहले गुजरात चुनाव के दौरान थे. दोनों जगह बीजेपी के लिए के चुनाव में चुनौतियां, चयन और सवाल एक से नजर आ रहे हैं. गुजरात की तरह मध्य प्रदेश में भी ‘अच्छे शासन’ की रट के बावजूद बीजेपी का बहुत कुछ दांव पर है. मतदान में अभी महीने भर से ज्यादा का वक्त है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह लगातार जन आशीर्वाद यात्रा पर हैं. कांग्रेस की ओर से प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया मोर्चा संभाले हुए हैं. दिग्विजय सिंह की भी अहमियत बरकरार है. ऐसे में जनसत्ता डॉट कॉम की टीम ने मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के अलावा सीहोर, विदिशा, देवास और उज्जैन का दौरा किया. आइए, जानते हैं ग्राउंड लेवल पर जनता क्या सोच-समझ रही है…

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MP Election 2018: जन आशीर्वाद यात्रा। फोटो-पीटीआई।

शिवराज तो हैं ही, पर आगे क्या?
तीन बार से मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल रहे शिवराज सिंह चौहान किसी भी अन्य नेता से कहीं ज्यादा लोकप्रिय हैं. खासकर जनता के बीच ‘मामा’ की छवि उन्हें सबके बीच सरल-सहज बनाए हुए है. लोगों को ‘संबल’ जैसी कई योजनाओं का फायदा हो रहा है. पर कुछ मिनट की बातचीत के बाद वोटर्स आगे की बात करने लगते हैं. यानी क्या विकल्प है? सीहोर जिले में पड़ने वाला मेहतवाड़ बीजेपी के लिए बहुत कठिन लड़ाई नहीं रहा है. चौक पर चाय की दुकान पर बैठे कुछ लोगों ने बातचीत के दौरान बताया कि हमें मामा पर भरोसा है. उनका काम अच्छा है. वहीं, 25-28 साल के दीपक ने कहा- हमने तो शिवराज की सरकार देखी है. कोई दिक्कत नहीं है. इस बार भी बीजेपी जीतेगी? इस सवाल का वहां सीधा जवाब नहीं मिला. कुछ ने कहा- कांग्रेस तो हमें समझ में ही नहीं आ रही है. एक नेता तय नहीं है. हम क्या करें. शिवराज को कांग्रेस के लिए नहीं बदल सकते. हमारे पास आगे का रास्ता नहीं है.

‘लोकल’ नाराजगी से निपटना बीजेपी के लिए चुनौती
शिवराज सरकार के कामकाज की सराहना करने वालों के मन में अपने लोकल विधायकों को लेकर काफी रोष है. भोपाल के मालवीय नगर में चाय की दुकान लगाने वाले भागवत का कहना है कि वह इस बार किसी को वोट नहीं देगा. जब हमने पूछा 2013-2014 में किसे वोट दिए थे? इस पर उन्होंने कहा- शिवराज और मोदी को, पर अब मैं किसी को वोट नहीं देना चाहता. जो विधायक पहले घर-घर घूमता था वो अब हमें नहीं पूछता. उन्होंने बताया कि चार बार आवेदन करने के बाद भी उनका राशन कार्ड नहीं बना.

100 से ज्यादा विधायकों के टिकट काट सकती है बीजेपी
यह गुस्सा सिर्फ भागवत नहीं बल्कि कई वोटर्स का है. इस बात को बीजेपी भी जानती और मानती है. कहा जा रहा है कि लोकल एंटी-इनकंबेंसी को खत्म करने के लिए बीजेपी करीब 70-80 मौजूदा विधायकों का टिकट काट सकती है. 20 अक्टूबर के बाद उस पर अंतिम फैसला लिया जाएगा. वहीं बीजेपी के एक अन्य सूत्र ने कहा- अगर मध्य प्रदेश में भी बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का फॉर्मूला अपनाएगी तो करीब 100 विधायकों के टिकट काटने ही पड़ेंगे. हालांकि, बीजेपी के ही कुछ नेताओं का कहना है कि मध्य प्रदेश में संगठन आदर्श स्थिति में है, यहां एमसीडी चुनावों की तरह सारे कैंडिडेट्स नहीं बदले जा सकते. इस संबंध में बीजेपी के स्टेट स्पोक्सपर्सन रजनीश अग्रवाल ने कहा- पार्टी ने थर्ड एजेंसी से सर्वे कराया है. टिकट वितरण के वक्त पार्टी की चयन समिति कई पहलुओं पर गौर करेगी. बता दें कि 230 सीट वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 2013 में 165 सीटें हासिल की थीं.

चयन को लेकर चिंतित बीजेपी
प्रदेश बीजेपी में उम्मीदवारी तय करने को लेकर लगातार बैठकें हो रही हैं. प्रदेश प्रभारी प्रभात झा केंद्रीय और राज्य नेतृत्व के बीच समन्वय बना रहे हैं. इस बीच बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने आगे की रणनीति के बारे में बताया- 27-28 अक्टूबर तक लिस्ट आनी शुरू हो जाएगी. सभी 230 सीटों पर पार्टी की ओर से सर्वे कराया गया है. अब हर जिले में दो सीनियर कार्यकर्ताओं को भेजा जाएगा, जो कि पुरानी परंपरा के तहत गुप्त पेटी में 2 नाम डालेंगे. 20 अक्टूबर के बाद चुनाव समीति की मीटिंग होगी और उन नामों पर चर्चा की जाएगी.

बीजेपी की असली चिंता लिस्ट आने के बाद शुरू होगी. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है जिन इलाकों में पार्टी टिकट काटेगी वहां समीकरण गड़बड़ा सकता है. बीजेपी के कुछ नेता पहले ही टिकट कटने के बाद के हालात की तैयारी कर रहे हैं. छोटे कसबों-ग्रामीण इलाकों में समीकरण गड़बड़ाने का कांग्रेस को फायदा हो सकता है।