महाकुंभ 2025 में आईआईटी बॉम्बे से एयरोस्पेस इंजीनियर की पढ़ाई पूरी करने का दावा करने वाले अभय सिंह की स्टोरी जब से इंटरनेट पर वायरल हुई है हर कोई उनकी उस पढ़ाई के बारे में जानना चाहता है जो उन्होंने उस संस्थान से की। तमाम मीडिया चैनलों को दिए इंटरव्यू में अभय सिंह ने बताया है कि उन्होंने 2008 से 2012 बैच में IIT बॉम्बे से एयरोस्पेस इंजीनियर पूरी की। आखिर यह एयरोस्पेस इंजीनियर क्या है? कहां-कहां से इसकी पढ़ाई होती है? इसे पढ़ने के बाद कितनी कमाई होती है? ऐसे कुछ सवाल लोगों के मन में कौंध रहे हैं।
क्या है एयरोस्पेस इंजीनियरिंग?
इस आर्टिकल में हम आपको एयरोस्पेस इंजीनियर के बारे में विस्तृत जानकारी देंगे। सबसे पहले ये जानते हैं कि आखिर एयरोस्पेस इंजीनियरिंग क्या है? भारत में एयरोस्पेस इंडस्ट्री नई ऊंचाइयों पर पहुंच चुकी है। इस इंडस्ट्री में कुशल पेशेवरों की मांग आसमान छू रही है। यदि आप इस गतिशील क्षेत्र में करियर बनाने के बारे में सोच रहे हैं तो आपको इसके बारे में पूरी जानकारी रखनी होगी। एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में विमान, अंतरिक्ष यान और मिसाइलों के डिजाइन, विकास और परीक्षण से जुड़ी फील्ड है।
क्या काम होता है एयरोस्पेस इंजीनियर का?
एयरोस्पेस इंजीनियर उन प्रणालियों और तकनीकों को बनाने और सुधारने का काम करते हैं जो उड़ान को संभव बनाती हैं। वे छोटे मानव रहित ड्रोन से लेकर बड़े कमर्शियल एयरलाइनर और अंतरग्रहीय अंतरिक्ष यान तक कई तरह की परियोजनाओं पर काम करते हैं। आसान भाषा में एयरोस्पेस इंजीनियर का काम विमान, ड्रोन और अंतरिक्ष यान बनाना है।
दो टाइप की है एयरोस्पेस इंजीनियरिंग
बी.टेक एयरोस्पेस इंजीनियरिंग करने वाले युवा आमतौर पर दो क्षेत्रों में से एक में विशेषज्ञता प्राप्त करते हैं। इनमें पहला है एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग या एस्ट्रोनॉटिकल इंजीनियरिंग। एयरोनॉटिकल इंजीनियर फिक्स्ड-विंग एयरक्राफ्ट और हेलीकॉप्टर सहित विमानों के डिजाइन और विकास पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जबकि एस्ट्रोनॉटिकल इंजीनियर उपग्रहों और अंतरग्रहीय मिशनों सहित अंतरिक्ष यान के डिजाइन और विकास पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
पढ़ाई में क्या सिखाया जाता है?
एयरोस्पेस इंजीनियर नए विमान और अंतरिक्ष यान प्रणालियों को डिजाइन करने और उनका परीक्षण करने के लिए वैज्ञानिक और इंजीनियरिंग सिद्धांतों के संयोजन का उपयोग करते हैं। वे प्रस्तावित डिजाइनों के मॉडल और सिमुलेशन बनाने के लिए कंप्यूटर-एडेड डिज़ाइन (CAD) सॉफ़्टवेयर का उपयोग करते हैं, और यह सुनिश्चित करने के लिए प्रयोगशाला और उड़ान वातावरण में परीक्षण करते हैं कि डिज़ाइन प्रदर्शन और सुरक्षा विनिर्देशों को पूरा करते हैं। वे विमान और अंतरिक्ष यान के रखरखाव और मरम्मत में भी शामिल हो सकते हैं।
एयरोस्पेस इंजीनियरिंग एक तेजी से बदलता हुआ क्षेत्र है, जिसमें लगातार नई तकनीकें और उन्नति विकसित हो रही है। एयरोस्पेस इंजीनियरों को इन परिवर्तनों के साथ अद्यतित रहना चाहिए और नई तकनीकों और डिजाइन पद्धतियों को अपनाने के लिए तैयार रहना चाहिए।
भारत में इसके कितने कॉलेज और संस्थान हैं?
भारत में लगभग 100 से ज्यादा बेहतरीन एयरोस्पेस इंजीनियरिंग कॉलेज हैं। इनमें से 80 कॉलेज प्राइवेट हैं और 17 कॉलेज सार्वजनिक/सरकारी संगठनों के स्वामित्व वाले हैं। इस कोर्स में दाखिले के लिए उम्मीदवारों को JEE Main, GATE, TNEA, COMEDK UGET जैसी प्रवेश परीक्षा देनी होती है। इन्हें पास करने के बाद उम्मीदवारों को IIT बॉम्बे, IIT मद्रास, IIT खड़गपुर, IIT हैदराबाद, IIT कानपुर, चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी, LPU, NIT दिल्ली, SASTRA, IIEST शिबपुर, RV कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग जैसे संस्थानों में एडमिशन मिल जाएगा।
एयरोस्पेस इंजीनियर की यह हैं जिम्मेदारियां
विमान और अंतरिक्ष यान का डिज़ाइन बनाना: एयरोस्पेस इंजीनियर विभिन्न प्रकार के विमानों और अंतरिक्ष यान के लिए ब्लूप्रिंट और डिज़ाइन बनाने के लिए ज़िम्मेदार होते हैं।
वायुगतिकी विश्लेषण: वे अध्ययन करते हैं कि वायु और अन्य गैसें वाहन के साथ कैसे संपर्क करती हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि यह विभिन्न वायुमंडलीय स्थितियों के माध्यम से कुशलता से आगे बढ़ सकता है।
संरचनात्मक विश्लेषण: एयरोस्पेस इंजीनियर यह सुनिश्चित करने के लिए वाहन की संरचना की ताकत और स्थिरता का आकलन करते हैं कि यह उड़ान के दौरान आने वाले तनावों का सामना कर सकता है।
नियंत्रण प्रणाली: वाहन के उड़ान पथ और स्थिरता को प्रबंधित करने के लिए नियंत्रण प्रणालियों को डिजाइन करना और उनका परीक्षण करना। इसमें नेविगेशन, मार्गदर्शन और नियंत्रण एल्गोरिदम शामिल हैं।
सामग्री का चयन: विमान और अंतरिक्ष यान के घटकों के निर्माण के लिए सही सामग्री का चयन करना, वजन, स्थायित्व और चरम स्थितियों के प्रति प्रतिरोध जैसे कारकों पर विचार करना।
परीक्षण और प्रोटोटाइपिंग: एयरोस्पेस सिस्टम की सुरक्षा और प्रदर्शन सुनिश्चित करने के लिए प्रोटोटाइप बनाना और कठोर परीक्षण करना। इसमें पवन सुरंग परीक्षण, संरचनात्मक परीक्षण और सिमुलेशन शामिल हैं।
सुरक्षा मानक: वाणिज्यिक विमानों के लिए यात्रियों और चालक दल की सुरक्षा, साथ ही अंतरिक्ष यान के लिए मिशन की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सख्त सुरक्षा मानकों और विनियमों का पालन करना।
एयरोस्पेस इंजीनियर की सैलरी कितनी होती है?
भारत में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग का वेतन उनके एक्सपीरियंस, नौकरी की जगह और कंपनी पर निर्भर करता है। फ्रेशर से लेकर 2 साल तक के अनुभव वालों को 25 हजार से लेकर 40 हजार रुपए तक का मासिक वेतन मिल जाता है। वहीं 3 से 7 साल तक के अनुभव वालों युवाओं को 50 हजार रुपए से लेकर 1,20,000 हजार रुपए महीना तक कमा सकते हैं। 7 साल से ऊपर के अनुभव वालों की सैलरी 2.5 लाख रुपए महीना तक चली जाती है।