उत्तर प्रदेश के संस्कृत महाविद्यालयों में प्राचार्यों और शिक्षकों की नियुक्ति पर लगी रोक को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खत्म कर दिया। दस वर्षों से नियुक्ति में लगी रोक हटाने के एकल पीठ के फैसले के खिलाफ राज्य सरकार की अपील हाईकोर्ट ने खारिज कर दी। इससे अब नियुक्ति का रास्ता साफ हो गया है। राज्य सरकार की विशेष अपील पर यह आदेश न्यायमूर्ति शशिकांत गुप्ता और न्यायमूर्ति एसएम शमशेरी की खंडपीठ ने दिया।
अभी तक नियमावली 1971 के तहत वेतन दिया जा रहा है :दरअसल अभी तक हाईस्कूल और इंटर कालेज (अध्यापक-कर्मचारी वेतन भुगतान) नियमावली 1971 के तहत वेतन दिया जा रहा है। इसे यूजीसी के मानकों के अनुसार निर्धारित किया जाना है। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि जब तक सरकार पदों का सृजन और यूजीसी मानकों के मुताबिक वेतन निर्धारण नहीं कर लेती है, तब तक विश्वविद्यालय की परिनियमावली के अनुसार भर्ती प्रक्रिया जारी रखी जाए।
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18 वर्ष बाद भी पद सृजन और वेतन निर्धारण नहीं किया : प्रदेश सरकार ने 20 दिसंबर 2001 को संस्कृत महाविद्यालयों के अध्यापकों की भर्ती उच्चतर शिक्षा सेवा चयन आयोग को सौंप दी थी। साथ ही यह तय किया गया कि संस्कृत महाविद्यालयों में पदों का सृजन और वेतन निर्धारण किया जाए। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी की कार्यकारिणी ने परिनियम में संशोधन भी कर दिया, लेकिन 18 वर्ष बाद भी पद सृजन और वेतन निर्धारण नहीं किया जा सका। पिछले 10 वर्षों से नियुक्तियां भी रोक दी गईं। सेवानिवृत्त और तदर्थ शिक्षकों से शिक्षण कार्य लिया जा रहा है।
शासनादेश को त्रिवेणी संस्कृत महाविद्यालय ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी : भर्ती पर रोक के बाद 10 अक्टूबर 2018 के शासनादेश को त्रिवेणी संस्कृत महाविद्यालय ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट ने शासनादेश रद्द कर दिया और विश्वविद्यालय के परिनियम के अनुसार भर्ती करने की छूट दी, जिसे सरकार ने अपील में चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता के अनुसार संस्कृत महाविद्यालयों में 416 शिक्षकों और 68 प्राचार्यों की भर्ती शुरू की गई। सरकार ने 19 मार्च 2010 के शासनादेश से इंटर कालेज का वेतनमान संस्कृत महाविद्यालयों पर लागू किया, जिसे संशोधित किया जाना है। ताकि अन्य विश्वविद्यालयों के समान पद और वेतन हो सके और भर्तियां आयोग से हों।