यूजीसी ने सभी यूनिवर्सिटी और कॉलेजों को 30 सितंबर तक एग्जाम कराने का निर्देश दिया था। कुछ स्टूडेंट्स इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट चले गए थे कि एग्जाम कराए बिना ही सभी को उनके पुराने रिकॉर्ड के आधार पर नंबर दे दिए जाएं। मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है। आयोग ने कहा है कि जो छात्र परीक्षा में भाग लेने में सक्षम नहीं होंगे, उन्हें महामारी की स्थिति नियंत्रण में होने पर परीक्षा के लिए एक और मौका दिया जाएगा। पिछली सुनवाई में देश भर के विश्वविद्यालयों में फाइनल ईयर परीक्षा करवाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने UGC को परीक्षा रद्द करने/ स्थगित करने पर जवाब देने के लिए कहा था। UGC ने कोर्ट में कहा था कि अधिकांश जगह परीक्षाएं हो चुकी हैं या होने वाली हैं।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतिम वर्ष के छात्रों के लिए ऑनलाइन ओपन बुक एग्जाम (OBE) के आयोजन को मंजूरी दे दी। ऑनलाइन ओबीई सोमवार 10 अगस्त से शुरू हो गए हैं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने बीते दिन सुप्रीम कोर्ट (SC) में अपना जवाब दाखिल किया था, जिसमें कहा गया कि फ़ाइनल ईयर की परिक्षाएं (Final Year Exams) 30 सितंबर तक आयोजित करवाने का मक़सद छात्रों का भविष्य संभालना है, ताकि छात्रों के अगले साल की पढ़ाई में कोई रुकावट न आए।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एडप्पादी के पलानीस्वामी (Edappadi K Palaniswami) ने एक बयान में कहा, इन छात्रों यूजीसी और एआईसीटीई (UGC and AICTE) के दिशानिर्देशों के मुताबिक, मार्क्स दिए गए हैं।
तमिलनाडु में, टर्मिनल परीक्षा के लिए उपस्थित होने वाले छात्रों को छोड़कर, बीए, बीएससी, एमए, एमएससी, बीई / बीटेक, एमई / एमटेक, एमसीए और डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के सभी छात्रों को अगले शैक्षणिक वर्ष में प्रमोट किया गया।
नई शिक्षा नीति के लागू होने के बाद छात्रों को आजादी होगी की अगर वे किसी कोर्स को बीच में छोड़कर दूसरे कोर्स में प्रवेश लेना चाहते हैं तो वे पहले कोर्स से एक निश्चित समय का ब्रेक ले सकते हैं।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने सोमवार को कहा, केंद्र सरकार अंग्रेजी भाषा के खिलाफ नहीं है, लेकिन वह भारतीय भाषाओं को मजबूत करना चाहती है। शिक्षा मंत्री को यह बयान इसलिए देना पड़ा क्योंकि नई शिक्षा नीति को मंजूरी मिलने के बाद विपक्ष के कुछ नेताओं ने सरकार पर ऐसा आरोप लगाया था।
UGC ने कॉलेजों को यह सुविधा दी है कि जो छात्र परीक्षा में शामिल न हो सकें उनके लिए स्पेशल एग्जाम आयोजित किए जाएं। इसे लेकर भी छात्रों में असंतोष है। छात्रों का कहना है कि परीक्षाएं पूरी तरह रद्द हों और इंटरनल एग्जाम्स के आधार पर रिजल्ट तैयार किया जाए।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, UGC ने स्पष्ट किया है कि अंतिम वर्ष की परीक्षाएं ऑनलाइन, ऑफलाइन या दोनों तरीकों से हो सकती हैं मगर समय पर होनी चाहिए। दिल्ली विश्वविद्यालय, डीयू की ओबीई परीक्षाओं को चुनौती देने वाले मामले में प्रश्नों को संबोधित करते समय यूजीसी द्वारा प्रस्तुति आधारित मूल्यांकन के विकल्प को खारिज कर दिया गया था।
छात्रों ने हैशटैग #StudentsAgainstStateAutonomy के साथ एक ट्विटर पर एक अभियान चलाया है जिसमें वरुण सरदेसाई, आदित्य ठाकरे, अभिषेक सिंघवी, महाराष्ट्र छात्र संघ शामिल हैं। वे भारत भर के छात्रों से आगे आकर अपनी शिक्षा और अपने भविष्य के लिए बोलने की अपील कर रहे हैं।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने बीते दिन सुप्रीम कोर्ट (SC) में अपना जवाब दाखिल किया था, जिसमें कहा गया कि फ़ाइनल ईयर की परिक्षाएं (Final Year Exams) 30 सितंबर तक आयोजित करवाने का मक़सद छात्रों का भविष्य संभालना है, ताकि छात्रों के अगले साल की पढ़ाई में कोई रुकावट न आए।
अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि जुलाई में जारी हुई गाइडलाइन्स अप्रैल वाली गाइडलाइन्स से भी ज्यादा सख्त हैं. उन्होंने कोर्ट में यह भी कहा कि देश में कई सारे ऐसे विश्विद्यालय हैं, जहां ऑनलाइन परीक्षाओं के लिए जरूरी सुविधाएं नहीं हैं. सिंघवी की इस दलील पर कोर्ट ने कहा कि यूजीसी की गाइडलाइन्स (UGC Guidelines) में परीक्षाएं ऑफलाइन देने का भी विकल्प है।
दिल्ली, पश्चिम बंगाल, पंजाब और तमिलनाडु के सम्मानित मुख्यमंत्रियों ने भी केंद्र सरकार को पत्र लिखकर UGC के दिशानिर्देशों को लागू न करने की मांग की थी। ये वह राज्य हैं जहां कोरोना संक्रमण की हालत बेहद खराब है। वहीं महाराष्ट्र में उच्च शिक्षा निदेशालय ने उच्चतम न्यायालय में एक हलफनामा दायर किया है जिसमें कहा गया है कि राज्य में वायरस के मामलों की बढ़ती संख्या के कारण, यूजीसी के दिशानिर्देशों के अनुसार परीक्षा आयोजित नहीं की जाएगी।
यूजीसी ने फाइनल ईयर की परीक्षाओं के आयोजन का समर्थन किया है क्योंकि यह महसूस किया कि सीखने की एक गतिशील प्रक्रिया है और परीक्षा के माध्यम से किसी के ज्ञान को आंकने का एकमात्र तरीका है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई 14 अगस्त 2020 को होने वाली है।
छात्रों, शिक्षाविदों और कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों के विरोध के बावजूद, मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने पहले ट्विटर के जरिए कहा था कि, “किसी भी शिक्षा मॉडल में, मूल्यांकन सबसे महत्वपूर्ण होता है। परीक्षा में प्रदर्शन छात्रों को आत्मविश्वास और संतुष्टि देता है।”
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एडप्पादी के पलानीस्वामी (Edappadi K Palaniswami) ने एक बयान में कहा, इन छात्रों यूजीसी और एआईसीटीई (UGC and AICTE) के दिशानिर्देशों के मुताबिक, मार्क्स दिए गए हैं।
छात्रों, शिक्षाविदों और कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों के विरोध के बावजूद, मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने पहले ट्विटर के जरिए कहा था कि, “किसी भी शिक्षा मॉडल में, मूल्यांकन सबसे महत्वपूर्ण होता है। परीक्षा में प्रदर्शन छात्रों को आत्मविश्वास और संतुष्टि देता है।”
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने आज उच्चतम न्यायालय को सूचित किया है कि उसने विश्वविद्यालयों को सितंबर में टर्म-एंड परीक्षा के लिए उपस्थित नहीं होने वाले छात्रों के लिए संभव होने पर "विशेष परीक्षा के लिए" परीक्षा आयोजित करने की अनुमति दी है।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कल सोमवार को कहा, केंद्र सरकार अंग्रेजी भाषा के खिलाफ नहीं है, लेकिन वह भारतीय भाषाओं को मजबूत करना चाहती है।
बोर्ड परीक्षा के नंबरों का महत्व अब कम होगा जबकि कॉन्सेप्ट और प्रैक्टिकल नॉलेज का महत्व ज्यादा होगा। सभी छात्रों को किसी भी स्कूल वर्ष के दौरान दो बार बोर्ड परीक्षा देने की अनुमति दी जाएगी। एक मुख्य परीक्षा और एक सुधार के लिए। छात्र दूसरी बार परीक्षा देकर अपने नंबर सुधार भी सकेंगे।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने यूजीसी को इंटरमीडिएट परीक्षा के लिए दिशानिर्देशों में बताए गए अन्य तरीकों से परीक्षा आयोजित करने की संभावना पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था। यूजीसी ने कहा कि परीक्षाएं ऑनलाइन या ऑफलाइन या मिक्स्ड मोड में ली जा सकती हैं, मगर सिम्पल प्रजेंटेशन मोड में नहीं क्योंकि परीक्षा समयबद्ध होनी चाहिए।
छात्रों ने हैशटैग #StudentsAgainstStateAutonomy के साथ एक ट्विटर पर एक अभियान चलाया है जिसमें वरुण सरदेसाई, आदित्य ठाकरे, अभिषेक सिंघवी, महाराष्ट्र छात्र संघ शामिल हैं। वे भारत भर के छात्रों से आगे आकर अपनी शिक्षा और अपने भविष्य के लिए बोलने की अपील कर रहे हैं।
देश में तीन दशक बाद नई शिक्षा नीति को मंजूरी मिल गई है। उच्च शिक्षा में 3.5 करोड़ नई सीटों को जोड़ा जाएगा। वहीं Gross Enrolment Ratio को 2035 तक पचास फीसदी करने का लक्ष्य है। 2018 के आकड़ों के अनुसार Gross Enrolment Ratio 26.3 प्रतिशत था।
स्नातक में प्रवेश लेने के बाद तीन साल पढ़ाई करना अनिवार्य नहीं होगा। नई शिक्षा निति लागू होने के बाद स्नातक 3 से 4 साल तक होगा। इस बीच किसी भी तरह से अगर बीच में छात्र पढ़ाई छोड़ता है तो उसका साल खराब नही होगा। एक साल तक पढ़ाई करने वाले छात्र को प्रमाणपत्र, दो साल पढ़ाई करने वाले को डिप्लोमा और कोर्स की पूरी अवधि करने वाले को डिग्री प्रदान की जाएगी।
इस समय करीब 390 विश्वविद्यालय अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित करने की तैयारी कर रहे हैं। मेहता ने कहा, ‘किसी को भी इस गफलत में नहीं रहना चाहिए कि चूंकि यह न्यायालय इस मामले पर विचार कर रहा है तो इसे पर रोक लगा दी जायेगी। छात्रों को अपनी पढ़ाई जारी रखनी चाहिए।’
यूजीसी ने फाइनल ईयर की परीक्षाओं के आयोजन का समर्थन किया है क्योंकि यह महसूस किया कि सीखने की एक गतिशील प्रक्रिया है और परीक्षा के माध्यम से किसी के ज्ञान को आंकने का एकमात्र तरीका है।
यूजीसी ने सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) को बताया है कि 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित करने का निर्देश 'छात्रों के शैक्षणिक भविष्य की रक्षा' के लिए जारी किया गया था।
उच्चतम न्यायालय ने यूजीसी के दिशानिर्देशों को चुनौती देते हुए दलीलों के एक नए बैच को सुना, जिसे 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षा के लिए अनिवार्य कर दिया। पिछली सुनवाई में, यूजीसी ने शीर्ष अदालत को बताया था कि वह अंतिम वर्ष की परीक्षाओं को अनिवार्य बनाने वाले अपने 6 जुलाई के दिशानिर्देशों को नहीं बदलेगा।
गृह मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय के आदेशों के अनुसार, 6 जुलाई को यूजीसी द्वारा प्रदान किए गए संशोधित परीक्षा दिशानिर्देशों के अनुसार, अंतिम वर्ष के विश्वविद्यालय परीक्षाओं को ऑनलाइन, ऑफलाइन या मिश्रित मोड में पूरे भारत में सितंबर के अंत तक आयोजित करने की आवश्यकता है।
अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि जुलाई में जारी हुई गाइडलाइन्स अप्रैल वाली गाइडलाइन्स से भी ज्यादा सख्त हैं. उन्होंने कोर्ट में यह भी कहा कि देश में कई सारे ऐसे विश्विद्यालय हैं, जहां ऑनलाइन परीक्षाओं के लिए जरूरी सुविधाएं नहीं हैं. सिंघवी की इस दलील पर कोर्ट ने कहा कि यूजीसी की गाइडलाइन्स (UGC Guidelines) में परीक्षाएं ऑफलाइन देने का भी विकल्प है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने बीते दिन सुप्रीम कोर्ट (SC) में अपना जवाब दाखिल किया था, जिसमें कहा गया कि फ़ाइनल ईयर की परिक्षाएं (Final Year Exams) 30 सितंबर तक आयोजित करवाने का मक़सद छात्रों का भविष्य संभालना है, ताकि छात्रों के अगले साल की पढ़ाई में कोई रुकावट न आए।
UGC ने कोर्ट से सभी याचिकाओं को खारिज करने की मांग हलफनामा में की थी. UGC ने कहा था कि टर्मिनल परीक्षा का आयोजन एक "समय-संवेदनशील" मुद्दा है और HRD के दिशा- निर्देशों का पालन करके विशेषज्ञों के साथ विचार-विमर्श के बाद ये परीक्षाएं कराने निर्णय लिया गया था.
कम से कम चार राज्य सरकारों, राष्ट्रीय शिक्षक संघों और उनके फेडरेशन और छात्र निकाय ने COVID-19 मामलों में वृद्धि को देखते हुए 30 सितंबर कर एग्जाम आयोजिक कराने को लेकर आपत्ति जताई है।
तमिलनाडु सरकार ने कोविड -19 संकट के कारण परीक्षा आयोजित के बिना, अंतिम वर्ष के छात्रों को छोड़कर, बाकी सभी कॉलेज स्टूडेंट्स को पास कर अगली क्लास के लिए प्रमोट किया था। इन छात्रों को मई 2020 में होने वाली सेमेस्टर परीक्षा लिखने से छूट दी गई थी।
तमिलनाडु में, टर्मिनल परीक्षा के लिए उपस्थित होने वाले छात्रों को छोड़कर, बीए, बीएससी, एमए, एमएससी, बीई / बीटेक, एमई / एमटेक, एमसीए और डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के सभी छात्रों को अगले शैक्षणिक वर्ष में प्रमोट किया गया।
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में कोरोना को लेकर छात्रों के स्वास्थ्य के मद्देनजर परीक्षा आयोजित न करने की अपील की गई है. युवा सेना की तरफ से कहा गया है कि देश में कोरोना के कारण स्थिति बिगड़ रही है और यह परीक्षा आयोजित करने के लिए अनुकूल नहीं है.
देश भर के विश्वविद्यालयों में फाइनल ईयर परीक्षा करवाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने UGC को परीक्षा रद्द करने/ स्थगित करने पर जवाब देने के लिए कहा था. UGC ने कोर्ट में कहा था कि अधिकांश जगह परीक्षाएं हो चुकी हैं या होने वाली हैं।
याचिका की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता का पक्ष रख रहे अधिवक्ता सिंघवी ने कहा कि कई विश्वविद्यालयों के पास तो परीक्षाओं को ऑनलाइन आयोजित करने के लिए आवश्यक आईटी इंफ्रास्ट्रक्टर ही नहीं है। साथ ही, भौतिक रूप से परीक्षाएं कोविड-19 के कारण आयोजित नहीं की जा सकती हैं।
यूजीसी ने फाइनल ईयर की परीक्षाओं के आयोजन का निर्देश दिया है क्योंकि आयोग ने यह महसूस किया कि सीखना एक गतिशील प्रक्रिया है और परीक्षा के माध्यम से किसी के ज्ञान को आंकने का एकमात्र तरीका है। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई करने वाला है।
आयोग ने कहा है कि जो छात्र परीक्षा में भाग लेने में सक्षम नहीं होंगे, उन्हें परीक्षा के लिए एक और मौका दिया जाएगा जब महामारी की स्थिति नियंत्रण में होगी।
याचिकाकर्ता छात्र आंतरिक अंक और पिछले मूल्यांकन के आधार पर परीक्षाओं को रद्द करने और डिग्री और मार्कशीट जारी करने की मांग कर रहे हैं। सुप्रीम कोट इस मामले की सुनवाई कर रहा है।
छात्रों, शिक्षाविदों और कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों के विरोध के बावजूद, मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने पहले ट्विटर के जरिए कहा था कि, “किसी भी शिक्षा मॉडल में, मूल्यांकन सबसे महत्वपूर्ण होता है। परीक्षा में प्रदर्शन छात्रों को आत्मविश्वास और संतुष्टि देता है।”
2013 में शुरू की गई BVoc डिग्री अब भी जारी रहेगी, लेकिन चार वर्षीय बहु-विषयक (multidisciplinary) बैचलर प्रोग्राम सहित अन्य सभी बैचलर डिग्री कार्यक्रमों में नामांकित छात्रों के लिए वोकेशनल पाठ्यक्रम भी उपलब्ध होंगे। ‘लोक विद्या’, अर्थात, भारत में विकसित महत्वपूर्ण व्यावसायिक ज्ञान, व्यावसायिक शिक्षा पाठ्यक्रमों में एकीकरण के माध्यम से छात्रों के लिए सुलभ बनाया जाएगा।