देश की 70 फीसद जनसंख्या गांव में निवास करती है। इस ग्रामीण जनसंख्या की स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, आजीविका, पर्यावरण, गरीबी आदि से संबंधित अनेक समस्याएं हैं। इन समस्याओं का समाधान करने एवं ग्रामीण विकास को गति देने में देश के सामने अनेक चुनौतियां हैं। इन चुनौतियां में प्रमुख रूप से आर्थिक असमानता, जलवायु परिवर्तन, गांव की शहरों पर निर्भरता, विकास की नई तकनीकों के बारे में ग्रामीण जनता को जानकारी का अभाव, सरकार द्वारा ग्रामीण विकास के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रम के बारे में जनता की अनभिज्ञता, कृषि एवं आजीविका के नए तरीकों की जानकारी न होना आदि ऐसे कारक हैं जिसके कारण ग्रामीण सतत विकास में बाधा महसूस की जा रही है। इसका मुख्य कारण देश में विकास प्रबंधन की कमी है। अत: कुशल विकास प्रबंधन के माध्यम से विकास में आ रही बाधाओं को दूर किया जा सकता है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देश में विकास प्रबंधकों की मांग तेजी से बढ़ रही है। इस मांग को पूरा करने के लिए विकास प्रबंधन पाठ्यक्रम (एमबीए विकास प्रबंधन) विभिन्न सरकारी और निजी विश्वविद्यालयों और संस्थानों में संचालित किए जा रहे हैं। यह एमबीए पाठ्यक्रम दो वर्ष का होता है। इस पाठ्यक्रम को पूरा करने के बाद अधिकतर विधार्थियों को रोजगार मिल जाता है। ग्रामीण समुदाय को विकास कार्यक्रमों का समुचित लाभ दिलाने एवं विकास में आ रही बाधाओं को दूर करने का एक महत्त्वपूर्ण साधन प्रभावी विकास प्रबंधन है। इस पाठ्यक्रम को करने वाले उम्मीदवार गरीबी उन्मूलन, सामुदायिक विकास, स्वास्थ्य देखभाल, महिला विकास, जैव विविधता, संरक्षण, आपदा शमन, लघु उद्यम निर्माण और वकालत पर काम करने वाले घरेलू और अंतरराष्ट्रीय संगठनों में काम कर सकते हैं। वे विकास परिवर्तन के जवाबदेह शासन के लिए नागरिक जुड़ाव को सुविधाजनक बनाने, भारत सरकार के प्रमुख विकास कार्यक्रमों के प्रबंधन, सीएसआर पहल के विकास प्रबंधन में भी योगदान दे सकते हैं।
एमबीए (विकास प्रबंधन)
इस पाठ्यक्रम को प्रारंभ करने के पीछे व्यापक उद्देश्य यह है कि विद्यार्थी इस पाठ्यक्रम के माध्यम से समेकित जानकारी एवं समझ प्राप्त कर आसानी से अपने कार्य की भूमिका को समझ सकेंगे और आगे चलकर अपनी नौकरियों के परिचालन एवं सरकार के नीति निर्धारण में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा कर देश के त्वरित विकास में अपना योगदान कर पाएंगे। विकास प्रबंधन पाठ्यक्रम में तीन चीजों का और समावेश किया गया है, जिनके माध्यम से विद्यार्थी वर्तमान ग्रामीण आवश्यकताओं के परिपेक्ष्य में प्रभावी प्रबंधन कर देश के चहुमुंखी विकास में अपना योगदान दे पाएंगे। यह पाठ्यक्रम विद्यार्थियों को विस्तृत रूप से सोचने एवं अनेक हित धारकों के साथ सक्रिय जुड़ाव की समझ विकसित करता है एवं उन्हें व्यावहारिक और रणनीतिगत रूप से समझने के लिए तैयार करता है।
मूलरूप से विद्यार्थियों में सरकारी, सिविल सोसायटी क्षेत्र और निजी क्षेत्र में विकास से जुड़े मुद्दों पर प्रासंगिक प्रबंधकीय कौशल विकसित करता है। अत: यह पाठ्यक्रम विधार्थियों में कक्षाओं के दौरान सीखने के अनुभवों के आधार पर मजबूत सोच और संगठनात्मक कौशल विकसित करता है जिससे की विद्यार्थी अपनी डिग्री प्राप्त कर क्षेत्र में आसानी से कार्य कर सकें।
विकास प्रबंधन पाठ्यक्रम से लाभ
इस पाठ्यक्रम को तेजी से बदल रहे भारत की जरूरतों को पूरा करने के लिए तैयार किया गया है। जहां विकास संबंधी चुनौतियां ग्रामीण क्षेत्रों तक सिमित नहीं हैं क्योंकि ग्रामीण और शहरी निरंतरता ने ग्रामीण या शहरी स्थानों को अलग से परिभाषित करने के लिए लगभग असंभव कर दिया है। यह पाठ्यक्रम सार्वजनिक, निजी क्षेत्र, गैर सरकारी संगठनों, कॉपोर्रेट सामाजिक और राष्ट्रीय व बहुराष्ट्रीय संगठनों में कार्य करने वाले विद्यार्थी तैयार करता है। ये विद्यार्थी आधारभूत संरचना एवं सुविधाओं को बढ़ावा देकर शहरी एवं ग्रामीण असमानताओं को मिटाने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं। ये शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों के बढ़ते संगम पर जोर देते है। अत: विकास प्रबंधन पाठ्यक्रम विद्यार्थियों में ग्रामीण विकास के मुद्दों पर एक मजबूत वैचारिक और विश्लेषणात्मक ढांचा विकसित करता है। विकास प्रबंधक के लिए उचित दृष्टिकोण देता है।
इस पाठ्यक्रम के माध्यम से शिक्षा प्राप्त विद्यार्थी नीति निर्माताओं, प्रबंधकों, विश्लेषकों एवं सलाहकार के रूप में ग्रामीण उद्यमों में काम कर सकते हैं। अर्थात यह पाठ्यक्रम विधार्थियों में विकास प्रबंधक बनने और राष्ट्रीय और अतंरराष्ट्रीय विकास संगठनों की मांग को पूरा करने के लिए उपयुक्त दृष्टिकोण एवं मूल्यों को विकसित करता है।
– लक्ष्मण स्वरूप शर्मा
(शिक्षक,आइआइएचएमआर विवि)