दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्लूएस) कोटा के तहत राष्ट्रीय राजधानी के स्कूलों में प्रवेश के लिए सरकार के कोई संशोधन करने तक मौजूदा आय सीमा को एक लाख रुपए से बढ़ाकर पांच लाख रुपए सालाना करने का आदेश दिया। इसने कहा कि प्रासंगिक कानून कहता है कि आय संबंधी मानदंड योजना के इच्छित लाभार्थियों के जीवन स्तर से मेल खाना चाहिए।
उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया कि वह माता-पिता द्वारा आय की स्व-घोषणा की व्यवस्था को तुरंत खत्म करे और स्कूलों में ईडब्ल्यूएस के लिए नि:शुल्क सीट जारी रखने के लिए एक उचित ढांचा तैयार करे। इसने कहा कि दिल्ली सरकार का शिक्षा निदेशालय आय सत्यापन और पात्रता मानदंड की नियमित निगरानी के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया तैयार करेगा।
उच्च न्यायालय का फैसला उस मामले में आया जिसमें एक व्यक्ति ने जन्म और आय प्रमाणपत्रों में हेराफेरी करके अपने बेटे का दाखिला ईडब्लूएस श्रेणी के तहत शहर के प्रतिष्ठित संस्कृति स्कूल में कराने में कामयाबी हासिल की थी। अदालत ने लड़के की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उसने स्कूल द्वारा अपना प्रवेश रद्द किए जाने को चुनौती दी थी। हालांकि, इसने उसे सामान्य श्रेणी के छात्र के रूप में वहां पढ़ाई जारी रखने की अनुमति दे दी।
अदालत ने कहा कि बच्चा, जो 2013 से अपनी पढ़ाई जारी रख रहा है, उसकी कोई गलती नहीं है और उसे उसके पिता की गलती के लिए दंडित नहीं किया जाएगा। इसने लड़के के पिता पर अवैध तरीके से अपने बेटे का दाखिला कराने के लिए 10 लाख रुपए का जुर्माना लगाया, जिसकी वजह से एक योग्य उम्मीदवार को प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ने का मौका नहीं मिल पाया।
न्यायमूर्ति पुरुषेंद्र कुमार कौरव ने कहा कि वर्तमान मामला एक कल्याणकारी योजना से छेड़छाड़ की एक डरावनी कहानी पेश करता है। यह मामला उस पीड़ा को दर्शाता है जहां संपन्न वर्ग आर्थिक रूप से हाशिए पर रहने वाले उम्मीदवारों की कीमत पर ईडब्लूएस आरक्षण का लाभ उठाने के लिए अपना खून, पसीना और आंसू बहा रहा है।
डीयू ने एक साल में दूसरी बार वार्षिक शुल्क बढ़ा कर दोगुना किया
दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) ने विभिन्न श्रेणियों के तहत अपना वार्षिक शुल्क 46 फीसद बढ़ाकर 2,350 रुपए कर दिया है, जिसके बाद कई शिक्षकों ने आरोप लगाया है कि यह उच्चतर शिक्षा वित्तपोषण एजंसी (एचईएफए) ऋण पर ब्याज चुकाने के लिए छात्रों की जेब से पैसा निकालने का प्रयास है। इस विषय पर दिल्ली विवि के कुलसचिव (रजिस्ट्रार) विकास गुप्ता को किए गए फोन, और भेजे गए संदेश का उनकी ओर से अब तक कोई जवाब नहीं मिला है।
कुलपति योगेश सिंह ने अक्तूबर में बताया था कि एजंसी द्वारा 930 करोड़ रुपए के ऋण कोष को मंजूरी दी गई थी। डीयू ने सात जून को जारी एक आधिकारिक परिपत्र में सूचित किया था कि शैक्षणिक वर्ष 2023-24 से विश्वविद्यालय सुविधाओं और सेवाओं के लिए शुल्क दोगुना कर 1,000 रुपए कर दिया गया है।
विवि ने अपने छात्रों के कल्याण कोष के शुल्क को भी दोगुना करके 200 रुपए कर दिया है, जबकि अपने विकास कोष के शुल्क को पिछले साल जून में संशोधित कर 900 रुपए से 10 फीसद से अधिक बढ़ाकर 1,000 रुपए कर दिया। नए शैक्षणिक वर्ष के लिए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग सहायता विश्वविद्यालय निधि के लिए वार्षिक शुल्क को भी संशोधित कर 150 रुपए कर दिया गया है। पिछले साल जुलाई में अधिसूचित वार्षिक शुल्कों में पिछली बढ़ोतरी के बाद एक साल की अवधि में यह दूसरी बढ़ोतरी है।
12 कालेजों में अनियमितताओं की जांच के लिए समिति गठित कर सकते हैं एलजी
उपराज्यपाल वीके सक्सेना शहर सरकार द्वारा वित्त पोषित दिल्ली विश्वविद्यालय के 12 कालेजों में कथित वित्तीय अनियमितताओं की जांच के लिए एक समिति गठित करने पर विचार करेंगे। राजनिवास के अधिकारियों ने यह जानकारी दी। एक अधिकारी ने कहा कि दिल्ली यूनिवर्सिटी प्रिंसिपल्स एसोसिएशन (डीयूपीए) के एक प्रतिनिधिमंडल ने सोमवार को सक्सेना से मुलाकात की और उन्हें इन 12 कालेजों में वित्तीय अनियमितताओं सहित विभिन्न मुद्दों पर प्रकाश डालते हुए एक ज्ञापन सौंपा।
अधिकारी ने मंगलवार को कहा कि एलजी ने प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन दिया कि वह समयबद्ध तरीके से मुद्दों का स्थायी समाधान खोजने के लिए सभी हितधारकों की एक समिति गठित करने पर विचार करेंगे। दिल्ली की शिक्षामंत्री आतिशी के शुक्रवार को प्रधान को पत्र लिखकर शहर सरकार द्वारा वित्त पोषित दिल्ली विश्वविद्यालय के 12 कालेजों में सरकारी खजाने से सैकड़ों करोड़ रुपए की अनियमितताओं और प्रक्रियात्मक खामियों को उजागर किए जाने के एक दिन बाद यह घटनाक्रम हुआ।
इससे पहले दिल्ली विश्वविद्यालय की अकादमिक परिषद के सदस्यों और भारतीय राष्ट्रीय शिक्षक कांग्रेस (आइएनटीईसी) ने मंगलवार को कुलपति योगेश सिंह को एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें अनियमितताओं पर चर्चा करने के लिए तत्काल बैठक बुलाने का आहन किया गया। आतिशी के पत्र की निंदा करते हुए आइएनटीईसी ने कहा, 12 कालेजों से संबंधित एक महत्वपूर्ण नीतिगत मामला हितधारकों से परामर्श किए बिना केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के समक्ष प्रस्तुत किया गया था।
आतिशी ने पत्र में कहा कि ये कालेज क्योंकि सीधे डीयू से संबद्ध हैं, इसलिए वे धन के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए दिल्ली सरकार के प्रति जवाबदेह नहीं हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि कालेजों का या तो विलय किया जा सकता है और दिल्ली सरकार के अधीन लाया जा सकता है या केंद्र उन्हें असंबद्ध कर सकता है और उनका पूरा नियंत्रण ले सकता है और उस स्थिति में, दिल्ली सरकार उन्हें धन आबंटित करना बंद कर देगी।
ज्ञापन में अकादमिक परिषद और आइएनटीईसी के सदस्यों ने कहा कि पत्र में गलती से इन 12 कालेजों को संबद्ध के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जबकि वास्तव में, वे दिल्ली विश्वविद्यालय के ह्यघटकह्ण कालेज हैं और विश्वविद्यालय से अविभाज्य हैं। इसमें कहा कि नई शिक्षा नीति (एनईपी) के खंड 10.3 के तहत इन कालेजों को स्वायत्त डिग्री प्रदान करने वाले कॉलेजों में बदलने की दिल्ली सरकार की मंशा स्पष्ट रूप से निजीकरण के एजंडे का संकेत देती है, जो आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए शिक्षा को अनुपलब्ध बना देता है। ज्ञापन में आगे कहा गया है कि इस मुद्दे पर विचार-विमर्श करने और निर्णायक समाधान पर पहुंचने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा तत्काल एक विशेष कार्यकारी बैठक बुलाई जानी चाहिए।
