NMC cracks down on doctors handwriting: राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) ने देशभर के सभी मेडिकल कॉलेजों और चिकित्सा संस्थानों को डॉक्टरों की लिखावट को लेकर सख्त निर्देश जारी किए हैं। आयोग ने कहा है कि डॉक्टरों को पर्चे पर दवाओं के नाम समेत सभी जरूरी जानकारियां सुपाठ्य, स्पष्ट और बड़े अक्षरों में लिखना सिखाया जाए।

एनएमसी ने मेडिकल कॉलेजों को निर्देश दिया है कि वे डॉक्टरों की ओर से लिखे जाने वाले पर्चों की निगरानी के लिए उप-समितियों का गठन करें। इसके साथ ही, एमबीबीएस और अन्य मेडिकल पाठ्यक्रमों में साफ और स्पष्ट पर्चा लिखने के महत्व को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाए।

15 दिसंबर को भेजा गया आधिकारिक पत्र

एनएमसी ने 15 दिसंबर को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के स्वास्थ्य विभाग के सचिवों, प्रधान सचिवों, तथा अपने अधीन सभी चिकित्सा संस्थानों के निदेशकों और डीन को इस संबंध में पत्र भेजा है। आयोग ने स्पष्ट किया है कि इन निर्देशों का पालन अनिवार्य है और इसमें किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के आदेश के बाद कार्रवाई

एनएमसी ने बताया कि ये निर्देश पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के 27 अगस्त के आदेश के आधार पर जारी किए गए हैं। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि, चिकित्सा संबंधी सुपाठ्य पर्चा या दस्तावेज संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वास्थ्य के अधिकार का एक अभिन्न हिस्सा है।

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया था कि अस्पष्ट या गलत लिखावट के कारण मरीजों की जान को खतरा हो सकता है, जिसे किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं किया जा सकता।

जेनेरिक नाम बड़े अक्षरों में लिखना होगा

एनएमसी के पत्र में कहा गया है कि, प्रत्येक डॉक्टर को दवाओं के जेनेरिक नाम स्पष्ट रूप से और कैपिटल लेटर (बड़े अक्षरों) में लिखने होंगे और पर्चे पर दवा के उपयोग, खुराक (डोज़) और अवधि की जानकारी साफ-साफ देनी होगी साथ ही मरीज को तर्कसंगत परामर्श देना भी डॉक्टर की जिम्मेदारी होगी।

इस आदेश का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि फार्मासिस्ट और मरीज दोनों पर्चे को आसानी से समझ सकें और दवा से जुड़ी किसी भी तरह की गलती से बचा जा सके।

डिजिटल प्रिस्क्रिप्शन को भी मिल सकता है बढ़ावा

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि एनएमसी का यह कदम आगे चलकर डिजिटल प्रिस्क्रिप्शन सिस्टम को भी बढ़ावा दे सकता है। पहले ही कई राज्य ई-प्रिस्क्रिप्शन और हेल्थ आईडी आधारित इलाज की दिशा में काम कर रहे हैं। साफ लिखावट और जेनेरिक दवाओं पर जोर से इलाज सस्ता और सुरक्षित बनने की उम्मीद है।

क्यों जरूरी है यह फैसला?

गलत दवा देने की घटनाओं में कमी आएगी

मरीजों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी

दवा खर्च में कमी (जेनेरिक दवाओं को बढ़ावा) हो सकती है

डॉक्टर-मरीज के बीच बेहतर संवाद स्थापित होगा

Jansatta Education Expert Conclusion

एनएमसी का यह फैसला न सिर्फ डॉक्टरों की जिम्मेदारी तय करता है, बल्कि मरीजों के स्वास्थ्य के अधिकार को भी मजबूत करता है। आने वाले समय में मेडिकल शिक्षा और प्रैक्टिस दोनों में इसका सकारात्मक असर देखने को मिल सकता है।