दिल्ली सरकार के ‘NIOS प्रोजेक्ट’ में पिछले चार सालों में 10वीं कक्षा की परीक्षा में औसतन 70% छात्र फेल रहे हैं। यह जानकारी दिल्ली शिक्षा निदेशालय (DoE) ने पीटीआई द्वारा दायर किए गए सूचना के अधिकार (RTI) आवेदन के जवाब में साझा की। एनआईओएस प्रोजेक्ट की शुरुआत उन छात्रों की पढ़ाई में सुधार और स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या कम करने के उद्देश्य से की गई थी, जो 9वीं और 10वीं कक्षा में फेल हो गए हों या जिनकी पढ़ाई कमजोर हो। इस परियोजना के तहत इन बच्चों को नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग (NIOS) में पंजीकृत किया जाता है और उनके लिए अलग कक्षाएं आयोजित की जाती हैं।

आरटीआई से हुआ खुलासा

RTI के अनुसार, 2017 में 8,563 बच्चे, 2018 में 18,344, 2019 में 18,624, 2020 में 15,061, 2021 में 11,322, 2022 में 10,598 और 2023 में 29,436 बच्चे इस प्रोजेक्ट में पंजीकृत हुए। वहीं, केवल 2017 में 3,748, 2018 में 12,096, 2019 में 17,737, 2020 में 14,995, 2021 में 2,760, 2022 में 3,480 और 2023 में 7,658 छात्र पास हो पाए। यह आंकड़े बताते हैं कि पिछले चार सालों में केवल 30% छात्र परीक्षा पास कर पाए।

क्या है पंजीकरण प्रक्रिया ?

स्कूलों के प्रिंसिपल इस योजना के तहत छात्रों का पंजीकरण करते हैं। NIOS प्रोजेक्ट के तहत छात्रों के लिए प्रत्येक विषय की परीक्षा शुल्क 500 रुपये निर्धारित है। अगर विषय में प्रैक्टिकल शामिल है, जैसे पेंटिंग, होम साइंस या कंप्यूटर साइंस, तो प्रत्येक प्रैक्टिकल विषय के लिए अतिरिक्त 120 रुपये देने होते हैं। पांच विषयों के लिए पंजीकरण शुल्क 500 रुपये है, इसके अलावा प्रत्येक अतिरिक्त विषय के लिए 200 रुपये और ट्रांसफर ऑफ क्रेडिट (TOC) के लिए प्रत्येक विषय पर 230 रुपये शुल्क लिया जाता है।

छात्रों की असफलता के मुख्य कारण

एक सरकारी स्कूल के शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “बच्चों के फेल होने के दो मुख्य कारण हैं। पहला, शिक्षक और माता-पिता के बीच समन्वय की कमी। शिक्षक बच्चों की उपस्थिति और प्रगति के बारे में माता-पिता को नहीं बताते। दूसरा, NIOS में पढ़ रहे छात्र अन्य बच्चों के समान स्कूल वातावरण का अनुभव नहीं करते क्योंकि उनके लिए कक्षाएं आयोजित नहीं की जाती।”

उन्होंने यह भी कहा कि स्कूलों के प्रिंसिपल अपनी 10वीं कक्षा के परिणाम सुधारने के लिए कमजोर छात्रों को NIOS में भेज देते हैं, जिससे ये बच्चे अन्य छात्रों से अलग हो जाते हैं।

अभिभावक संघ ने रखा अपना पक्ष

अखिल भारतीय पेरेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष और दिल्ली उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने कहा, “कमजोर बच्चे, जो गरीब परिवारों से आते हैं, नियमित शिक्षा के लिए स्कूल आते हैं, लेकिन 10वीं कक्षा के परिणाम सुधारने के लिए उन्हें NIOS में भेजा जाता है, जो CBSE पाठ्यक्रम की तुलना में बहुत कमजोर पाठ्यक्रम प्रदान करता है। यदि बच्चे पास भी हो जाते हैं, तो उन्हें केवल कला संकाय में 11वीं कक्षा में प्रवेश मिलेगा। NIOS प्रोजेक्ट बच्चों के भविष्य के साथ एक जोखिम भरा खेल है।”