Kargil Vijay Diwas: आज कारगिल विजय दिवस की 25वीं बरसी के मौके पर देशवासी शहीदों को श्रद्धांजलि दे रहे हैं। उनकी विजयगाथा को याद कर रहे हैं। सैनिकों के अमर बलिदान को याद कर लोग भावुक हो रहे हैं। आज इस आर्टिकल में हम आपको वीर सपूत कैप्टन विक्रम बत्रा के एजुकेशन और क्वालिफिकेशन के बारे में आपको बता रहे हैं। कैसे कॉलेज ड्रापआउट कर वे भारतीय सेना में शामिल हुए थे।

कैप्टन विक्रम बत्रा की शौर्यगाथा को कौन नहीं जानता। युद्ध के दौरान अपने सैनिकों की मदद करते समय उन्हें गोली लग गई थी और वे शहीद हो गए थे। पाकिस्तान ने 1999 में धोखेबाजी के जरिए कारगिल की कई चोटियों पर कब्जा कर लिया था। भारत की सेना ने उन चोटियों को आजाद कराने के लिए ऑपरेशन विजय शुरू किया था। इस युद्ध में कैप्टन विक्रम बत्रा ने काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। कैप्टन की बहादुरी के लिए उनके मरणोपरांत सर्वोच्च और सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। इनकी जीवनी पर शेरशाह फिल्म भी बनी है।

सैनिकों को देखकर मन में जागी प्रेरणा

विक्रम बत्रा (लव) पहले डीएवी स्कूल में थे। इसके बाद सेंट्रल स्कूल पालमपुर में उनका एडमिशन हुआ। उनका स्कूल सेना छावनी में था। वे हर दिन सेना के जवानों को देखते थे। उन्हें सेना की वीरता कहानियां, सीरियल और फिल्में काफी पसंद थी। इस कारण स्कूल के समय से ही वे एक देश प्रेमी थे।

रिपोर्ट के अनुसार, स्कूल के समय विक्रम बत्रा पढ़़ाई बहुत अच्छे नहीं थे। उन्हें टेबल टेनिस खेलना पसंद थी। वे अच्छे खिलाड़ी थे। वे सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी खूब भाग लेते थे। 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद विक्रम बत्रा डीएवी कॉलेज, चंडीगढ़ में विज्ञान विषय में ग्रेजुएशन के लिए एडमिशन लिया। इसके साथ ही वे एनसीसीए एयर विंग में शामिल हो गए। उन्होंने सर्टिफिकेट के लिए क्वालिफाई कर लिया। जिसके बाद उन्हें एनसीसी में कैप्टन विक्रम बत्रा कै रैंक मिला। एनसीसी कैडेट के रूप में उन्होंने 1994 में गणतंत्र दिवस परेड में हिस्सा लिया।

बता दें कि कॉलेज के दौरान ही 1995 के समय उन्हें एक शिपिंग कंपनी के साथ मर्चेंट नेवी के लिए चुना गया हालांकि उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया और ग्रेजुएशन करने के बाद अंग्रेजी में एमए करने के लिए पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में एडमिशन ले लिया।

कैसे शुरु हुआ सेना का सफर

उनका झुकाव हमेशा से भारतीय सैनिकों की तरफ था। उन्होंने सेना में शामिल होने के लिए 1996 में ही सीडीएस की परीक्षा दी और सेवा चयन बोर्ड द्वारा उनका चयन हो गया। वे टॉप 35 शीर्ष में शामिल थे। भारतीय सैन्य अकादमी में शामिल होने के लिए उन्होंने अपने कॉलेज से ड्रॉप आउट कर लिया। 1997 दिसंबर में ट्रेनिंग खत्म होने के बाद उन्हें 6 दिसंबर 1997 को जम्मू के सोपोर में सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति हुई।

इसके बाद 1998 में यंग ऑफिसर्स कोर्स को पूरा करने के लिए 5 महीने इन्फैंट्री स्कूल मध्य प्रदेश भेज दिया गया था। जब उन्होंने यह कोर्स पूरा किया तो उन्हें अल्फा ग्रेडिंग से सम्मानित किया गया। इसके बाद कैप्टन कैप्टन विक्रम बत्रा जम्मू-कश्मीर में अपनी बटालियन दोबारा शामिल किया गया था। कैप्टन विक्रम बत्रा ने कमांडो के साथ कई और तरह की ट्रेनिंग ली थी।

छुट्टियों में जब वे घर आए तो उन्होंने कहा था कि मैं या तो लहराते तिरंगे को लहरा कर आऊंगा या फिर तिरंगे में लिपटा हुआ, पर मैं आऊंगा जरूर। हुआ भी यही…उन्होंने युद्ध में पाकिस्तानियों को धूल चटा दी। ऐसे जांबाज जवान को हम नमन करते हैं।