JKSSB Naib Tehsildar Recruitment 2025: जम्मू-कश्मीर सेवा चयन बोर्ड (JKSSB) द्वारा सिर्फ 75 नायब तहसीलदार पदों की भर्ती के लिए जारी विज्ञापन ने बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। आरटीआई (RTI) के जरिए मिली जानकारी के अनुसार, बोर्ड ने आवेदकों से आवेदन शुल्क के रूप में ₹6.43 करोड़ से अधिक की राशि वसूल की है। प्रत्येक आवेदन फॉर्म की कीमत सामान्य वर्ग के लिए 600 रुपये और आरक्षित वर्ग के लिए 500 रुपये थी। इस आधार पर अनुमान है कि एक लाख से अधिक उम्मीदवारों ने आवेदन किया, लेकिन बीते महीने भर्ती प्रक्रिया स्थगित कर दी गई, जिससे उम्मीदवार अब असमंजस की स्थिति में हैं।

उम्मीदवारों की बेरोजगारी झलकाती तस्वीर

आरटीआई कार्यकर्ता रमन कुमार शर्मा ने बताया कि “सिर्फ 75 पदों के लिए एक लाख से अधिक उम्मीदवारों का आवेदन करना गहरी होती बेरोजगारी की तस्वीर पेश करता है। यह युवाओं की मजबूरी और उनकी डिग्री-योग्यता के बावजूद रोजगार न मिलने की हताशा को दर्शाता है।”

JKSSB का जवाब

आरटीआई आवेदन 21 जुलाई को दाखिल किया गया था, ठीक एक हफ्ते बाद जब CAT (केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण) ने ‘सिर्फ उर्दू अनिवार्यता’ नियम पर रोक लगाते हुए भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी।

JKSSB ने 2 अगस्त को दिए अपने जवाब में बताया कि ₹6,43,28,400 आवेदन शुल्क के रूप में जमा हुए हैं। हालांकि, बोर्ड ने यह खुलासा करने से इंकार कर दिया कि कुल कितने आवेदनों को किस श्रेणी से प्राप्त किया गया है।

क्या है विवाद की जड़: उर्दू अनिवार्यता नियम

भर्ती प्रक्रिया शुरू होते ही यह ‘उर्दू अनिवार्य’ शर्त विवाद का केंद्र बन गई। भाजपा (BJP) ने इसका विरोध करते हुए इसे “भेदभावपूर्ण आदेश” बताया और रद्द करने की मांग की। दूसरी तरफ मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इसका बचाव किया और कहा, “आजादी से पहले भी हमारे राजस्व अभिलेख उर्दू में ही रहे हैं। अगर कर्मचारी को उर्दू नहीं आती तो वह विभाग में कैसे कुशलता से काम करेगा?” उन्होंने सुझाव दिया कि चयनित उम्मीदवारों को नौकरी मिलने के बाद उर्दू सीखने का समय दिया जा सकता है।

पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने CAT के फैसले पर नाराजगी जताई। उन्होंने कहा, “उर्दू को दशकों से आधिकारिक भाषा का दर्जा मिला हुआ है, लेकिन अब इसे सांप्रदायिक चश्मे से देखा जा रहा है। यह पूरी तरह प्रशासनिक दक्षता का विषय है, राजनीति का नहीं।”

उम्मीदवारों की मुश्किलें

फीस वापसी का कोई प्रावधान न होने से उम्मीदवारों के लिए यह स्थिति और भी कठिन हो गई है। शर्मा के अनुसार, “कई उम्मीदवार गरीब पृष्ठभूमि से आते हैं। उनके लिए भर्ती स्थगित होना न सिर्फ उम्मीद टूटने जैसा है, बल्कि मेहनत की कमाई का नुकसान भी है।”