12वीं के बाद मेडिकल की पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स नीट यूजी परीक्षा के लिए उपस्थित होते हैं और हर बच्चे का यह प्रयास होता है कि वह इस परीक्षा में अच्छा स्कोर करे ताकि उसे उसके मन का कॉलेज मिल जाए। हालांकि ऐसा होता नहीं है, क्योंकि नीट परीक्षा सबसे कठिन प्रतियोगी परीक्षाओं में आती है। ऐसे बहुत कम ही स्टूडेंट होते हैं जो अपने पहले प्रयास में ही नीट परीक्षा क्रैक कर लेते हैं। ऐसे में कई छात्र ड्रॉप ईयर का फैसला करना सही समझते हैं।

क्या होता है ड्रॉप ईयर?

ड्रॉप ईयर का मतलब है कि छात्र 12वीं के बाद एक साल का ब्रेक लेकर नीट की तैयारी पर पूरी तरह फोकस करते हैं और उसके बाद परीक्षा देते हैं। इससे यह होता है कि आपको नीट की तैयारी के लिए अच्छा खासा समय मिल जाता है। कई एक्सपर्ट इसकी सलाह देते हैं कि 12वीं के बाद न सिर्फ नीट में बल्कि एक छात्र को कुछ भी बेहतर करने के लिए ब्रेक लेना ही चाहिए, क्योंकि तुरंत 12वीं पास करने के बाद स्टूडेंट्स को मानसिक तौर पर इतना समय नहीं मिल पाता कि वह आगे की प्लानिंग कर सकें या फिर तैयारी पर ध्यान दे सकें।

कितना सही है ड्रॉप ईयर का फैसला?

  1. 1. नीट यूजी की तैयारी के लिए छात्र ड्रॉप ईयर का फैसला लेते तो जरूर हैं, लेकिन यह निर्णय भावनात्मक और शैक्षणिक दोनों दृष्टिकोणों से चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है। ड्रॉप ईयर का फैसला नीट की तैयारी के लिहाज से काफी सही है, क्योंकि इससे कैंडिडेट्स को सिर्फ इसी परीक्षा पर ध्यान केंद्रित करने का समय मिलता है। छात्र बिना किसी स्कूल या अन्य गतिविधियों के दबाव के कठिन विषयों पर काम कर सकते हैं और अपनी कमजोरियों को सुधार सकते हैं।

2. नीट की तैयारी को लेकर ड्रॉप ईयर करने से न सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान लगाया जा सकता है बल्कि एक बेहतर स्टडी प्लान तैयार करके अपने आत्मविश्वास को भी बढ़ाया जा सकता है। ड्रॉप ईयर से न सिर्फ परीक्षा से पहले बेहतर मानसिक तैयारी भी होती है, क्योंकि छात्रों को अपनी गलतियों से सीखने को समय मिलता है।

ड्रॉप ईयर करने के बाद आने वाली चुनौतियां

  1. 1. 12वीं के बाद ड्रॉप ईयर करने का फैसला किसी भी छात्र के लिए आसान नहीं होता, क्योंकि यह डिसीजन लेने वाले स्टूडेंट्स को भावनात्मक उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ सकता है। ड्रॉप ईयर करने वाले छात्र में नाकारत्मकता का भाव आ सकता है क्योंकि वह अपने साथियों को तो आगे बढ़ता हुआ देखेगा। ऐसे में असफलता का डर रहता है। ऐसे में जरूरी है कि छात्र मानसिक तौर पर मजबूत रहें।

2. ड्रॉप ईयर का फैसला इसलिए भी आसान नहीं है क्योंकि आपको परिवार और समाज के ताने भी सुनने को मिल जाते हैं। ड्रॉप ईयर करने वाले हर छात्र को परिवार और समाज से पूरा सपोर्ट नहीं मिल जाता। आसपास के लोग छात्र के साथियों और दोस्तों से तुलना करने लगते हैं इसलिए भावनात्मक समर्थन बहुत जरूरी होता है।