सुशील कुमार सिंह

शैक्षिक तकनीक आज के समय में उपयोगी और शैक्षणिक समस्याओं का निदान करने में अग्रसर है, मगर डिजिटलीकरण का बुनियादी ढांचा इतना भी सामान्य नहीं हुआ है कि सभी की पढ़ाई-लिखाई तक इसकी पहुंच पूरी तरह संभव हो सकी हो।

आज मानव जीवन वैज्ञानिक खोजों और आविष्कारों से प्रभावित है। शिक्षा का क्षेत्र भी इससे मुक्त नहीं है। पढ़ाई-लिखाई में तकनीक का बोलबाला है। जब शिक्षक अपने शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए विभिन्न साधनों की मदद लेता है, जिसके चलते शिक्षण और उपागम दोनों प्रभावित होते हैं, तो उसे शिक्षण प्रौद्योगिकी कहते हैं, जो वर्तमान में ‘एजुटेक’ के रूप में लोकप्रिय है।

इस तकनीक के मुख्य रूप से दो बिंदु हैं- शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति और शिक्षण प्रक्रिया का यांत्रिकीकरण। बीते एक दशक में देखने को मिला है कि शैक्षणिक प्रौद्योगिकी तेजी से बड़े बाजार और ग्राहक बनाने में सफल रही है। हाल के दिनों में ‘एजुटेक स्टार्टअप’ अरबों के कारोबारी हो गए हैं और निरंतर कई संभावनाओं से युक्त होते जा रहे हैं। देखा जाए तो ‘एजुटेक ऐप’ से भरे स्मार्ट फोन अब शिक्षा का पर्याय बन गए हैं।

पड़ताल बताती है कि भारत का एजुटेक अपने विभिन्न क्षेत्रों और उपक्षेत्रों में लगभग चार सौ नव-उद्यमियों के साथ दुनिया में कहीं अधिक बड़े आकार का है। गौरतलब है कि भारत की जनसंख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है और पढ़ाई-लिखाई का सरोकार और संभावनाएं भी यहां तुलनात्मक रूप से ज्यादा हैं। जनसांख्यिकी लाभांश, प्रौद्योगिकी का बुनियादी ढांचा और बढ़ता बाजार एजुटेक के मामले में नया स्वरूप ले रहा है।

सस्ते इंटरनेट की उपलब्धता और कमाई के बढ़ते स्रोत भी इस उद्यम को बढ़ावा दे रहे हैं। अनुमान है कि अगले पच्चीस सालों में सौ करोड़ विद्यार्थी स्नातक होंगे। वैसे भारत में तीव्र डिजिटलीकरण और 2010 से 2022 के बीच इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या में दस गुना की वृद्धि यह इशारा करती है कि इसमें अभी और तेजी रहेगी। 2040 तक मौजूदा इंटरनेट उपयोगकर्ता, जो तकरीबन नब्बे करोड़ हैं, डेढ़ अरब को पार कर जाएंगे।

एजुटेक में अचानक तेजी कोविड की वजह से आई थी। तब से शुरू हुआ यह सिलसिला अब दुनिया में एजुटेक उद्योग के रूप में जाना जाने लगा है। दुनिया में तकनीकी विकास की रफ्तार 1995 के बाद तेजी से बढ़ी है और कोविड के बाद यह कहीं अधिक शैक्षणिक तकनीक के रूप में लोकप्रिय हुई है।

एक सर्वे से यह भी पता चलता है कि भारत में तैंतीस फीसद माता-पिता इस बात को लेकर बेहद चिंतित हैं कि आभासी शिक्षा यानी ‘वर्चुअल लर्निंग’ से बच्चों के सीखने और प्रतियोगी दक्षता पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। इतना ही नहीं, एजुटेक को बड़ा बाजार मिले, इसे लेकर भी शिक्षा के तरीके में मनोरंजनात्मक क्रियाओं का भरपूर उपयोग किया जा रहा है। वैसे भारत का डिजिटल शैक्षणिक ढांचा कितना फल-फूल रहा है, इसे उक्त आंकड़ों से और समझना आसान है।

देश में ‘नेशनल डिजिटल एजुकेशन आर्किटेक्चर’ बनाया गया है। ‘पीएम ई-विद्या प्रोग्राम 2020’ के तहत ‘ई-लर्निंग’ को आसान बनाने के लिए स्कूलों में इसकी शुरुआत हो चुकी है। पच्चीस करोड़ स्कूली छात्रों और लगभग चार करोड़ उच्च शिक्षा हासिल करने वालों को इससे फायदा मिलेगा। ई-पाठशाला पोर्टल, स्वयंप्रभा, दीक्षा आदि ऐसे कार्यक्रम हैं, जो डिजिटल एजुकेशन की दिशा में अनवरत लगे हैं।

यह भी एक सकारात्मक पहलू है कि पिछले दस वर्षों में स्मार्ट फोन की कीमतों में निरंतर गिरावट आई है और भारत में वैश्विक स्तर पर सबसे सस्ता मोबाइल डेटा दरें हैं। डिजिटल बुनियादी ढांचे के विस्तार में सरकार की रुचि से भी एजुटेक को बल मिला है। राष्ट्रीय ब्राडबैंड मिशन, डिजिटल इंडिया और डिजिटल क्रांति ने ‘एजुटेक’ की दूरस्थ क्षेत्रों तक पहुंच आसान बना दी है।

पढ़ाई-लिखाई के मामले में भले ‘एजुटेक’ एक सुलभ माध्यम बना हो, मगर भारत में व्याप्त गरीबी और भुखमरी के चलते करोड़ों बच्चे इन सुविधाओं से वंचित हैं। वैश्विक भूख सूचकांक के अनुसार भारत में तुलनात्मक रूप से भुखमरी बढ़ी है, जबकि गरीबी से देश का पीछा नहीं छूट रहा है। बेरोजगारी की दर भी भयावह रूप लिए हुए है। शैक्षिक तकनीक आज के समय में उपयोगी और शैक्षणिक समस्याओं का निदान करने में अग्रसर है, मगर डिजिटलीकरण का बुनियादी ढांचा इतना भी सामान्य नहीं हुआ है कि सभी की पढ़ाई-लिखाई तक इसकी पहुंच पूरी तरह संभव हो सकी हो।

इसमें कोई दो राय नहीं कि इस तकनीक में शिक्षा के साथ जुड़ाव को आसान किया है। सीखने की प्रक्रिया को तुलनात्मक रूप से मजेदार बनाया है। छात्र एक ही स्थान से सारी सूचनाएं पा रहे हैं। चाहे गृहकार्य हो या कोई अन्य गतिविधि, तकनीक की मदद से सब कुछ मानो एक छोटे से यंत्र में उपलब्ध है। पर सब कुछ आसान होने के बावजूद, शिक्षा जगत में तकनीक के कुछ नुकसान भी हैं।

पढ़ाई-लिखाई के इसी यंत्र के अंदर सोशल मीडिया से लेकर अनेक गैर-उत्पादक कृत्यों से भी विद्यार्थी दो-चार हो रहे हैं। शोध बताते हैं कि तकनीक के ज्यादा इस्तेमाल से विद्यार्थियों में भटकाव की स्थिति भी पैदा होती है। सर्वेक्षणों के अनुसार बहुत सारे बच्चों को मनोवैज्ञानिकों के पास ले जाने की स्थिति आ जाती है।

पढ़ाई-लिखाई की तकनीक कब मनोवैज्ञानिक चोट बन गई, इसका अंदाजा शायद ही किसी को हो। स्मार्ट फोन और लैपटाप पर लगातार काम करने से बच्चों की पीठ, कंधों और आंखों में दर्द होने लगता है। बच्चों की दिनचर्या में भी काफी बदलाव आया है। उनके स्वभाव में चिड़चिड़ापन आया है। आनलाइन दुनिया में वे इतने खो जाते हैं कि आमने-सामने बात करना कइयों के लिए असहज हो जाता है। देखें तो एजुटेक एक सकारात्मक संदर्भ से युक्त है, मगर यह समस्याओं से मुक्त नहीं है।

‘एजुटेक’ के समग्र प्रभाव को एक सही दिशा देने और सुनिश्चित मापदंड तैयार करने के लिए, प्रौद्योगिकी और पारंपरिक शिक्षा विधियों को संतुलन बनाना महत्त्वपूर्ण है। यह समझ लेना कि प्रौद्योगिकी ही अंतिम उपाय है, यह सर्वथा उचित तर्क नहीं है। शिक्षा की सुलभता एजुटेक से संभव है, मगर यह अतिशयता को बढ़ावा देगी। एजुटेक उच्च दक्षता, बड़े पैमाने पर अवसर और शिक्षा को कई स्तरों पर परिवर्तित करने की क्षमता से युक्त है।

मगर इसी एजुटेक ने पढ़ाई को एक उत्पाद के रूप में भी परोस दिया है। विद्यार्थी कंपनियों के ग्राहक बन गए हैं, जो शैक्षणिक दृष्टि से उचित संकेत नहीं है। डिजिटल शिक्षा के मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभाव अब सीधे तौर पर दिखते हैं। माता-पिता के मन पर भी इसका प्रभाव साफ-साफ झलकता है। बावजूद इसके, अब बिना एजुटेक के पढ़ाई-लिखाई संभव भी नहीं है।

वैसे भारत में शिक्षा प्रौद्योगिकी के उपयोग का पता 1980 के दशक में ही मिलने लगा था, जब कुछ स्कूलों में कंप्यूटर शिक्षा शुरू की गई थी। जब तक विद्यार्थियों द्वारा डिजिटल व्यवस्था को शैक्षणिक नजरिए से उपयोगी नहीं समझा जाएगा, तब तक लैपटाप, मोबाइल और इलेक्ट्रानिक उपकरणों का उपयोग गैर-उत्पादक तरीके से होता रहेगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 एक समग्र शिक्षा की अवधारणा से युक्त है।

एजुटेक कार्यक्रमों को यह सुनिश्चित करना होगा कि समग्र शिक्षा के निहित मूल तत्त्व, व्यक्तित्व और मनो-सामाजिक दिशा और दशा के साथ पर्यावरणीय जिम्मेदारी, साथ ही सतत विकास और मानवीय मूल्यों को एकीकृत करने का काम करें। यह नहीं भूलना चाहिए कि किसी भी देश का वर्तमान ही भविष्य की आहट देता है। एजुटेक जिस पैमाने पर मौजूदा समय में विस्तार ले रहा है वह केवल पढ़ाई-लिखाई को मजबूत नहीं करेगा, बल्कि नई चुनौतियों और संघर्षों को भी सामने खड़ा कर सकता है।