New Arunachal law: अरुणाचल प्रदेश विधानसभा ने मंगलवार को सर्वसम्मति से अरुणाचल प्रदेश परीक्षा (भर्ती में अनुचित साधनों की रोकथाम के उपाय) विधेयक पारित कर दिया गया। यह कानून राज्य में बड़े स्तर पर पेपर लीक होने के दो साल बाद लागू किया गया। जिसके अनुसार, भर्ती परीक्षा में नकल करने वालों को 1 करोड़ का जुर्माना 5 साल की जेल की सजा हो सकती है।
नीट यूजी पेपर लीक विवाद के बीच आया ये कानून
बता दें कि देश भर में नीट पेपर लीक की चर्चा के बीच इस कानून की राज्य भर में प्रशंसा हो रही है। यह विधेयक जो केंद्र और अन्य राज्यों द्वारा पारित समान कानूनों का पालन करता है। इस कानून के अनुसार, 5 साल तक की कैद और एक करोड़ रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। इस विधेयक के तहत भर्ती परीक्षाओं में अनुचित प्रथाओं में शामिल होने के दोषी पाए गए उम्मीदवारों के लिए 1 करोड़ रु, ऐसी गतिविधियों में शामिल होने पर 10 करोड़ रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है और साथ ही उनसे परीक्षा आयोजित करने की लागत भी वसूली जा सकती है।
अपराध में शामिल लोगों को लंबी सजा का सामना करना पड़ता है – 1 करोड़ रुपये के जुर्माने के साथ 10 साल तक की सजा हो सकती है। इतना ही नहीं अपराध में शामिल संस्थानों की संपत्ति भी कुर्क की जाएगी।
असल में सहायक इंजीनियरों की भर्ती परीक्षा 2022 में लीक होने के बाद राज्य में अरुणाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग (एपीपीएससी) की कार्यप्रणाली पर लोगों ने आक्रोश जाहिर किया था। मुख्यमंत्री पेमा खांडू की पिछली सरकार पर भी इसका असर पड़ा था।
पेमा खांडू ने कानून पारित होने के बाद क्या कहा
इस साल की शुरुआत में राज्य में भाजपा सरकार के दोबारा सत्ता में आने के बाद मौजूदा विधानसभा सत्र उनका पहला सत्र है। इस दौरान पेमा खांडू ने कहा, “इस बिल का मूल यह है कि 2022 में लोक सेवा आयोग की परीक्षा में पेपर लीक की खबर से पूरा सिस्टम हिल गया था। मुझे याद है जिस दिन पहले दिन ये खबर मीडिया में आई थी, उस वक्त मैं एक टूर प्रोग्राम के लिए जीरो में था।”
उन्होंने आगे कहा “वहां मीडियाकर्मियों ने ईटानगर में फैल रही इन घटनाओं की खबरों पर मुझसे सवाल किया था और मैंने उन्हें पहले ही दिन बताया था कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण खबर थी और इसमें शामिल आपराध को परिभाषित करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। मैंने कहा था कि हम इस मामले से सख्ती से निपटेंगे”। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि लीक के बाद सरकार को विश्वसनीयता में कमी का सामना करना पड़ा है।