वाकया तब का है जब सुनील दत्त रेडियो सीलोन पर काम करते थे। उन्हें फिल्म कलाकारों के इंटरव्यू लेने पड़ते थे। एक बार उन्हें अभिनेत्री नरगिस का इंटरव्यू करने का मौका मिला। उन दिनों नरगिस की लोकप्रियता चरम पर थी। ‘हुमायू’ (1945), ‘मेला’ (1948), ‘बरसात’, ‘अंदाज’ (1949), ‘जोगन’, ‘बाबुल’ (1950), ‘दीदार’, ‘आवारा’ (1951) की सफलता से नरगिस की फिल्मजगत में तूती बोल रही थी। दत्त जब इंटरव्यू करने नरगिस के सामने पहुंचे, तो बुरी तरह नर्वस थे। वह बल्कि पसीना-पसीना हो गए थे। नरगिस ने उनकी हालत देखी तो दिलासा दी, सहज किया।  1955 में निर्देशक रमेश सैगल ने सुनील दत्त को देख कर फिल्मों में काम करने का प्रस्ताव दिया, तो दत्त ने कहा कि वे फिल्मों में हीरो बनेंगे। सैगल ने उन्हें ‘रेलवे प्लेटफॉर्म’ में नलिनी जयवंत का हीरो बना दिया। नियति का खेल निराला था। जिस नरगिस के सामने सुनील दत्त पसीना-पसीना हो गए थे, 1957 में उन्हें ‘मदर इंडिया’ में उन्हीं के बिगड़ैल बागी बेटे बिरजू का किरदार निभाने का मौका मिला। फिल्म में नरगिस के हाथों लाठी से पिटाई भी हुई।

दरअसल निर्माता-निर्देशक महबूब खान ने दिलीप कुमार को बिरजू की भूमिका के लिए चुना था। मगर नरगिस का कहना था कि दिलीप कुमार उनके साथ रोमांटिक भूमिका कर चुके हैं, इसलिए दर्शक उन्हें बेटे की भूमिका में पचा नहीं पाएंगे। तब महबूब खान ने इसका तोड़ निकालते हुए उन्हें राजकुमार और सुनील दत्त यानी बाप-बेटे की दोहरी भूमिका का प्रस्ताव दिया। बताया जाता है कि इस प्रस्ताव के बाद दिलीप कुमार ने महबूब खान को दो पन्नों की चिट्ठी लिखी, जिसे पढ़ कर महबूब आपा खो बैठे थे और उन्होंने दिलीप कुमार के बिना ‘मदर इंडिया’ बनाना तय किया था।

‘मदर इंडिया’ के बिरजू के रूप में सुनील दत्त के चुनाव से पहले हॉलीवुड के भारतीय मूल के अभिनेता साबु दस्तगीर चुने गए थे। वह अमेरिका से मुंबई आ चुके थे, मगर वर्क परमिट के झमेले के कारण उन्हें भी ‘मदर इंडिया’ से बाहर होना पड़ा। तब एक दिन दिलीप कुमार के खासमखास सह अभिनेता मुकरी सुनील दत्त को लेकर महबूब खान के पास पहुंचे और महबूब खान को ‘मदर इंडिया’ का बिरजू मिल गया। एक मार्च 1957 को ‘मदर इंडिया’ के लिए सूरत के उमरा में आग का सीन फिल्माया जा रहा था। अचानक हवा ने रुख और गति बदली और देखते ही देखते आग ने विकराल रूप धर लिया। आग के बीच नरगिस फंसी तो सुनील दत्त ने उन पर कंबल डाल कर आग से सुरक्षित निकाला। मगर खुद आग से झुलस गए। उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। इस दौरान नरगिस ने उनकी तीमारदारी में कोई कसर बाकी नहीं रखी। नतीजा यह निकला कि सुनील दत्त और नरगिस एक दूसरे के इतने करीब आ गए कि 11 मार्च 1958 को दोनों ने एक दूसरे को जीवनसाथी चुन लिया।

‘मदर इंडिया’ न सिर्फ नरगिस बल्कि सुनील दत्त के करिअर की भी उल्लेखनीय फिल्म थी। 23 अक्तूबर को राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसे देखा और प्रशंसा की। 25 अक्तूबर 1958 को फिल्म रिलीज हुई और सभी जगह सफल रही। फ्रांस में इसे ‘गोल्डन ब्रेसलेट’ (सुनहरा कंगन) नाम से रिलीज किया गया। ऑस्कर पुरस्कारों की सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म की श्रेणी में इसे नामांकित किया गया मगर मात्र एक वोट से यह ऑस्कर पाने से चूक गई।